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कर्ज का दंश

ताराचन्द वर्मा ‘डाबला’
अलवर(राजस्थान)
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अरे! आ गए आप। आज बड़ी जल्दी आ गए।सब खैरियत तो है ? मैं कई दिनों से देख रही हूँ आप बहुत उदास उदास से नजर आ रहे हो। रमेश ने कोई जवाब नहीं दिया। उसके चेहरे से उदासी स्पष्ट झलक रही थी।
अच्छा ठीक है। आप हाथ-मुँह धो लो,मैं चाय बना कर लाती हूँ। शीला चाय बनाने रसोई में चली जाती है। रमेश के दिमाग में बार-बार एक ही बात घूम रही थी…-३ दिन में मेरे पैसे मिल जाने चाहिए। वर्ना जो तुमने खाली चैक दे रखा है,उसमें मनचाही रकम भर कर तुम्हारा जीना हराम कर दूंगा।
रमेश का दर्द के मारे सिर फटा जा रहा था। वो शिक्षा विभाग में बाबू था। उसकी तनख्वाह इतनी कम थी कि घर का खर्चा चलाना बड़ा मुश्किल हो रहा था। ऊपर से शीला की तबीयत खराब थी। उसके हृदय में ब्लाकेज था। चिकित्सक ने आपरेशन की सलाह दी थी। रमेश एक-एक पाई जोड़ कर आपरेशन के लिए पैसे इकट्ठे कर रहा था।साथ में महीने के महीने साहूकारों का ब्याज भी चुका रहा था। आज एक साहुकार ने उसको धमकी थी कि ३ दिन के भीतर मेरे पैसे नहीं चुकाए तो मैं तुम्हारा जीना हराम कर दूंगा।
रमेश अन्दर ही अन्दर टूट गया था। उसके हाथ-पैर कांप रहे थे। उससे कुछ भी नहीं बन पा रहा था।
शीला चाय लेकर आती है। रमेश को चाय देकर उसके पैर दबाने लगती है।
क्या बात है ? आप इतने उदास क्यों हो ? शीला ने पूछा।
रमेश बताना तो नहीं चाह रहा था लेकिन बार-बार पूछने पर उसे बताना पड़ा।
आज स्कूल में गाँव का साहूकार आया था। उसने मुझे धमकी दी है कि ३ दिन में मेरे पैसे वापिस नहीं लौटाए तो मुझसे बुरा कोई नहीं होगा। शीला मैंने उससे ३ साल पहले १ लाख रुपए उधार लिए थे, और उसके बदले में उसको सवा लाख रुपए दे चुका हूँ लेकिन वो मान ही नहीं रहा है। कहता है कि वो तो मैंने ब्याज में भर लिए है। लोगों का ईमान खो गया है।
शीला का दिल धक-धक करने लगा। वो घबरा गई थी लेकिन उसने हिम्मत नहीं हारी। कहने लगी-आप हिम्मत मत हारिए। भगवान पर भरोसा रखिए। ऐसे सूदखोरों को भगवान कभी माफ नहीं करेगा।
रमेश के २ बच्चे थे। बड़ा बेटा समझदार था। वो सुख दुःख की बातों को समझता था। मम्मी-पापा की बात सुनकर दुःखी हो रहा था।
रमेश को कुछ भी नहीं सूझ रहा था। वो मन ही मन सोच रहा था कि इतने सारे पैसे कैसे चुका पाऊंगा। बार-बार उसके दिमाग में वो शब्द गूंज रहे थे ‘तुम्हारा जीना हराम कर दूंगा।’ उसके दिमाग में उथल-पुथल मच रहीथी। सिर फटा जा रहा था। वो घोर चिंता में डूबा हुआ अपनी किस्मत को कोस रहा था। शीला को समझ नहीं आ रहा था कि क्या किया जाए। घर के सारे जेवर भी बिक गए थे।
उसने धीरे से कहा-सुनिए मेरे आपरेशन के लिए जो पैसे…!
रमेश ने बीच में ही बात काटते हुए कहा-ये क्या कह रही हो तुम ! तुम्हारे आपरेशन के लिए मैं एक- एक पाई जोड़ रहा हूँ और तुम… नहीं नहीं ये नहीं हो सकता।
क्यों नहीं हो सकता जी। मैं कोई मर थोड़ी जाऊंगी। और फिर अभी कुछ दिन पहले ही तो डाक्टर को दिखा कर आए हैं। वो कह रहे थे कि घबराने की कोई बात नहीं है। अब आप मेरी चिंता करना बिल्कुल छोड़ दीजिए। मुझे कुछ नहीं होगा।
शीला की बात सुनकर रमेश की आँखों में आँसू आ गए। वो कुछ समझ नहीं पा रहा था। सोच रहा था कि शीला को कुछ हो गया तो मेरा क्या होगा ? मेरे बच्चों का क्या होगा ? नहीं-नहीं,मैं ऐसा नहीं करुंगा। पहले में शीला का आपरेशन करवाऊंगा।
क्या सोच रहे हो। चिन्ता करने की कोई जरूरत नहीं है। मेरा आपरेशन तो बाद में भी हो जाएगा, पहले उस सूदखोर के पैसे चुकाएंगे। ईश्वर सब देख रहा है। अगर वो हमसे बेईमानी कर रहा है तो वो कभी सुखी नहीं रह सकता। हमारे भी अच्छे दिन जरूर आएंगे। शीला ने अपने पति रमेश को समझाते हुए उसे ढांढस बंधाया।
शीला ने दोनों बच्चों को खाना खिलाकर सुला दिया। रमेश को नींद नहीं आ रही थी। वो सोच रहा था कि शीला ने आज मुझे कितनी हिम्मत दी है। वो मेरी पत्नी ही नहीं,बल्कि मेरी ताकत है। मेरी सब- कुछ है। सोचते-सोचते रमेश को नींद आ गई।
सुबह दैनिक कार्यों से निवृत्त होकर रमेश आफिस जाने के लिए तैयार हो जाता है। आज उसके चेहरे पर थोड़ी मुस्कान थी। रमेश आफिस चला जाता है। शीला बच्चों का टिफिन तैयार कर उन्हें भी शाला भेज देती है।
शीला अपने घरेलू काम-काज में लग जाती है। वो बहुत उदास है। उसका किसी भी काम में मन नहीं लग रहा था। उसके मन में बार-बार अपने पति रमेश का ख्याल आ रहा था। कैसी किस्मत पाई है उन्होंने,पहले अपने माँ-बाप का इलाज करवाया। अब कई सालों से मेरा इलाज करवा रहे हैं। कर्जा नहीं होगा तो और क्या होगा ? बेचारे कितना ख्याल रखते हैं मेरा। ऐसा पति सबको मिले।
शीला की आँखों से आँसू बह रहे थे। उसका हृदय धक-धक कर रहा था। उसके मन में तरह-तरह के ख्याल आ रहें थे। वो ईश्वर से प्रार्थना कर रही थी कि हे भगवान मेरे पति का बाल भी बांका न हो। वो लम्बी उम्र जीए। मेरी उम्र भी उनको लग जाए। ये सोचते-सोचते शीला को अचानक सीने में बहुत तेज दर्द उठा और वो कब बेहोश हो गई,किसी को भी पता नहीं चला। काफी देर बाद जब दूध वाला दूध देने आया तो शीला को देख कर चौंक गया। उसने लोगों को आवाज लगाई। धीरे-धीरे रमेश के घर पर लोगों का जमावड़ा लग गया। पड़ोस के घनश्याम ने रमेश को फोन पर शीला के अचेत होने की बात बताई। ये सुनते ही रमेश के पैरों तले से जमीन खिसक गई। वो गिरते-पड़ते जैसे-तैसे घर पहुंचा। शीला मर चुकी थी। रमेश अपने-आपको सम्भाल नहीं पा रहा था। उसका रो-रोकर बुरा हाल था। शीला तुम मुझे छोड़कर नहीं जा सकती। मैं तुम्हारे बिना जिन्दा नहीं रह सकता। हम दोनों हर मुश्किल का सामना करेंगे। रमेश की आँखों से आँसू रुकने का नाम नहीं ले रहे थे। लोग तरह-तरह की बातें करने लगे। कोई कह रहा था-बेचारी को हार्टअटैक आया है तो कोई कह रहा था-बेचारी बहुत दिनों से बीमार थी,लेकिन रमेश जानता था कि उसके मरने का कारण उसका कर्ज था,जिसका दंश उसे झेलना पड़ा।

परिचय- ताराचंद वर्मा का निवास अलवर (राजस्थान) में है। साहित्यिक क्षेत्र में ‘डाबला’ उपनाम से प्रसिद्ध श्री वर्मा पेशे से शिक्षक हैं। अनेक पत्र-पत्रिकाओं में कहानी,कविताएं एवं आलेख प्रकाशित हो चुके हैं। आप सतत लेखन में सक्रिय हैं।

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