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एक बार और…

ऋतुराज धतरावदा
इंदौर(मध्यप्रदेश)
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सोचता हूँ कुछ देर सुस्ता लूँ,
झील किनारे बैठकर कहीं
पीलूँ थोड़ा-सा मौन,
खुद के अंदर उतरूँ
जहाँ बरसों पहले,
जाया करता था कभीl
हर चीज को फिर
सलीके से सजाऊँ,
आईने को साफ कर
वही पुराने कपड़े पहन,
नजरभर खुद को भी देखूँ
समय के साथ उग आई
सलवटों पर गौर करूँ,
तुझे भी साथ खींच
वही सब गुनगुनाऊँ,
जो बाहर के शोर में
दब गया है शायदl
यूँ ही आईने में
फ्रेम कर तस्वीर अपनी,
फिर,हम निकल पड़े
नए सफर पर,
शोर से दूर,उस ओर
जहाँ बस बातें हो
मेरी-तुम्हारी
आँखें बंद कर हम कहें
ऐ-जिंदगी,ये साथ
एक बार और,एक बार और…ll

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