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कुल्टा कौन ?

कर्नल डॉ. गिरिजेश सक्सेना ‘गिरीश’
भोपाल(मध्यप्रदेश)
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नारी और जीवन (अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस)..

कुल्टा कौन ? मैं ? कैसे ? क्यूँ ? किसलिए ?
क्या सिर्फ इसलिए कि मैं नारी हूँ ?
भोग-योग-संयोग के उन पलों के,
तुमभी तो उतने ही सहभागी हो।

मैं सिकुड़ी-सिमटी तुम्हारे दुर्भिक्ष से अनजान-
आँचल समेटती उन पलों को नकारती
प्यार मनुहार वादों छलावों कुत्सित इरादों सने,
तुम्हारे बढ़ते हाथों के आगे खुद से हारती
अपने लरजते होंठों में तब जुम्बिश क्यूँ न लाई,
काश समझती समय रहते तुम्हें दुत्कारती।

क्यूँ समय की ओढ़नी ओढ़ कर हम खो गए,
शायद सपनों के अंधियारों में हम थे खो गए
काल के उस खंड जितना कलुषित मैं हुई थी,
सत्यता स्वीकारो उतना ही कलुषित तुम भी हुए
हम उठे लज्जा के वसन में नयन अपने झुकाए,
बिना पाप के हम स्वतः ही कलुषित हो गए
और निर्लज्जता का पीत वसन काँधे लिए,
कुलटा नाम देती भीड़ में शामिल तुम भी हो गए।

कर्म में जब साथ थे तो धर्म में भी साथ दो,
मैं ही कुल्टा क्यूँ बनूँ खुद को भी कुलटा नाम दो
तुम पुरुष या कापुरुष धिक्कारती हूँ,
लज्जाहीन पौरुष को तेरे ललकारती हूँ
जब मैं ही अकेली उस कर्म की दोषी नहीं,
मैं भी स्वाभिमान को सम्मान को हुंकारती हूँ।

अब ना सहूंगी खुद पर इल्ज़ाम कुल्टा,
अब ज़माने को दूंगी मैं इल्ज़ाम उल्टा
जितने भी है हक़ तुम्हारे सबकी मैं अधिकारी हूँ,
बदल गया है अब ज़माना,मैं नए ज़माने की नारी हूँ।
कुलटा कौन ? मैं ? कैसे ? क्यूँ ? किसलिए ?
सिर्फ इसलिए कि मैं नारी हूँ…?

परिचय-कर्नल डॉ. गिरिजेश सक्सेना का साहित्यिक उपनाम ‘गिरीश’ है। २३ मार्च १९४५ को आपका जन्म जन्म भोपाल (मप्र) में हुआ,तथा वर्तमान में स्थाई रुप से यहीं बसे हुए हैं। हिन्दी सहित अंग्रेजी (वाचाल:पंजाबी उर्दू)भाषा का ज्ञान रखने वाले डॉ. सक्सेना ने बी.एस-सी.,एम.बी.बी.एस.,एम.एच.ए.,एम. बी.ए.,पी.जी.डी.एम.एल.एस. की शिक्षा हासिल की है। आपका कार्यक्षेत्र-चिकित्सक, अस्पताल प्रबंध,विधि चिकित्सा सलाहकार एवं पूर्व सैनिक(सेवानिवृत्त सैन्य अधिकारी) का है। सामाजिक गतिविधि में आप साहित्य -समाजसेवा में सक्रिय हैं। लेखन विधा-लेख, कविता,कहानी,लघुकथा आदि हैं।प्रकाशन में ‘कामयाब’,’सफरनामा’, ‘प्रतीक्षालय'(काव्य) तथा चाणक्य के दांत(लघुकथा संग्रह)आपके नाम हैं। आपकी रचनाएं पत्र-पत्रिका में प्रकाशित हैं। आपने त्रिमासिक द्विभाषी पत्रिका का बारह वर्ष सस्वामित्व-सम्पादन एवं प्रकाशन किया है। आपको लघुकथा भूषण,लघुकथाश्री(देहली),क्षितिज सम्मान (इंदौर)लघुकथा गौरव (होशंगाबाद)सम्मान प्राप्त हुआ है। ब्लॉग पर भी सक्रिय ‘गिरीश’ की विशेष उपलब्धि ३५ वर्ष की सगर्व सैन्य सेवा(रुग्ण सेवा का पुण्य समर्पण) है। इनकी लेखनी का उद्देश्य-साहित्य-समाजसेवा तो सब ही करते हैं,मेरा उद्देश्य है मन की उत्तंग तरंगों पर दुनिया को लोगों के मन तक पहुंचाना तथा मन से मन का तारतम्य बैठाना है। आपके पसंदीदा हिन्दी लेखक-प्रेमचंद, आचार्य चतुर सेन हैं तो प्रेरणापुंज-मन की उदात्त उमंग है। विशेषज्ञता-सविनय है। देश और हिंदी भाषा के प्रति आपके विचार-“देश धरती का टुकड़ा नहीं,बंटे हुए लोगों की भीड़ नहीं,अपितु समग्र समर्पित जनमानस समूह का पर्याय है। क्लिष्ट संस्कृतनिष्ठ भाषा को हिन्दी नहीं कहा जा सकता। हिन्दी जनसामान्य के पढ़ने,समझने तथा बोलने की भाषा है,जिसमें ठूंस कर नहीं अपितु भाषा विन्यासानुचित एवं समावेशित उर्दू अंग्रेजी के शब्दों का प्रयोग वर्जित न हो।”

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