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खोज रहा नीर नेह

बाबूलाल शर्मा
सिकंदरा(राजस्थान)
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(रचना शिल्प:विधान- २२ मात्रिक छंद-१२,१० मात्रा पर यति, यति से पूर्व व पश्चात त्रिकल अनिवार्य, चरणांत में गुरु (२),दो-दो चरण समतुकांत हों, चार चरण का एक छंद कहलाता है) 
वरुण देव कृपा करे,जल भंडार भरें।
जल से सब जीव बने,जल अंबार करें।
दोहन मनुज ने किया,रहा जल बीत है।
बिन अंबु कैसे निभे,जीव जग रीत है।

जल ने आबाद किया,सत्य सुने कथनी।
जीवन विधाता बंधु,रीति रही अपनी।
पानी बर्बाद किये,भावि नहीं बचता। पीढ़ी अफसोस रही,कौन कहाँ रमता।

खोज रहा नीर नेह,मान-सम्मान को।
खो रहा है जो आज,नीर वरदान को।
सूख रहे झील ताल,नदी कूप अपने।
युद्ध से न सके हार,नीर हार सपने।

सूख गया नैन नीर,पीर देख डरते।
सत्य बात मान मीत,रीत-प्रीत करते।
सिंधु नीर बढ़ रहा,स्वाद जो खार का।
मनुज देख मनुज संग,नेह जल हार का।

कूप सूख गए नीर,कृषक हताश रहे।
नीर देते घट आज,प्यास खुद ही सहे।
नलकूप खोदे नित्य,रक्त खींच धरती।
मनुज नीर दोउ मीत,नित्य साख गिरती।

नदियों में डाल गंद,नीर करें गँदला।
हे मनुज माने मातु,नदी नेह बदला।
बजरी निकाली रेत,खेत रहेे खलते।
फूल पौधे खा गये,बाग लगे जलते।

छेद डाले भू खेत,खोद कूप धरती।
पेड़ नित्य काट रहे,भूमि बने परती।
रेगिस्तान बढ़ रहा,बीत रहा जल है।
कौन फिर तेरी सुने,बोल एक पल है।

रक्षा कर मीत नीर,जीव जंतु तरसे।
सारे जल स्रोत रक्ष,देख मेघ बरसे।
जल बिना जीवन नहीं,सोच बने अपनी।
जीवन बचा लो बंधु,बात यही जपनी।

परिचय : बाबूलाल शर्मा का साहित्यिक उपनाम-बौहरा हैl आपकी जन्मतिथि-१ मई १९६९ तथा जन्म स्थान-सिकन्दरा (दौसा) हैl वर्तमान में सिकन्दरा में ही आपका आशियाना हैl राजस्थान राज्य के सिकन्दरा शहर से रिश्ता रखने वाले श्री शर्मा की शिक्षा-एम.ए. और बी.एड. हैl आपका कार्यक्षेत्र-अध्यापन(राजकीय सेवा) का हैl सामाजिक क्षेत्र में आप `बेटी बचाओ-बेटी पढ़ाओ` अभियान एवं सामाजिक सुधार के लिए सक्रिय रहते हैंl लेखन विधा में कविता,कहानी तथा उपन्यास लिखते हैंl शिक्षा एवं साक्षरता के क्षेत्र में आपको पुरस्कृत किया गया हैl आपकी नजर में लेखन का उद्देश्य-विद्यार्थी-बेटियों के हितार्थ,हिन्दी सेवा एवं स्वान्तः सुखायः हैl

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