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क्यों कन्हैया ?

हेमराज ठाकुर
मंडी (हिमाचल प्रदेश)
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त्रिलोकी नाथ तुम, सकल अधिष्ठाता,
चराचर जगत के बस तुम ही रचयिया
जन्म से निर्वाण पर्यन्त कष्ट ही कष्ट,
अपने भाग्य में क्यों लिखे कन्हैया ?

जन्म कारा में, यमुना की जलधारा में,
आकंठ पिता को क्यों था डुबाया ?
कागासुर कभी शकटासुर गोकुल में,
पूतना जैसा हर संकट क्यों आया ?

महिमा मंडन या दु:ख संसार की परिणति,
उद्देश्य जनार्दन था तुमने क्या ठाना ?
या कुछ न था तुम्हारे भी हाथों में,
पर लोगों ने तो आपको ही प्रभु है माना।

वे रास लीला, फिर विरह की पीड़ा,
राज पाया पर सुख कहां भोगा ?
कंस, जरासंघ फिर काल्यावन चढ़ाई,
कदम-कदम का कौतुक, अब क्या होगा ?

महाभारत फिर निज कुल का खात्मा,
अंत समाधि में बहेलिए के हाथों हुआ निर्वाण
कुल की स्त्रियाँ जब भीलों ने सताई,
तब क्यों बचाने न आए तुम ओ भगवान ?

क्यों न जीता अर्जुन तब भीलों से,
महाभारत विजयी धनुर्धर सखा महान ?
अर्जुन वही था, वही गांडीव था,
फिर क्यों न चले, तब वे धनुष-बाण ?

सवाल कई हैं जहन में आज भी,
होनी बड़ी है कि आप प्रभु, या फिर इंसान ?
विधि का लेखा ही सबसे बड़ा है क्या ?
या तुम सबसे बड़ा भी, है कोई और ही भगवान ?

यह निश्चित है कि सृष्टि संचालक,
नियंता रचैया है कोई न कोई जरूर
जो हम ही होते स्वयंभू स्वयं तो,
क्यों होते फिर प्रकृति के हाथों यूँ मजबूर ?

याद करो प्रभु सहस्र विवाह अपने,
फिर भी प्रेम को तुमने क्यों न पाया ?
राधा चाह कर भी क्यों एक न हो सकी ?
यह सारा खेल तो हमारी समझ में न आया।

रामावतार में आकाश-पाताल खंगाले,
रावण से भिड़ कर भी सीता को पाया।
यहाँ तो हजारों विवाह करा कर भी अपने,
आखिर, राधा रानी को क्यों था सताया …?