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कश्मीर में लोकतंत्र की वापसी जरुरी

डॉ.वेदप्रताप वैदिक
गुड़गांव (दिल्ली) 
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पंचायती राज दिवस के उपलक्ष्य में प्रधानमंत्री ने जम्मू में ऐसी परियोजनाओं का शिलान्यास किया है, जिनसे जम्मू-कश्मीर की जनता को बड़ी राहत मिलेगी। २० हजार करोड़ रु. सरकार लगाएगी और ३८ हजार करोड़ रु. का निवेश पिछले २ साल में हो चुका है। प्रधानमंत्री के साथ दुबई और अबू धाबी के निवेशकों के इस निवेश से कश्मीर के लोगों की सुविधाएं बढ़ेंगी और लाखों नए रोजगार भी पैदा होंगे। जम्मू के पत्ली गाँव में सौर परियोजना का शुभारंभ करके उन्होंने सारे देश को संदेश दिया है कि भारत चाहे तो अगले कुछ ही वर्षों में बिजली, ईंधन और तेल के प्रदूषण से मुक्त हो सकता है। बनीहाल से क़ाजीगुंड तक की सुरंग जैसे कई निर्माण-कार्य होंगे, जिनके परिणामस्वरुप आवागमन और यातायात अधिक सुरक्षित और सुगम हो जाएगा। केंद्र सरकार आजकल जम्मू-कश्मीर के लिए पहले की तुलना में ज्यादा योगदान कर रही है। उसके कुल खर्च का ६४ प्रतिशत हिस्सा केंद्र सरकार देती है। देश के बहुत कम राज्यों को इतनी बड़ी मात्रा में केंद्र सरकार की मदद मिलती है। जम्मू-कश्मीर के लिए की गई इन घोषणाओं का स्वागत है लेकिन यह बड़ा सवाल भी विचारणीय है कि देश में पंचायतों को हमने अधिकार कितने दिए हैं ? पंचायतों को ताकतवर बनाने का अर्थ है-सत्ता का विकेंद्रीकरण! क्या केंद्र और राज्यों की सरकारें इसके लिए सहर्ष तैयार हैं। जम्मू-कश्मीर में लोगों की शिकायत यह भी है कि अगस्त २०१९ में उसका जो विशेष दर्जा खत्म किया गया था, उसे केंद्र सरकार कब तक अधर में लटकाए रखेगी ? प्रधानमंत्री और गृहमंत्री दोनों ने आश्वासन दिया था कि उसे राज्य का दर्जा फिर से वापस किया जाएगा। गुपकर गठबंधन ने उस विशेष दर्जे की मांग जोरों से की है। उसने २०२० के जिला विकास परिषद के चुनावों में स्पष्ट विजय भी हासिल की थी। उसे यह शिकायत भी है कि विधानसभा में जम्मू की ६ सीटें बढ़ाकर कश्मीर को हल्का किया जा रहा है। कश्मीरी नेताओं का वर्तमान प्रतिबंधों से दम घुट रहा है, इसमें शक नहीं है लेकिन कश्मीर में पहले के मुकाबले इस समय शांति और व्यवस्था बेहतर है, यह भी सत्य है। आतंकी घटनाएं भी कभी-कभी होती रहती हैं लेकिन बड़े पैमाने पर कोई आतंकी घटना की खबर नहीं है। इसका श्रेय मुस्तैद उप-राज्यपाल मनोज सिन्हा और उनके योग्य अफसरों को है लेकिन जम्मू-कश्मीर में सामान्य स्थिति तभी बनेगी, जब लोकतांत्रिक प्रक्रिया वहां बाक़ायदा शुरु हो जाएगी। अब जम्मू-कश्मीर बाहरी लोगों के लिए भी खुल गया है। वे वहां अन्य प्रांतों की तरह जाकर रह सकते हैं। गर्मियों में पर्यटकों की संख्या बढ़ जाने से लाखों लोगों की आर्थिक राहत भी बढ़ी है। इसके अलावा पाकिस्तान सरकार से उम्मीद की जाती है कि वह सीमा-पार आतंकवाद पर सख्ती से काबू करेगी और कश्मीर के सवाल पर भारत सरकार के साथ सार्थक संवाद भी करेगी। प्रधानमंत्री ने जम्मू-कश्मीरियों को जो यह संदेश दिया है कि आपके माता-पिता और उनके माता-पिता ने जैसी तकलीफें सही हैं, वैसी आपको अब नहीं सहनी पड़ेंगी, अपने -आपमें दिल को छूने वाला है। उम्मीद है कि ऐसा माहौल कश्मीर में शीघ्र ही बन सकेगा। कश्मीर में लोक-कल्याण तो बढ़ गया है लेकिन लोकतंत्र की वापसी भी उतनी ही जरुरी है।

परिचय– डाॅ.वेदप्रताप वैदिक की गणना उन राष्ट्रीय अग्रदूतों में होती है,जिन्होंने हिंदी को मौलिक चिंतन की भाषा बनाया और भारतीय भाषाओं को उनका उचित स्थान दिलवाने के लिए सतत संघर्ष और त्याग किया। पत्रकारिता सहित राजनीतिक चिंतन, अंतरराष्ट्रीय राजनीति और हिंदी के लिए अपूर्व संघर्ष आदि अनेक क्षेत्रों में एकसाथ मूर्धन्यता प्रदर्शित करने वाले डाॅ.वैदिक का जन्म ३० दिसम्बर १९४४ को इंदौर में हुआ। आप रुसी, फारसी, जर्मन और संस्कृत भाषा के जानकार हैं। अपनी पीएच.डी. के शोध कार्य के दौरान कई विदेशी विश्वविद्यालयों में अध्ययन और शोध किया। अंतर्राष्ट्रीय राजनीति में पीएच.डी. की उपाधि प्राप्त करके आप भारत के ऐसे पहले विद्वान हैं, जिन्होंने अंतरराष्ट्रीय राजनीति का शोध-ग्रंथ हिन्दी में लिखा है। इस पर उनका निष्कासन हुआ तो डाॅ. राममनोहर लोहिया,मधु लिमये,आचार्य कृपालानी,इंदिरा गांधी,गुरू गोलवलकर,दीनदयाल उपाध्याय, अटल बिहारी वाजपेयी सहित डाॅ. हरिवंशराय बच्चन जैसे कई नामी लोगों ने आपका डटकर समर्थन किया। सभी दलों के समर्थन से तब पहली बार उच्च शोध के लिए भारतीय भाषाओं के द्वार खुले। श्री वैदिक ने अपनी पहली जेल-यात्रा सिर्फ १३ वर्ष की आयु में हिंदी सत्याग्रही के तौर पर १९५७ में पटियाला जेल में की। कई भारतीय और विदेशी प्रधानमंत्रियों के व्यक्तिगत मित्र और अनौपचारिक सलाहकार डॉ.वैदिक लगभग ८० देशों की कूटनीतिक और अकादमिक यात्राएं कर चुके हैं। बड़ी उपलब्धि यह भी है कि १९९९ में संयुक्त राष्ट्र संघ में भारत का प्रतिनिधित्व किया है। आप पिछले ६० वर्ष में हजारों लेख लिख और भाषण दे चुके हैं। लगभग १० वर्ष तक समाचार समिति के संस्थापक-संपादक और उसके पहले अखबार के संपादक भी रहे हैं। फिलहाल दिल्ली तथा प्रदेशों और विदेशों के लगभग २०० समाचार पत्रों में भारतीय राजनीति और अंतरराष्ट्रीय राजनीति पर आपके लेख निरन्तर प्रकाशित होते हैं। आपको छात्र-काल में वक्तृत्व के अनेक अखिल भारतीय पुरस्कार मिले हैं तो भारतीय और विदेशी विश्वविद्यालयों में विशेष व्याख्यान दिए एवं अनेक अन्तरराष्ट्रीय सम्मेलनों में भारत का प्रतिनिधित्व किया है। आपकी प्रमुख पुस्तकें- ‘अफगानिस्तान में सोवियत-अमेरिकी प्रतिस्पर्धा’, ‘अंग्रेजी हटाओ:क्यों और कैसे ?’, ‘हिन्दी पत्रकारिता-विविध आयाम’,‘भारतीय विदेश नीतिः नए दिशा संकेत’,‘एथनिक क्राइसिस इन श्रीलंका:इंडियाज आॅप्शन्स’,‘हिन्दी का संपूर्ण समाचार-पत्र कैसा हो ?’ और ‘वर्तमान भारत’ आदि हैं। आप अनेक राष्ट्रीय-अंतर्राष्ट्रीय पुरस्कारों और सम्मानों से विभूषित हैं,जिसमें विश्व हिन्दी सम्मान (२००३),महात्मा गांधी सम्मान (२००८),दिनकर शिखर सम्मान,पुरुषोत्तम टंडन स्वर्ण पदक, गोविंद वल्लभ पंत पुरस्कार,हिन्दी अकादमी सम्मान सहित लोहिया सम्मान आदि हैं। गतिविधि के तहत डॉ.वैदिक अनेक न्यास, संस्थाओं और संगठनों में सक्रिय हैं तो भारतीय भाषा सम्मेलन एवं भारतीय विदेश नीति परिषद से भी जुड़े हुए हैं। पेशे से आपकी वृत्ति-सम्पादकीय निदेशक (भारतीय भाषाओं का महापोर्टल) तथा लगभग दर्जनभर प्रमुख अखबारों के लिए नियमित स्तंभ-लेखन की है। आपकी शिक्षा बी.ए.,एम.ए. (राजनीति शास्त्र),संस्कृत (सातवलेकर परीक्षा), रूसी और फारसी भाषा है। पिछले ३० वर्षों में अनेक भारतीय एवं विदेशी विश्वविद्यालयों में अन्तरराष्ट्रीय राजनीति एवं पत्रकारिता पर अध्यापन कार्यक्रम चलाते रहे हैं। भारत सरकार की अनेक सलाहकार समितियों के सदस्य,अंतरराष्ट्रीय राजनीति के विशेषज्ञ और हिंदी को विश्व भाषा के रूप में प्रतिष्ठित करने के लिए कृतसंकल्पित डॉ.वैदिक का निवास दिल्ली स्थित गुड़गांव में है।

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