कुल पृष्ठ दर्शन : 184

You are currently viewing कभी खत्म नहीं होगी साहित्य अध्ययन की परम्परा

कभी खत्म नहीं होगी साहित्य अध्ययन की परम्परा

पटना (बिहार)।

साहित्य की परंपरा कभी खत्म नहीं होगी, क्योंकि यह मनुष्य की प्रवृत्ति से जुड़ा है। इतना जरूर है कि, इन दोनों में पढ़ने की अपेक्षा देखने और सुनने का काम ज्यादा हो रहा है। माध्यम भले बदल गए हो, किंतु संगीत और साहित्य आज भी आमजन के बीच जीवंत है और रहेगा।
यह बात डॉ. राजेंद्र सिंह साहिल ने अपने सम्मान के उत्तर में कही। साहित्यिक सांस्कृतिक संस्था जन साहित्य परिषद के तत्वावधान में फतुहा के मकसूदपुर स्थित संस्कार शिक्षा निकेतन के प्रांगण में लुधियाना (पंजाब) के हिंदी- पंजाबी के सुप्रसिद्ध कवि और सम्पादक डॉ. प्रो. सिंह साहिल के सम्मान में समारोह आयोजित किया गया। इसका उद्घाटन साहित्य प्रेमी डीएसपी सियाराम ने दीप प्रज्वलित कर किया। समारोह में ‘वर्तमान समय में साहित्य की दशा और दिशा’ विषय पर चर्चा हुई। चर्चा में भाग लेते हुए कथाकार-रंगकर्मी डॉ. किशोर सिन्हा ने कहा कि, साहित्य आज अनेक माध्यमों से आमजन तक पहुंच रहा है। प्रत्येक स्थिति में साहित्य के साथ हमारा संबंध बना रहेगा।लेखक डॉ. शशि भूषण सिंह ने तकनीक को मुद्रित साहित्य का सहयोगी बताया तथा कहा कि मुद्रित साहित्य की उपादेयता कभी खत्म नहीं होगी। कथाशिल्पी अशोक प्रजापति ने ऑनलाइन अध्ययन-अध्यापन को नुकसानदायक बताया।
विशिष्ट अतिथि वरिष्ठ कवि सिद्धेश्वर ने सोशल मीडिया के माध्यम से साहित्य के प्रसार को महत्वपूर्ण बताया। उन्होंने कहा कि, प्रिंट और सोशल मीडिया की अपनी अलग-अलग उपयोगिता है। सोशल मीडिया ने जन साहित्य को आमजन तक पहुंचाने का सार्थक और सकारात्मक प्रयास किया है।
इस अवसर पर डीएसपी ने डॉ. साहिल को परिषद की ओर से स्मृति चिन्ह, अंग-वस्त्र एवं सम्मान-पत्र भेंट किया। तत्पश्चात डॉ. किशोर सिंह लिखित उपन्यास ‘ताली” एवं साक्षात्कार संकलन ‘उनकी बातें’ का भी लोकार्पण किया गया। अंतिम सत्र में आचार्य विजय गुंजन, राम रक्षा मिश्र, कुमय कांत आदि गीतकारों ने काव्य पाठ किया। संचालन लघुकथाकार रामयतन यादव ने किया। समापन अनिता कुमारी के धन्यवाद से हुआ।