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कविता बिखरी.है…

निर्मल कुमार जैन ‘नीर’ 
उदयपुर (राजस्थान)
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पहाड़ों से
गिरते झरनों में,
कल-कल
बहती नदियों में,
कविता
बिखरी पड़ी हैl

प्रकृति की
सुरम्य गोद में,
पंछियों के
मधुर कलरव में,
कविता
बिखरी पड़ी हैl

महकते
गुलाबी फूलों में,
फल-फूलों से
लदे वन-बगीचों में,
कविता
बिखरी पड़ी हैl

भौरों के
मधुर गुंजन में,
रंग-बिरंगी
उड़ती तितलियों में,
कविता
बिखरी पड़ी हैl

भूख से
तड़पते किसानों में,
दीनहीन
श्रमिक मजदूरों में,
कविता
बिखरी पड़ी हैl

मन्दिरों में
बजते हुए शंखनाद,
और घण्टों में
मस्जिदों में,
होती अजानों में
कविता
बिखरी पड़ी हैl

बच्चों की
निःश्छल मुस्कान में,
लाचार बूढ़े
माँ-बाप के अंतर्मन में
छुपी हुई पीड़ा में,
कविता
बिखरी पड़ी हैl

पेड़ों की
शीतल छाँव में,
सुगन्धित
बहती हवाओं में,
माटी के
कण-कण में
कविता
बिखरी पड़ी है…ll

परिचय-निर्मल कुमार जैन का साहित्यिक उपनाम ‘नीर’ है। आपकी जन्म तिथि ५ मई १९६९ और जन्म स्थान-ऋषभदेव है। वर्तमान पता उदयपुर स्थित हिरणमगरी (राजस्थान)एवं स्थाई गोरजी फला ऋषभदेव जिला-उदयपुर(राज.)है। आपने हिंदी और संस्कृत में स्नातकोत्तर किया है। कार्य क्षेत्र-शिक्षक का है।  सामाजिक व धार्मिक गतिविधियों में निरंतर सहभागिता करते हैं। श्री जैन की लेखन विधा-हाइकु,मुक्तक तथा गद्य काव्य है। लेखन में प्रेरणा पुंज-माता-पिता और धर्मपत्नी है। रचनाओं का प्रकाशन विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं में हुआ है। इनकी लेखनी का उद्देश्य-हिंदी भाषा को समृद्ध व प्रचार-प्रसार करना है। 

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