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क्रांति दूत भगत सिंह- राजगुरु-सुखदेव

संजय सिंह ‘चन्दन’
धनबाद (झारखंड )
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नहीं पढ़ी थी गाथा हमने अमर शहीद भगत सिंह की,
नहीं पढ़ी थी गाथा हमने अमर शहीद राजगुरु की
नहीं पढ़ी थी गाथा हमने अमर शहीद सुखदेव की,
बस मालूम था फांसी थी २३ मार्च १९३१ को वीर पुत्र शहीदों की।

घोर यातना, जोर-तबाही, चला दौर था ब्रिटिश का,
भयाक्रांत था देश हमारा, अत्याचारी शासन का
विचलित, चिंतित, व्यथित युवा दिल स्वाधीन अरमानों का,
सत्य-अहिंसा देख चुके थे, चुना मार्ग हिंसा और बलिदानों का।

भगत सिंह तो देशभक्त थे, गोल बंद थी टोली उनकी
इंकलाब थी बोली जिनकी, मर मिटी युवा जवानी उनकी
आज़ादी को पागल मतवाला भगत बने ऐसी आँधी,
नतमस्तक था पूरा भारत, नमन किए नेहरू-गाँधी।

गोली मारी, बम बरसाया, किया धमाका जोरों का,
चुन-चुन कर एक-एक को मारा, दिल दहलाया गोरों का
प्रबल थी इच्छा, तीव्र प्रतीक्षा, सिंह गर्जना मर्दों की,
बदला लेते, हत्या करते, क्रूर फिरंगी कायर की।

कफन बाँध चलते फौलादी, लिए नशा आज़ादी का,
फंदा फांसी गले लगाया, बिगुल बजा आज़ादी का
नाक रगड़कर, भीख मांग कर, थप्पड़-झप्पड़ शीश नवाकर नहीं मिली ये आज़ादी,
क्रांति का उन्माद जगाकर, शीश कटाकर, अंग्रेजों पर बम बरसा कर, तभी मिली ये आज़ादी।

भगत-राजगुरु-सुखदेव के तेवर ने सबके सीने में भर दी, क्रांति जज्बे की वो आँधी,
भाग खड़े थे अच्छे-अच्छे, जज्बा इनका देख चली आज़ादी की फिर आँधी
ब्रिटिश को दहशत में लाकर नींद उड़ा दी, मिटा दी सबकी ही व्याधि,
फिरंगी सेना तंग-तंग थी, देश भगत का था आदी।

गिरफ्तार कर तीनों को भेजा गया जब सेंट्रल जेल,
बड़े-बड़े नेता थे तब भी, नहीं ली थी डर से बेल
फांसी का आदेश हुआ जब, क्या किए दिग्गज नेता विशेष ?
क्या मंशा, क्यों कुंठा थी, क्यों जिन्ना-नेहरू-गांधी को भगत से था इतना विद्वेष ?

क्यों नहीं लड़ा किसी ने ऐसे वक्त में उनका केस,
जन-जन को लगी थी, हृदय घात की गहरी ठेस
मिथ्या था, बुजदिल था वो शांति का भ्रामक उपदेश,
लोक हृदय में तभी बसा था, भगत क्रांति-प्रेम स्वदेश।

इंकलाब उदघोष हुआ तब, भगत-भगत का नारा गूँजा,
राजगुरु का नारा गूँजा, सुखदेव का नारा गूँजा
इंकलाबी नारों से सुलग उठा था तब परिवेश,
ओछे, गंदे, गुगड़ थप्पड़ खाने वालों ने लुप्त कर दिया भगत क्रांति का संदेश।

मातृ भूमि की रक्षा हेतु चूमा फांसी फंदे का जालिम आदेश,
भगत, राजगुरु, सुखदेव ने फांसी चढ़कर दिखाया, क्रांति अभी बची है शेष
नमन है ऐसे दिव्य पिता-माता को, क्रांति का जिनमें था खून,
जिनके बच्चों में मातृभूमि की रक्षा का जगा फौलादी जुनून,
अंग्रेजों को पीटा-कुचला, अन्त बहाया अपना खून।

मर मिटे देश में भगत, राजगुरु, सुखदेव बनकर अव्वल बागी,
जिनके कारण हमें मिली है भारत की ये आज़ादी
सतलुज की नदी गवाह है अंतिम दर्शन और दी थी मुख आगी,
रोंगटे खड़े हुए थे सबके, आक्रोश में जनता तब जागी।

फांसी के फंदे को चूमा सुखदेव, राजगुरु और भगत,
सपने सच थे, दिल की आरजू आज़ादे हिन्द फकत।
तीनों महान क्रांतिकारी बलिदानी युवाओं को शत्-शत् नमन्,
अर्पित है हृदय से मेरे श्रद्धा सुमन-श्रद्धा सुमन॥

परिचय-सिंदरी (धनबाद, झारखंड) में १४ दिसम्बर १९६४ को जन्मे संजय सिंह का वर्तमान बसेरा सबलपुर (धनबाद) और स्थाई बक्सर (बिहार) में है। लेखन में ‘चन्दन’ नाम से पहचान रखने वाले संजय सिंह को भोजपुरी, संस्कृत, हिन्दी, खोरठा, बांग्ला, बनारसी सहित अंग्रेजी भाषा का भी ज्ञान है। इनकी शिक्षा-बीएससी, एमबीए (पावर प्रबंधन), डिप्लोमा (इलेक्ट्रिकल) व नेशनल अप्रेंटिसशिप (इंस्ट्रूमेंटेशन डिसिप्लिन) है। अवकाश प्राप्त (महाप्रबंधक) होकर आप सामाजिक कार्यकर्ता, रक्तदाता हैं तो साहित्यिक गतिविधि में भी सक्रियता से राष्ट्रीय संस्थापक-सामाजिक साहित्यिक जागरुकता मंच मुंबई (पंजी.), संस्थापक-संरक्षक-तानराज संगीत विद्यापीठ (नोएडा) एवं राष्ट्रीय प्रवक्ता के.सी.एन. क्लब (मुंबई) सहित अन्य संस्थाओं से बतौर पदाधिकारी जुड़ें हैं, साथ ही पत्रकारिता का वर्षों का अनुभव है। आपकी लेखन विधा-गीत, कविता, कहानी, लघु कथा व लेख है। बहुत-सी रचनाएँ पत्र-पत्रिका में प्रकाशित हैं, साथ ही रचनाएँ ४ साझा संग्रह में हैं। ‘स्वर संग्राम’ (५१ कविताएँ) पुस्तक भी प्रकाशित है। प्राप्त सम्मान-पुरस्कार में आपको
महात्मा बुद्ध सम्मान-२०२३, शब्द श्री सम्मान-२०२३, पर्यावरण रक्षक सम्मान-२०२३, श्रेष्ठ कवि सम्मान-२० २३ सहित अन्य सम्मान हैं तो विशेष उपलब्धि-राष्ट्रीय कवि सम्मेलन में कई बार उपस्थिति, देश के नामचीन स्मृति शेष कवियों (मुंशी प्रेमचंद, जयशंकर प्रसाद, भारतेंदु हरिश्चंद्र आदि) के जन्म स्थान जाकर उनकी पांडुलिपि अंश प्राप्त करना है। श्री सिंह की लेखनी का उद्देश्य-हिन्दी भाषा का उत्थान, राष्ट्रीय विचारों को जगाना, हिन्दी भाषा, राष्ट्र भाषा के साथ वास्तविक राजभाषा का दर्जा पाए, गरीबों की वेदना, संवेदना और अन्याय व भ्रष्टाचार पर प्रहार है। मुंशी प्रेमचंद, अटल बिहारी वाजपेयी, जयशंकर प्रसाद, भारतेंदु हरिश्चंद्र, महादेवी वर्मा, रामधारी सिंह दिनकर, किशन चंदर और पं. दीनदयाल उपाध्याय को पसंदीदा हिन्दी लेखक मानने वाले संजय सिंह ‘चंदन’ के लिए प्रेरणापुंज- पूज्य पिता जी, नेताजी सुभाष चन्द्र बोस, महात्मा गॉंधी, भगत सिंह, लोकनायक जय प्रकाश, बाला साहेब ठाकरे और डॉ. हेडगेवार हैं। आपकी विशेषज्ञता-साहित्य (काव्य), मंच संचालन और वक्ता की है। जीवन लक्ष्य-ईमानदारी, राष्ट्र भक्ति, अन्याय पर हर स्तर से प्रहार है। देश और हिंदी भाषा के प्रति विचार-“अपने ही देश में पराई है हिन्दी, अंग्रेजी से अंतिम लड़ाई है हिन्दी, अंग्रेजी ने तलवे दबाई है हिन्दी, मेरे ही दिल की अंगड़ाई है हिन्दी।”