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कौन बचाये!

जसवीर सिंह ‘हलधर’
देहरादून( उत्तराखंड)
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अर्थी लेटा पूत धरा का,
बोलो उसको कौन बचाये!
स्वागत करते घने अँधेरे,
छूट गयी पीछे रोशनियाँ!
कर्जे से पसरा सन्नाटा,
रोज डराता ब्याजू बनिया!
आँखों के आगे छाये हैं,
आँधी बरसातों के साये!
बोलो उसको कौन बचाये…॥

गुर्राते रोजाना उस पर,
जन्तु सींग नाखूनों वाले!
हाथों की रेखा को खायें,
काले काले खूनी छाले!
घूम रही जंगली आंधियाँ,
कैसे उनसे फसल रखाये!
बोलो उसको कौन बचाये…॥

तीखी काँटेदार हवायें,
उसकी किस्मत से उलझी हैं!
चट्टानों से टकरा कर भी,
जीवन लीला ना सुलझी है!
सरकारी फाइल में अटके,
उसकी खटिया के चौपाये!
बोलो उसको कौन बचाये…॥

रेतीले टीले में गुम है,
उसके जीवन की रस धारा!
हीन दशा में लेटा है अब,
टूटा-फूटा ये ध्रुव तारा!
नंगा बदन ठिठुरता बचपन,
सर्दी उसका पशुधन खाये!
बोलो उसको कौन बचाये…॥

धरती ऐसा कंचन मृग है,
खोजन इसको जो भी आया!
राम सरीखे देवों ने भी,
मरते दम तक ना सुख पाया!
कितने ‘हलधर’ डूब मरे हैं,
कितने अब तक आग जलाये!
बोलो उसको कौन बचाये…॥

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