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कुछ यादें हैं,जो…

हेमराज ठाकुर
मंडी (हिमाचल प्रदेश)
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सच कहा है किसी ने ओ संग दिल!
कि मुहब्बत कभी भी नहीं मरती है
आज भी स्मृति के एक कोने में प्रिये,
कुछ यादें हैं,जो गुदगुदाया करती हैं।

मिलना,मिलकर फिर से बिछुडना,
यह रीत संसार की बहुत पुरानी है
है कुछ नहीं और यह जिन्दगी प्रिये,
बस खट्टी-मीठी यादों की कहानी है।

क्यों लड़ते-झगड़ते हैं ये लोग यहां ?
न जाने क्यों होती इन्हें यह परेशानी है ?
मुहब्बत का फलक है विशाल इतना कि,
समेटने को छोटी पड़ जाती जिंदगानी है।

बहते जल की मनिंद यह जिंदगानी,
क्षण-क्षण निरन्तर बह जाया करती है।
आज तुम नहीं हो पास तो क्या हुआ ?
कुछ यादें हैं,जो गुदगुदाया करती हैं।

हो जाता हूँ अकेला मैं भीड़ में भी जब,
तो तुम्हारी यादों के सहारे तब जीता हूँ
मायूसियां करती हैं जब परेशान घना तो,
तब तेरी यादों के साए में गमों को पीता हूँ।

प्रियतम क्या होता है ? ओ दिलजानी!
खोने के बाद जिंदगी महसूस करती है।
फिर भीगे से जिंदगी के इस दामन में,
कुछ यादें हैं,जो गुदगुदाया करती हैं॥

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