डॉ. कुमारी कुन्दन
पटना(बिहार)
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लगे कि जान, निकली जाए
जीना मुश्किल है संसार में
ओ सावन के मेघा मतवाले,
सब हैं तेरे इन्तजार में।
सुरज तपिश ना झेली जाए,
लगे दो-दो सूरज निकले हैं
इनका काम, परहित करना,
पर आज ये शोला उगले हैं।
एसी, कूलर सब फेल हुए,
असहनीय तपन, बेचैनी है
बैठे हैं सब आस लगा के,
तदबीर ना कोई दिखती है।
गुल, गुलशन सब मुरझाया,
मिट्टी में भी दरारें पड़ आई
कृषक हैं नैन बिछाए बैठे,
आँखे उनकी है पथराई।
जीव-जंतु सब परेशान हैं,
चेहरे पर उदासी छाई है
खग-वृंद बेहाल पड़े हैं,
जां पर उनकी बन आई है।
सूख रहे हैं ताल-तलैया,
क्यों सावन और असाढ़ में।
ओ सावन के मेघा मतवाले,
सब हैं तेरे इन्तज़ार में॥