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किसान का दर्द

डीजेंद्र कुर्रे ‘कोहिनूर’ 
बलौदा बाजार(छत्तीसगढ़)
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हल चलाते किसान,परिश्रम खूब करते हैं,
लेकिन सेठ साहूकार अपनी तिजोरी भरते हैं।
कितनी भी मुसीबत हो किसान धैर्य धरते हैं,
कौन समझे किसान का दर्द,वे कितना तड़पते हैं॥

स्वयं भूखे रहकर,औरों को भोजन कराते हैं,
परिवार का पालन करते,बच्चों को पढ़ाते हैं।
धूप हो या वर्षा हो,परिश्रम निरंतर करते हैं,
कौन समझे किसान का दर्द,वे कितना तड़पते हैं॥

बेटी का ब्याह रचाने को,जमीन भी गिरवी रखते हैं,
टूट पड़ता दु:ख उन पर,वे छुपकर सिसकते हैं।
समाज में मान बचाने को,सारे यत्न ओ करते हैं,
कौन समझे किसान का दर्द,वे कितना तड़पते हैं॥

सूखे की मार पड़े तो,दाने को मोहताज हो जाते हैं,
गरीबी की ये जिंदगी को,कैसे-कैसे बिताते हैं।
महंगाई की इस दुनिया में,कर्जदार ही रहते हैं,
कौन समझे किसान का दर्द,वे कितना तड़पते हैं॥

परिचय-डीजेंद्र कुर्रे का निवास पीपरभौना बलौदाबाजार(छत्तीसगढ़) में है। इनका साहित्यिक उपनाम ‘कोहिनूर’ है। जन्मतारीख ५ सितम्बर १९८४ एवं जन्म स्थान भटगांव (छत्तीसगढ़) है। श्री कुर्रे की शिक्षा बीएससी (जीवविज्ञान) एवं एम.ए.(संस्कृत,समाजशास्त्र, हिंदी साहित्य)है। कार्यक्षेत्र में बतौर शिक्षक कार्यरत हैं। आपकी लेखन विधा कविता,गीत, कहानी,मुक्तक,ग़ज़ल आदि है। सामाजिक गतिविधि के अंतर्गत योग,कराटे एवं कई साहित्यिक संस्थाओं में भी पदाधिकारी हैं। डीजेंद्र कुर्रे की रचनाएँ काव्य संग्रह एवं कई पत्र-पत्रिकाओं में प्रकाशित है। विशेष उपलब्धि कोटा(राजस्थान) में द्वितीय स्थान पाना तथा युवा कलमकार की खोज मंच से भी सम्मानित होना है। इनके लेखन का मुख्य उद्देश्य समाज में फैली कुरीतियां,आडंबर,गरीबी,नशा पान, अशिक्षा आदि से समाज को रूबरू कराकर जागृत करना है।

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