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कितना खोजें इतिहास…

शशि दीपक कपूर
मुंबई (महाराष्ट्र)
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नई संसद में भारत के पौराणिक नक्शे को देख जिज्ञासा हुई, क्या सच में ! हमारे भारतवर्ष की सीमाएं आदिकाल से ही इतनी विस्तृत फैली हुई थी। उसी क्षण यह स्मरण हो आया कि शाला की भूगोल व इतिहास की पुस्तकों में यह नक्शा भी देखा था। पौराणिक कई संस्कृत आचार्यों का जन्मस्थल व सभ्यता-संस्कृति की जननी भी यही स्थल रहा। इनके अलावा जिसका उल्लेख चीन व अरब के विद्वानों अपनी यात्रा के अनुभवों को अपनी रचनाओं में दर्शाया है।
क्या कहें… कितना खोजें इतिहास, यह जानकर बहुत वेदना होती है कि हिन्दू सभ्यता और संस्कृति कैसे आगे बढ़ते समय के साथ संकुचित होती रही है। यानि इतने वृहत् स्तर पर हिन्दू सभ्यता को नष्ट करने की कोशिशें की गई, किन्तु वे जड़ें आज तक बरगद के वृक्ष की भांति तटस्थ खड़ी हैं। वर्तमान में भारत की सीमा से लगे सब देशों के बारे जानने से ज्ञात होता है कि, भारतीय धर्म, संस्कृत व सभ्यता उतनी पुरानी है जब से मानव सभ्यता का विकास आरंभ हुआ होगा।
आज जिस स्थल को विस्तार से जानने का मन हुआ, वह प्रसिद्ध है ऐसे, जैसे-कंधार ( गंधार) के लाल कलमी अनार, सूखे मेवे- नेजे, काजू, बादाम, पिस्ता, चिल्लगोजे और फल लाल आम, साथ ही अपार बहुमूल्य रासायनिक खनिज पदार्थों की खदानें, रहस्यमयी गुफाएं, मानव सभ्यता व संस्कृति का प्राचीनतम भंडार आदि सब कुछ प्रकृति प्रदत्त अनमोल देन है।
कहावतों में प्रसिद्ध है-जो सुख छज्जु के चौबारे, ओ बल्क न बखारे। ‘छज्जु’ एक हिंदू धर्मात्मा व्यक्ति का नाम है और ‘बल्क’ और बखारे प्रांतों के नाम। कंधार (गंधार), कपिसा (कपि संस्कृत शब्द), बमयन (वामन या ब्राह्मण), दायकुंडी (कुंडी, पंजाबी लोक भाषा में), समरकंद (समर-युद्ध, कंद-भूमि में गढ़ा पदार्थ) आदि अनेक शब्द बताते हैं हिंदू संस्कृति-सभ्यता और साहित्यिक भाषा संस्कृत के उदय व उनके रचयिताओं के संबंध में।
दक्षिण एशिया का एक इस्लामिक देश है ‘अफगानिस्तान’। १७०० ई.पू. अफ़ग़ानिस्तान नाम का शब्द दुनिया के अस्तित्व में नहीं था। जाहिर है अविभाजित भारत के टुकड़े करने पहले ही अंग्रेजी शासक भारत के धीरे-धीरे हिस्से कर रहे थे।

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