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कुशल राष्ट्र शिल्पी थे वीर सावरकर

ललित गर्ग
दिल्ली

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जयंती २८ मई विशेष….

अखण्ड भारत का स्वप्न देखने एवं उसे आकार देने वालों में प्रखर राष्ट्रवादी नेता विनायक दामोदर सावरकर का योगदान अनूठा एवं अविस्मरणीय है। आज नया भारत बनाने, भारत को नए सन्दर्भों के साथ संगठित करने, राष्ट्रीय एकता को बल देने की चर्चाओं के बीच भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन के प्रखर सेनानी, महान देशभक्त, ओजस्वी वक्ता, दूरदर्शी राजनेता, इतिहासकार, एक बहुत निराले साहित्यकार-कवि और सशक्त हिन्दुत्व के पुरोधा श्री सावरकर की जयंती और उनका जीवन-दर्शन आधार-स्तंभ एवं प्रकाश-किरण है। अग्रिम पंक्ति के स्वतंत्रता सेनानी सावरकर जी की प्रेरणा एवं शिक्षा इसलिए प्रकाश-स्तंभ हैं कि उनमें नए भारत को निर्मित करने की क्षमता है। उन्होंने अनेक विपरीत एवं संघर्षपूर्ण स्थितियों के बीच एक भारत और मजबूत भारत की कल्पना की थी, जिसे साकार करने का संकल्प आज हर भारतीय के मन में है।
वीर सावरकर का जन्म महाराष्ट्र के नासिक जिले के ग्राम भगूर में २८ मई १८८३ में हुआ था। यह अल्प आयु से ही निर्भीक होने के साथ-साथ बौद्धिक रूप से भी संपन्न थे। बचपन में उन्होंने कुछ कविताएं भी लिखी थीं।
वीर सावरकर के मन में बचपन में ही अखण्ड भारत, स्वतंत्र भारत एवं सशक्त भारत को निर्मित करने का जज्बा जग गया था। आजादी के लिए काम करने के लिए उन्होंने एक गुप्त संस्था बनाई थी, जो ‘मित्र मेला’ के नाम से जानी गई। पुणे में पढ़ने के दौरान भी वे राष्ट्रभक्ति से ओत-प्रोत ओजस्वी भाषण देते थे। उन्होंने अनेक लेख लिखे, जो ‘युगांतर’ में भी छपे। वे रूसी क्रांतिकारियों से ज्यादा प्रभावित थे।
वीर सावरकर जैसे बहुत कम क्रांतिकारी एवं देशभक्त होते हैं जिनके तन में जितनी ज्वाला हो उतना ही उफान मन में भी हो। उनकी कलम में चिंगारी थी, उसके कार्यों में भी क्रांति की अग्नि धधकती थी। वीर सावरकर ऐसे महान सपूत थे जिनकी कविताएं एवं विचार भी क्रांति मचाते थे और वह स्वयं भी महान् क्रांतिकारी थे। उनमें तेज भी था, तप भी था और त्याग भी था। वीर सावरकर हमेशा से जात-पात से मुक्त होकर कार्य करते थे। रत्नागिरी आंदोलन के समय उन्होंने जातिगत भेदभाव मिटाने का जो कार्य किया, वह अनुकरणीय था। महात्मा गांधी ने तब खुले मंच से सावरकर की इस मुहिम की प्रशंसा की थी, भले ही आजादी के माध्यमों के बारे में गांधी जी और सावरकर का नजरिया अलग-अलग था।
दुनिया के वे ऐसे पहले कवि थे जिन्होंने अंडमान के एकांत कारावास में जेल की दीवारों पर कील और कोयले से कविताएं लिखीं और फिर उन्हें याद किया। उनका संपूर्ण जीवन स्वराज्य की प्राप्ति के लिए संघर्ष की प्रेरणास्पद दास्तान है।
हम आजाद हो गए, लेकिन हमारी मानसिकता एवं विकास प्रक्रिया अभी भी गुलामी की मानसिकता को ओढ़े हैं। शिक्षा से लेकर शासन व्यवस्था की समस्त प्रक्रिया अंग्रेजों की थोपी हुई है, उसे ही हम अपनाए जा रहे हैं। जीवन का उद्देश्य इतना ही नहीं है कि सुख-सुविधापूर्वक जीवन व्यतीत किया जाए, शोषण एवं अन्याय से धन पैदा किया जाए, बड़ी-बड़ी भव्य अट्टालिकाएं बनाई जाए और भौतिक साधनों का भरपूर उपयोग किया जाए। उसका उद्देश्य है-निज संस्कृति को बल देना, उज्ज्वल आचरण, सात्विक वृत्ति एवं स्व-पहचान। भारतीय जनता के बड़े भाग में राष्ट्रीयता एवं स्व-संस्कृति की कमी को दूर करना ही सावरकर जी के जन्म एवं जीवन का ध्येय था। वे विश्वभर के क्रांतिकारियों में अद्वितीय थे। उनका नाम ही भारतीय क्रांतिकारियों के लिए उनका संदेश था, पुस्तकें क्रांतिकारियों के लिए गीता के समान थीं।
नया भारत निर्मित करते हुए उसके इतिहास में सच्चाई के प्रतिबिम्बों को उभारने पर बल देना ही वीर सावरकर की जन्म-जयन्ती मनाने का वास्तविक उद्देश्य होना चाहिए, क्योंकि भारत के इतिहास को धूमिल किया गया, धुंधलाया गया है, हिन्दू प्रतीकों, मन्दिरों एवं संस्कृति को नष्ट किया गया अन्यथा भारत का इतिहास दुनिया के लिए एक प्रेरणा है, अनुकरणीय है, क्योंकि भारत एक ऐसा शांति-अहिंसामय देश है जिसका न कोई शत्रु है और न कोई प्रतिद्वंद्वी।
सम्पूर्ण दुनिया भारत की ओर देख रही है, उसमें विश्व गुरु की पात्रता निरन्तर प्रवहमान रही है, हमने कोरोना महामारी के एक जटिल एवं संघर्षमय दौर में दुनिया के सभी देशों के हित-चिन्तन का भाव रखा। प्रधानमंत्री ने साबित किया कि वसुधैव कुटुम्बकम-दुनिया एक परिवार है, यही वीर सावरकर दर्शन ही मानवता का उजला भविष्य है।
अप्रतिम प्रतिभा सम्पन्न सावरकर जी कुशल मानवशिल्पी के साथ राष्ट्र-शिल्पी थे। उनकी वाणी तीक्ष्ण, तेजधार होने के साथ-साथ सीधी, हृदय को छूने एवं प्रभावकारी परिणाम करने वाली थी। अपनी पारखी दृष्टि से व्यक्ति की क्षमताओं को पहचान कर न केवल उसका विकास करते थे अपितु उसे देश, समाज एवं राष्ट्र हित में नियोजित भी करते थे। राष्ट्रोत्थान की भावना जगाने में उनका कौशल अद्भुत था। एक सामाजिक-सांस्कृतिक-राष्ट्रीय व्यक्तित्व होते हुए भी वीर सावरकर ने भारतीय राजनीति की दिशा को राष्ट्रीयता की ओर कैसे परिवर्तित किया है, यह समझने के लिए भी उनके जीवन-दर्शन को पढ़ना आवश्यक है। भारत की हिंदू अस्मिता, हिंदू समाज की उत्पत्ति व संघटन, विवाह, माता-पिता द्वारा संतान का पालन-पोषण, आपसी सौहार्द, सामाजिकता, धार्मिकता, आर्थिक स्थितियां, कृषि तथा ऐसे ही अन्य अनेक विषयों पर उनके जीवन-दर्शन से मार्ग प्रशस्त होता है। सावरकर एकमात्र ऐसे भारतीय थे जिन्हें एक ही जीवन में २ बार आजीवन कारावास की सजा सुनाई गई।
राष्ट्रोत्थान की मूल भावना के अभिप्रेरित वीर सावरकर भले ही आज हमारेे बीच में नहीं है लेकिन उनकी प्रखर राष्ट्रवादी सोच हमेशा राष्ट्र एवं राष्ट्र के लोगों के दिलों में जिन्दा रहेगी।

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