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`एक देश-एक चुनाव`…एक तीर से कई निशाने

डॉ.अरविन्द जैन
भोपाल(मध्यप्रदेश)
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द्रोणाचार्य ने पेड़ पर बैठे पक्षी को निशाना लगाने को बोला,सबने निशाने ताने,पर अर्जुन ने पक्षी की आँख को ही निशाना साधा और वह सफल हुआ। कभी-कभी शांत तालाब पर एक पत्थर फेंको,तो उसकी तरंगें पूरे तालाब में दिखाई देकर विलीन हो जाती हैं। राजा के मन की बात में उसका रहस्य छिपा रहता है। बोलते कुछ हैं,और करते कुछ है। जब प्रजातंत्र में देश के मुखिया के पास बहुमत होता है,तब उसकी जिजीविषा इतनी बढ़ जाती है कि वह इतना कुछ करना चाहता है कि आगामी वर्षों में वह ऐसे एकमात्र शासक के रूप में जाना पहचाना जाए,जो अद्वितीय हो।
इस समय नए-नए कानून बन रहे हैं,और जो पुराने वर्तमान में उपयोगी नहीं हैं,उनको हटाया जा रहा है। यही अंतर होता है धार्मिक नियमों और राजनीति में। राजनीति में,खास तौर पर प्रजातंत्र में हमेशा नियमों में संशोधनों की जरुरत पड़ती है,पर धार्मिक ग्रंथों में कोई परिवर्तन-संशोधन नहीं होते।जैसे पुराणों में कह दिया कि २४ तीर्थंकर या अवतार होते हैं,तो वे उतने ही रहेंगे।
अब प्रधान सेवक ने इस बात का जिक्र किया कि देश में एक चुनाव होना चाहिए,जैसे लोकसभा,विधानसभा के विशेष,फिर नगरीय और ग्रामीण निकायों के भी साथ-साथ हों। इसके बहुत दूरगामी प्रभाव होंगे,एक बार यह होना शुरू हुआ तो फिर यह भी हो सकेगा कि देश में अब राष्ट्रपति प्रणाली भी शुरू हो,इसकी संभावना से भी मुक्त नहीं हो सकते। जैसे विगत पांच वर्षों में देश की शीर्षस्थ संस्थाओं में एक विचार धारा के लोगों को बैठा दिया या थोप दिया,जिसके कारण जैसे भी अपनी विचारधारा के अनुसार साहित्य,इतिहास संस्कृति में जोड़-घटाव करना है,वह हो रहा है,और उसमे कोई हस्तक्षेप करने वाला नहीं हैं। कारण कि बहुमत मिल जाने से अब और भी निष्फिक्र होकर आंतरिक रूप से परिवर्तन का कार्य चल रहा हो तो कोई आश्चर्य नहीं। खैर,दाई से पेट कभी नहीं छुपा रहता है,कभी न कभी करतूतें सामने आएँगी,क्योंकि जो भी छापा जाएगा वह सामने आएगा,पर तब तक बहुत देरी हो जाएगी।
एक देश एक चुनाव के पीछे का कारण यह है कि वर्तमान में प्रधानमंत्री देश का मुख्य कार्यकारी अधिकारी होता है,पर राष्ट्र का प्रधान नहीं होता। राष्ट्रप्रधान तो राष्ट्रपति होता है,और अब प्रधानमंत्री किसी की अधीनता नहीं स्वीकारना चाहते हैं। कारण राष्ट्रपति से पूछना एक औपचारिकता होती है,पर पूछना पड़ता ही है। वैसे उनकी नियुक्ति प्रधान सेवक की मर्ज़ी से ही होती है,जो एक ही माने जाते हैं। वर्तमान में दोनों एक तराज़ू के दो पलड़े हैं,उनमें कोई भेदभाव नहीं है।
एक चुनाव प्रणाली से इस बात को बल मिलता है कि हमें पूरी जनता-नागरिकों का जनादेश मिला है,तो इसमें संशोधन होना चाहिए और देश में राष्ट्रपति प्रणाली लागू हो,एवं प्रधान सेवक ही प्रथम नागरिक और राष्ट्र का सर्वोपरि सेवक होगा।
जहाँ तक विपक्ष की बात है तो वह इस बात पर राज़ी नहीं होगा,जबकि सत्ता का कहना है कि इससे राजस्व की बचत होगी और समय बचेगा,पर वर्तमान में ये सब बातें बेमानी है। कारण कि आज कौन नियमों का पालन कर रहा है।
विपक्ष के राजी न होने का कारण यह है कि सत्ताधारी वर्तमान में बहुत सुसंगठित संगठन है,इसलिए सत्ता चाहती है कि एक देश एक चुनाव और एकमात्र पद होना चाहिए,वह राष्ट्रपति का,प्रधानमंत्री के पद की जरुरत नहीं है। ऐसा प्रतीत हो रहा है और उसकी भूमिका बन रही है। रहा सवाल संविधान संशोधन का,तो विपक्ष बिखरा पड़ा है और प्रचंड बहुमत से कुछ भी किया जा सकता है।

परिचय- डॉ.अरविन्द जैन का जन्म १४ मार्च १९५१ को हुआ है। वर्तमान में आप होशंगाबाद रोड भोपाल में रहते हैं। मध्यप्रदेश के राजाओं वाले शहर भोपाल निवासी डॉ.जैन की शिक्षा बीएएमएस(स्वर्ण पदक ) एम.ए.एम.एस. है। कार्य क्षेत्र में आप सेवानिवृत्त उप संचालक(आयुर्वेद)हैं। सामाजिक गतिविधियों में शाकाहार परिषद् के वर्ष १९८५ से संस्थापक हैं। साथ ही एनआईएमए और हिंदी भवन,हिंदी साहित्य अकादमी सहित कई संस्थाओं से जुड़े हुए हैं। आपकी लेखन विधा-उपन्यास, स्तम्भ तथा लेख की है। प्रकाशन में आपके खाते में-आनंद,कही अनकही,चार इमली,चौपाल तथा चतुर्भुज आदि हैं। बतौर पुरस्कार लगभग १२ सम्मान-तुलसी साहित्य अकादमी,श्री अम्बिकाप्रसाद दिव्य,वरिष्ठ साहित्कार,उत्कृष्ट चिकित्सक,पूर्वोत्तर साहित्य अकादमी आदि हैं। आपके लेखन का उद्देश्य-अपनी अभिव्यक्ति द्वारा सामाजिक चेतना लाना और आत्म संतुष्टि है।

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