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कश्मीरः ट्रंप की मध्यस्थता ?

डॉ.वेदप्रताप वैदिक
गुड़गांव (दिल्ली) 
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अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प ने अपने मेहमान इमरान खान से कह दिया कि नरेंद्र मोदी ने पिछली मुलाकात में उनसे निवेदन किया था कि वे कश्मीर के मामले में मध्यस्थता करें। इस बयान ने हमारे विदेश मंत्रालय में भूकंप ला दिया है। रात देर गए उसने ट्रम्प के दावे का खंडन किया। अब कैसे मालूम करें कि कौन सही है ? ट्रम्प या हमारा विदेश मंत्रालय ? जहां तक ट्रम्प का सवाल है,उन्हें अमेरिकी अखबारों ने ‘झूठों के सरदार’ की उपाधि दे रखी है। ‘वाशिंगटन पोस्ट’ के मुताबिक ट्रम्प एक दिन में औसत १७ बार झूठ बोलते हैं। उन्होंने अपने दो साल के कार्यकाल में ८१५८ बार झूठ बोला है। कश्मीर पर मध्यस्थता की जो बात उन्होंने कही है,वह भी इसी श्रेणी में रखने की इच्छा होती है लेकिन इसमें एक अन्य संभावना भी हो सकती है। वह यह कि ट्रम्प ने मोदी से पूछा हो कि आप कश्मीर-समस्या हल क्यों नहीं करते ? इस पर मोदी ने कह दिया हो कि आप भी कोशिश कर लीजिए। इसे ट्रम्प ने मध्यस्थता समझ लिया हो। समझा न हो तो भी इमरान के मध्यस्थता के सुझाव के जवाब में उन्होंने मध्यस्थता शब्द का प्रयोग कर दिया। कश्मीर मसले पर १९४८ में संयुक्त राष्ट्र संघ को बीच में डालकर नेहरुजी पछताए और बाद में जब भी कुछ विश्व नेताओं ने मध्यस्थता की पेशकश की,भारत ने रद्द कर दी। कुछ माह पहले नार्वे के पूर्व प्रधानमंत्री और पाकिस्तान के एक पूर्व राष्ट्रपति ने मुझे सुझाव दिया था कि मध्यस्थता का रास्ता अपनाया जाए। मैं खुद कुछ पहल करुं। मैंने अनौपचारिक बातचीत को तो ठीक बताया लेकिन औपचारिक तौर पर सरकारी मध्यस्थता को नकारना पड़ा। वैसे भी इस समय ट्रम्प को अफगानिस्तान और तालिबान से अमेरिका का पिंड छुड़ाना है। इसीलिए,उन्होंने इमरान को वाशिंगटन आने दिया है और उनसे वे लल्लो-चप्पो करना चाहेंगे। इमरान का यह सोच स्वाभाविक है कि जैसे अमेरिकी मध्यस्थता से तालिबान का मामला हल हो रहा है,वैसे ही कश्मीर का मसला भी हल हो जाए लेकिन दोनों मामलों में बहुत फर्क है। मैं कश्मीर पर भारत-पाक संवाद के पक्ष में तो हूँ लेकिन किसी बिचौलिए को अनावश्यक मानता हूँ।
ट्रम्प के तेवर कितना ही भारत-प्रेम प्रकट करते हों,लेकिन वे स्वयं इस योग्य नहीं हैं कि किसी भी अंतरराष्ट्रीय विवाद में वे मध्यस्थता कर सकें।

परिचय-डाॅ.वेदप्रताप वैदिक की गणना उन राष्ट्रीय अग्रदूतों में होती है,जिन्होंने हिंदी को मौलिक चिंतन की भाषा बनाया और भारतीय भाषाओं को उनका उचित स्थान दिलवाने के लिए सतत संघर्ष और त्याग किया। पत्रकारिता सहित राजनीतिक चिंतन, अंतरराष्ट्रीय राजनीति और हिंदी के लिए अपूर्व संघर्ष आदि अनेक क्षेत्रों में एकसाथ मूर्धन्यता प्रदर्शित करने वाले डाॅ.वैदिक का जन्म ३० दिसम्बर १९४४ को इंदौर में हुआ। आप रुसी, फारसी, जर्मन और संस्कृत भाषा के जानकार हैं। अपनी पीएच.डी. के शोध कार्य के दौरान कई विदेशी विश्वविद्यालयों में अध्ययन और शोध किया। अंतर्राष्ट्रीय राजनीति में पीएच.डी. की उपाधि प्राप्त करके आप भारत के ऐसे पहले विद्वान हैं, जिन्होंने अंतरराष्ट्रीय राजनीति का शोध-ग्रंथ हिन्दी में लिखा है। इस पर उनका निष्कासन हुआ तो डाॅ. राममनोहर लोहिया,मधु लिमये,आचार्य कृपालानी,इंदिरा गांधी,गुरू गोलवलकर,दीनदयाल उपाध्याय, अटल बिहारी वाजपेयी सहित डाॅ. हरिवंशराय बच्चन जैसे कई नामी लोगों ने आपका डटकर समर्थन किया। सभी दलों के समर्थन से तब पहली बार उच्च शोध के लिए भारतीय भाषाओं के द्वार खुले। श्री वैदिक ने अपनी पहली जेल-यात्रा सिर्फ १३ वर्ष की आयु में हिंदी सत्याग्रही के तौर पर १९५७ में पटियाला जेल में की। कई भारतीय और विदेशी प्रधानमंत्रियों के व्यक्तिगत मित्र और अनौपचारिक सलाहकार डॉ.वैदिक लगभग ८० देशों की कूटनीतिक और अकादमिक यात्राएं कर चुके हैं। बड़ी उपलब्धि यह भी है कि १९९९ में संयुक्त राष्ट्र संघ में भारत का प्रतिनिधित्व किया है। आप पिछले ६० वर्ष में हजारों लेख लिख और भाषण दे चुके हैं। लगभग १० वर्ष तक समाचार समिति के संस्थापक-संपादक और उसके पहले अखबार के संपादक भी रहे हैं। फिलहाल दिल्ली तथा प्रदेशों और विदेशों के लगभग २०० समाचार पत्रों में भारतीय राजनीति और अंतरराष्ट्रीय राजनीति पर आपके लेख निरन्तर प्रकाशित होते हैं। आपको छात्र-काल में वक्तृत्व के अनेक अखिल भारतीय पुरस्कार मिले हैं तो भारतीय और विदेशी विश्वविद्यालयों में विशेष व्याख्यान दिए एवं अनेक अन्तरराष्ट्रीय सम्मेलनों में भारत का प्रतिनिधित्व किया है। आपकी प्रमुख पुस्तकें- ‘अफगानिस्तान में सोवियत-अमेरिकी प्रतिस्पर्धा’, ‘अंग्रेजी हटाओ:क्यों और कैसे ?’, ‘हिन्दी पत्रकारिता-विविध आयाम’,‘भारतीय विदेश नीतिः नए दिशा संकेत’,‘एथनिक क्राइसिस इन श्रीलंका:इंडियाज आॅप्शन्स’,‘हिन्दी का संपूर्ण समाचार-पत्र कैसा हो ?’ और ‘वर्तमान भारत’ आदि हैं। आप अनेक राष्ट्रीय-अंतर्राष्ट्रीय पुरस्कारों और सम्मानों से विभूषित हैं,जिसमें विश्व हिन्दी सम्मान (२००३),महात्मा गांधी सम्मान (२००८),दिनकर शिखर सम्मान,पुरुषोत्तम टंडन स्वर्ण पदक, गोविंद वल्लभ पंत पुरस्कार,हिन्दी अकादमी सम्मान सहित लोहिया सम्मान आदि हैं। गतिविधि के तहत डॉ.वैदिक अनेक न्यास, संस्थाओं और संगठनों में सक्रिय हैं तो भारतीय भाषा सम्मेलन एवं भारतीय विदेश नीति परिषद से भी जुड़े हुए हैं। पेशे से आपकी वृत्ति-सम्पादकीय निदेशक (भारतीय भाषाओं का महापोर्टल) तथा लगभग दर्जनभर प्रमुख अखबारों के लिए नियमित स्तंभ-लेखन की है। आपकी शिक्षा बी.ए.,एम.ए. (राजनीति शास्त्र),संस्कृत (सातवलेकर परीक्षा), रूसी और फारसी भाषा है। पिछले ३० वर्षों में अनेक भारतीय एवं विदेशी विश्वविद्यालयों में अन्तरराष्ट्रीय राजनीति एवं पत्रकारिता पर अध्यापन कार्यक्रम चलाते रहे हैं। भारत सरकार की अनेक सलाहकार समितियों के सदस्य,अंतरराष्ट्रीय राजनीति के विशेषज्ञ और हिंदी को विश्व भाषा के रूप में प्रतिष्ठित करने के लिए कृतसंकल्पित डॉ.वैदिक का निवास दिल्ली स्थित गुड़गांव में है।

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