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कुंदन बनना है मुझको

ममता तिवारी ‘ममता’
जांजगीर-चाम्पा(छत्तीसगढ़)
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खिलवाड़ की यह कथा है,
मेरी बुलायी व्यथा है।
वनदेवी सुनो कहानी अन्यों से-
तनिक पृथा है॥

सुख-संतुष्टि अति हुआ जब,
मति फिरती मानव की तब।
उपदेश कभी ना सुनता-
मन चंचल शांत रहा कब॥

मन हो जाता है द्रोही,
सुख ऊपर सुख का टोही।
उत्तम से अत्युत्तम खोजे-
निज से ही बने विमोही॥

माना द्रव द्रव्य होता,
धन चमक पर भव्य होता।
आह! पूर्व समझ न पाया-
यह जीवन न हव्य होता॥

सुख ही सुख हो जीवन में,
बसता घन धन तन-मन में।
तब सम्पत्ति अहम बढ़कर-
मनुष्य उड़ाता मनुष्य गगन में॥

इस अहंकार में पड़कर,
मैं आज हुआ हूँ पथकर।
कुंदन बनना है मुझको-
सभी ताप-विपत्ति तपकर॥

होती शुभ निधि विनम्रता,
नारी की निधि पतिव्रता।
सार्थक नैन कहाता जब-
हो अन्य दुखी आद्रता॥

भीतर एक द्वंद चला है,
मन घोल-घोल मथता है।
लगता था पूर्व लड़कपन-
अब नील विवेक बढ़ा है॥

परिचय–ममता तिवारी का जन्म १अक्टूबर १९६८ को हुआ है। वर्तमान में आप छत्तीसगढ़ स्थित बी.डी. महन्त उपनगर (जिला जांजगीर-चाम्पा)में निवासरत हैं। हिन्दी भाषा का ज्ञान रखने वाली श्रीमती तिवारी एम.ए. तक शिक्षित होकर समाज में जिलाध्यक्ष हैं। इनकी लेखन विधा-काव्य(कविता ,छंद,ग़ज़ल) है। विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं में आपकी रचनाएं प्रकाशित हैं। पुरस्कार की बात की जाए तो प्रांतीय समाज सम्मेलन में सम्मान,ऑनलाइन स्पर्धाओं में प्रशस्ति-पत्र आदि हासिल किए हैं। ममता तिवारी की लेखनी का उद्देश्य अपने समय का सदुपयोग और लेखन शौक को पूरा करना है।