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कुछ ना कहो

डॉ.मधु आंधीवाल
अलीगढ़(उत्तर प्रदेश)
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सुगुनी का विवाह अपने से बड़ी उम्र के आदमी किशना से हो गया था। किशना अच्छा पैसे वाला शख्स था। उसका बहुत पैसा सुगुनी के बाप राम चन्द्र पर उधार था। राम चन्द्र कैसे भी उस पैसे को नहीं चुका पा रहा था। किशना की पहली बीबी चार बच्चों को छोड़ कर परलोक सिधार गई थी।
जब कर्ज नहीं चुका पाया तो किशना ने कहा कि अपनी बेटी का विवाह मेरे साथ कर दो,मेरे को भी और मेरे बच्चों को भी घर में किसी महिला का होना जरूरी है। किशना और सुगुनी में २० साल का अन्तर था। वह १८ की थी,वह ३८ का। बच्चे भी बड़े-बड़े थे। वह मन से सुगुना को माँ न मानते थे। धीरे-धीरे समय कट रहा था। सुगुना के कोई सन्तान नहीं हुई,फिर भी उसने किशना से कभी शिकायत नहीं की।
बच्चे उसे माँ मानते ही नहीं थे,पर उसे तो अपना कर्तव्य निभाना था। धीरे-धीरे सबकी शादी हो गई। लड़कियां ससुराल चली गई और लड़के-बहू और पैसा लेकर शहर में बस गए। सुगुनी और किशना दोनों अकेले रह गए। किशना बहुत बूढ़ा हो गया था। सुगुनी की भी उम्र बढ़ने लगी थी,फिर भी वह सारा काम सम्भालती थी।
‘कोरोना’ की आपदा ने सब-कुछ बदल दिया। गाँव में भी कोरोना ने पाँव फैला दिए। किशना पता नहीं,कैसे इसकी गिरफ्त में आगया। बच्चों ने तो पहले से ही उनसे दूरी बना ली थी। अड़ोसी-पड़ोसी भी एक-दूसरे की मदद नहीं कर पा रहे थे। १५ दिन से किशना बिलकुल अकेला एक कमरे में और सुगुना दूसरे कमरे में। आज जब वह सही हो गया और कमरे से बाहर आया,तब सुगुना खुशी से झूम रही थी। उसने किशना को स्नान कराया। उसे बाहर पंलग पर लिटाया। किशना एकदम सुगुनी का हाथ पकड़ कर रो दिया और बोला कि,-तेरे साथ बहुत अन्याय हुआ। सुगुना बोली-ना अब कुछ ना कहो,अब सब बीत गया। बस हम अब एक- दूसरे के सहारे ही जिन्दा हैं।

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