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क्यारी-क्यारी महक उठे हिंदुस्तान की

अमल श्रीवास्तव 
बिलासपुर(छत्तीसगढ़)

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मिले ताल, अरदास, आरती,
प्रेयर और अजान की
क्यारी-क्यारी महक उठे फिर,
मेरे हिंदुस्तान की।

सदियों पहले देश हमारा,
जगत गुरू कहलाता था
ज्ञान, भक्ति, सत्कर्म, योग का,
सारे जग का दाता था।
सहिष्णुता थी व्याप्त रगों में,
कण-कण सभी दिशाओं में,
सारी वसुधा ही कुटुम्ब थी,
बंधे न थे सीमाओं में।
जन-जन में गर जगे भावना,
फिर अपनी पहचान की,
क्यारी-क्यारी महक उठे फिर,
मेरे हिंदुस्तान की…॥

शबरी के जूठे बेरों को,
राम यहाँ पर खाते थे,
केवट, भील, रीछ, कपियों को,
अपने गले लगाते थे।
वेदव्यास को मान दिया,
पूजा रैदास कबीरा को,
बालमीक को ब्रह्म समझकर,
आसन दिया फकीरा को।
प्रतिभा हो पूरित सुगन्ध से,
चाह आत्म सम्मान की
क्यारी-क्यारी महक उठे फिर,
मेरे हिंदुस्तान की…॥

कृष्ण भक्ति के गीतों को,
रसखान यहाँ पर गाते थे,
सारे जहां से अच्छा भारत,
कवि इकबाल बताते थे।
फादर कामिल बुल्के को,
इस धरती ने अपनाया था,
मदर टेरेसा को इस भू ने,
‘भारत रत्न’ दिलाया था।
रहे दोस्ती गिरिजाघर से,
पंडित और पठान की
क्यारी-क्यारी महक उठे फिर,
मेरे हिंदुस्तान की…॥

सबका मालिक एक यहाँ पर,
फिर यह भेद-भाव कैसा ?
जात-पात या ऊँच-नीच का,
फिर यह दुष्प्रभाव कैसा ?
हिंदू, मुस्लिम, सिख, ईसाई,
जब सब भाई-भाई हैं,
फिर इन घृणित हरकतों की,
क्यों इतनी गहरी खाई है ?
साथ-साथ में चले इबादत,
गीता और कुरान की,
क्यारी-क्यारी महक उठे फिर,
मेरे हिंदुस्तान की…॥

समरसता की आड़ लिए,
जो जाति-जहर फैलाते हैं,
वे निज स्वार्थ साधने खातिर,
घर-घर सेंध लगाते हैं।
पीड़ा, पतन, पराभव की,
यह बीमारी फैली जब से
है इतिहास साक्षी अपना,
यह दुर्गति हुई तब से।
दाल नहीं गलने गर पाए,
इस कलुषित अभियान की
क्यारी, क्यारी महक उठे फिर,
मेरे हिंदुस्तान की…॥

मत-मतांतरों के झगड़ों से,
मानव मन दिग्भ्रमित हुआ
स्वार्थ प्रकृति को गले लगाकर,
बन एकाकी पतित हुआ।
भौतिकता की चकाचौंध ने,
अंतर द्वंद मचा डाला
भरत वंश का बच्चा पीता,
विषय वासना का प्याला।
फिर से गर खुल जाएं राहें,
दया, क्षमा, या दान की,
क्यारी-क्यारी, महक उठे फिर,
मेरे हिंदुस्तान की…॥

जीना-मरना सभी देश हित,
यह दिल की आवाज हो
जियो और जीने दो सबको,
यह युग का आगाज हो।
आज जरूरत भारत माँ को,
सच्चे बीर जवानों की
खुद भी सुनें, सुनाएं सबको,
गाथाएं बलिदानों की।
अन्दर से उल्लास जगे जब,
मंगलमयी विधान की,
क्यारी-क्यारी, महक उठे फिर,
मेरे हिंदुस्तान की…॥

परिचय–प्रख्यात कवि,वक्ता,गायत्री साधक,ज्योतिषी और समाजसेवी `एस्ट्रो अमल` का वास्तविक नाम डॉ. शिव शरण श्रीवास्तव हैL `अमल` इनका उप नाम है,जो साहित्यकार मित्रों ने दिया हैL जन्म म.प्र. के कटनी जिले के ग्राम करेला में हुआ हैL गणित विषय से बी.एस-सी.करने के बाद ३ विषयों (हिंदी,संस्कृत,राजनीति शास्त्र)में एम.ए. किया हैL आपने रामायण विशारद की भी उपाधि गीता प्रेस से प्राप्त की है,तथा दिल्ली से पत्रकारिता एवं आलेख संरचना का प्रशिक्षण भी लिया हैL भारतीय संगीत में भी आपकी रूचि है,तथा प्रयाग संगीत समिति से संगीत में डिप्लोमा प्राप्त किया हैL इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ बैंकर्स मुंबई द्वारा आयोजित परीक्षा `सीएआईआईबी` भी उत्तीर्ण की है। ज्योतिष में पी-एच.डी (स्वर्ण पदक)प्राप्त की हैL शतरंज के अच्छे खिलाड़ी `अमल` विभिन्न कवि सम्मलेनों,गोष्ठियों आदि में भाग लेते रहते हैंL मंच संचालन में महारथी अमल की लेखन विधा-गद्य एवं पद्य हैL देश की नामी पत्र-पत्रिकाओं में आपकी रचनाएँ प्रकाशित होती रही हैंL रचनाओं का प्रसारण आकाशवाणी केन्द्रों से भी हो चुका हैL आप विभिन्न धार्मिक,सामाजिक,साहित्यिक एवं सांस्कृतिक संस्थाओं से जुड़े हैंL आप अखिल विश्व गायत्री परिवार के सक्रिय कार्यकर्ता हैं। बचपन से प्रतियोगिताओं में भाग लेकर पुरस्कृत होते रहे हैं,परन्तु महत्वपूर्ण उपलब्धि प्रथम काव्य संकलन ‘अंगारों की चुनौती’ का म.प्र. हिंदी साहित्य सम्मलेन द्वारा प्रकाशन एवं प्रदेश के तत्कालीन मुख्यमंत्री सुन्दरलाल पटवा द्वारा उसका विमोचन एवं छत्तीसगढ़ के प्रथम राज्यपाल दिनेश नंदन सहाय द्वारा सम्मानित किया जाना है। देश की विभिन्न सामाजिक और साहित्यक संस्थाओं द्वारा प्रदत्त आपको सम्मानों की संख्या शतक से भी ज्यादा है। आप बैंक विभिन्न पदों पर काम कर चुके हैं। बहुमुखी प्रतिभा के धनी डॉ. अमल वर्तमान में बिलासपुर (छग) में रहकर ज्योतिष,साहित्य एवं अन्य माध्यमों से समाजसेवा कर रहे हैं। लेखन आपका शौक है।