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कथात्मक साहित्य में लघुकथा का विशेष स्थान-मिथिलेश दीक्षित

सकारात्मक दिशा देने में सक्षम है समकालीन लघुकथा-सिद्धेश्वर

पटना (बिहार)।

विश्व कथा दिवस के अवसर पर लघुकथा के क्षेत्र में यह बहुत महत्वपूर्ण आयोजन हुआ है। कथात्मक साहित्य में लघुकथा का विशेष स्थान है। वर्तमान में यह सबसे अधिक लोकप्रिय और चर्चित विधा है।समाज के विभिन्न प्रभावों के बीच, तीव्र गति से बदलते परिवेश में लघुकथा ने अपना महत्वपूर्ण स्थान प्राप्त कर लिया है।
अध्यक्षीय उद्बोधन में लखनऊ से डॉ. मिथिलेश दीक्षित ने यह बात आभासी माध्यम द्वारा भारतीय युवा साहित्यकार परिषद और माधवी फाउण्डेशन के संयुक्त तत्वावधान में विश्व कथा दिवस के उपलक्ष्य में आयोजित लघुकथा सम्मेलन में कही। इसमें देश के अनेक नगरों के लघुकथाकारों की सहभागिता रही। परिषद की सचिव ऋचा वर्मा ने बताया कि, सम्मेलन का संचालन करते हुए संयोजक सिद्धेश्वर ने कहा कि, लघुकथा सिर्फ व्यक्तिगत समस्याओं को हमारे सामने नहीं लाती, बल्कि देश समाज यहां तक कि विश्व की समस्याओं और विकृतियों को भी अपना विषय बनाती है। हमारी विकृत मानसिकता को एक सकारात्मक दिशा देने में लघुकथा आज कामयाब है।
दूसरे सत्र की अध्यक्षता मंजू सक्सेना ने की। आपने कहा कि, वैश्विक साहित्य में हिंदी लघु कथा ने अपनी अलग पहचान बना रखी है। विजय कुमारी मौर्य सहित अनिता मिश्रा, सुधा पांडे और राजप्रिय रानी आदि ने भी लघुकथा पाठ किया।
सम्मेलन के प्रथम सत्र में मुख्य अतिथि डॉ. शरद नारायण खरे (मप्र) ने १२ लघुकथाओं का पाठ किया। उन्होंने एक से बढ़कर एक गीत, ग़ज़ल और कविताओं का सृजन किया। डॉ. खरे की लघुकथाओं पर डायरी पढ़ते हुए सिद्धेश्वर ने कहा कि, सामाजिक बुराइयों का पर्दाफाश करती है डॉ. शरद नारायण खरे की लघुकथाएं!
सम्मेलन के दूसरे सत्र में नलिनी श्रीवास्तव ने छपाक, रश्मि लहर ने सबक, सपना चंद्रा ने सुख और पूनम श्रेयसी ने खामोश दीवारें आदि लघुकथाओं का पाठ किया l

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