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गाँव का ग्वाला,जो बना गीता नायक

डॉ. विकास दवे
इंदौर(मध्य प्रदेश )

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कृष्ण जन्माष्टमी स्पर्धा विशेष……….


भगवान कृष्ण जिन्हें हम गोपाल,कन्हैया,कान्हा,गिरधर, रणछोड़ आदि कई नामों से जानते हैं,बचपन में बड़े नटखट,चंचल और खेलप्रिय रहे। उनके बारे में जब भी हम बातें करते हैं तो कई बार हमें यह आभास होने लगता है मानो कन्हैया के गुण,गुण न होकर अवगुण थे,लेकिन ऐसा नहीं था। गोपाल का पूरा जीवन आदर्श और प्रेरणा का पुंज ही रहा है।
आज कान्हा के सम्पूर्ण जीवन या आध्यात्मिक पक्ष पर बात न करते हुए मैं उस नटखट के बचपन के ही कुछ किस्से-कहानी याद दिलाऊॅंगा। साथ साथ हम यह भी विचार करते चलेंगे कि इन घटनाओं से हमें क्या प्रेरणा प्राप्त हुई ? आपको यह बात तो पता ही है कि,कान्हा का पूरा बचपन गोकुल की गलियों में बीता। गोकुल यानी दूध,दही,माखन और घी का एक बड़ा व्यापार केन्द्र। बाबा नन्द उस काल के दूध के बड़े व्यापारी थे। ग्वालों के घर में दूध-दही के भण्डार भरे रहते थे,और फिर भी वे उसका समाज हित में उपयोग का विचार नहीं कर पाते। कान्हा ऐसे में अपनी ग्वाल-बालों की फौज लेकर उन माखन की मटकियों से माखन चोरी को निकल पड़ते। आपको लगता होगा,चोरी तो गन्दी बात है। फिर कान्हा ऐसा क्यों करता था ?,लेकिन कान्हा ग्वालों को केवल यही सिखाना चाहता था कि हमारे द्वारा अर्जित धन,भोजन और ज्ञान पर पूरे समाज का हक है,इसलिए कान्हा माखन अकेला न खाते हुए सारे मित्रों को भी खिला देता था। इसका अर्थ है प्राणीमात्र पर दया करना और अपने प्रति कोई अच्छा करे तो बदले में उसे भी अच्छा लौटाना। आपको याद है ना इन्हीं वानरों ने राम अवतार के समय प्रभु की सेवा की थी और भला कृष्ण अवतार में कान्हा उन्हें कैसे भूल जाता ?
माखन चोर द्वारा गोपियों की मटकियाँ फोड़ देना आपको सम्पत्ति की बड़ी हानि दिखाई देती होगी,लेकिन आपको जानकर आनंद आएगा कि इन घटनाओं के पीछे भी कान्हा की समाज को प्रेरणा ही थी। दुष्ट राजा कंस गोकुलवासियों को डरा-धमकाकर कर के रूप में दूध,दही,माखन और घी वसूला करता था। ग्वाले डर कर गोपियों के हाथों मटकियाँ भर-भरकर यह ‘कर’ भेजते थे। कन्हैया वो ही मटकियाँ फोड़ कर यह प्रेरणा देता था कि चाहे यह सब माखन मिट्टी में मिला दो,लेकिन अन्यायी राजा को कर नहीं चुकाना है।
आपको किशन का गेन्द खेलना तो याद है ना ? यमुना किनारे गेन्द खेलने तो सारे ग्वाल-बाल जाते थे,लेकिन यमुना नदी के जल के जहरीले होने की चिन्ता केवल कन्हैया को ही थी। वास्तव में कालिया नाम का एक नाग नदी के जल में रहने लगा था। वह पूरे जल को ही जहरीला यानी प्रदूषित बना रहा था। कान्हा ने एक दिन जान-बूझकर गेन्द यमुना में फेंक दीl फुंफकारते कालिया को नाथ कर उसके सिर पर नृत्य करते हुए बाहर निकल आए। यह क्या था ? यह थी हम सबके लिए प्रेरणा। जल ही जीवन है यह नारा तो हम खूब लगाते हैं लेकिन क्या इसको प्रदूषित करने वाले कालिया नाग हमारे आसपास हमें दिखाई नहीं देते ? हम जलरूपी अमृत को प्रदूषण से बचाने की जवाबदारी का निर्वाह तो कर ही सकते हैं अपने कन्हैया की तरह।
कान्हा के बचपन का ही एक प्रसंग है-विद्याधर अजगर के संहार का। विद्याधर अजगर ने योजना बनाई थी नन्हें-नन्हें ग्वाल-बालों को खा जाने की। अपना विशाल मुँह खोलकर वह पगडंडी के सिरे पर बैठ गया। बेचारे भोले-भाले ग्वाल-बाल तो गुफा समझकर उसके मुँह में प्रवेश कर गए,लेकिन अपना कान्हा तो जादूगर निकला। वह विद्याधर अजगर के जबड़े में खड़ा हुआ और अपना आकार बढ़ाने लगा। देखते ही देखते उसने विद्याधर के मस्तक में छेद कर दिया। अजगर तो मरा ही,गोप-ग्वाल भी मुँह में से सुरक्षित निकल आए। यह घटना क्या बताती है ? मित्रों का सहयोग करना,लेकिन एक बात और याद रखें कि विद्याधर की तरह विद्या धारण करने के बाद उसका घमंड न करने लगें,वरना यह कुबुद्धि एक दिन सिर फुड़वा कर ही दम लेती है। ज्ञान का अहं कभी नहीं पालना,यह प्रेरणा भी तो हमें कान्हा ने ही दी है।
यूँ तो कान्हा का सम्पूर्ण जीवन प्रेरणाओं से भरा पड़ा है,लेकिन कन्हैया के बचपन की एक मजेदार घटना बताता हूँ। यह बात तब की है जब नन्हें कान्हा का नामकरण भी नहीं हुआ था। आप जानते ही हैं ना कि,मनुष्य के जीवन में सोलह संस्कार सम्पन्न होते हैं। उन्हीं में से एक होता है नामकरण संस्कार यानी नाम रखना। महान् ऋषि गर्गाचार्य जी नन्हें बालक का नाम रखने आए। गर्गाचार्य जी ठहरे पक्के ब्राम्हण। आते ही कहा-“मैं वैश्य व्यापारियों के घर का भोजन ग्रहण नहीं करूंगा। मुझे भोजन सामग्री दे दो। अपने हाथों से बनाकर खा लूंगा।” सामान दे दिया गया। गर्गाचार्य जी यमुना में स्नान कर आए और दूध की स्वादिष्ट खीर बनाई। सोने की थाली में खीर रखकर आँख बन्द कर लगे भगवान को याद करने। हे नारायण! भोग लगाओ। बस क्या देर लगती ? नन्हा कान्हा घुटनों के बल चलता हुआ पहूँचा और गर्गाचार्य जी की खीर साफ। महाराज ने आँख खोली तो लाल-पीले हो गए-“अरे इस वैश्य पुत्र ने मेरे नारायण का भोग भ्रष्ट कर दिया। यशोदा इस बालक को यहॉं से ले जा।”
कान्हा माँ से तुतली बोली में कहते रहे-“माँ,इन्होंने ही मुझे खीर खाने को बुलाया था। अब ये डांटते हैं।”
माँ ने भी डपट दिया-“झूठे! वे भगवान को भोग लगा रहे थे,तू क्यों चला गया ?”
जैसे-तैसे गर्गाचार्य जी ने पुनः खीर बनाई। तब तक माता यशोदा ने कान्हा को थपकी देकर सुला दिया। इधर माता को भी नींद आ चली,सो वे भी झपकी लेने लगी। गर्गाचार्य जी ने फिर से खीर के पात्र में तुलसी पत्र डाले और लगे सच्चे मन से प्रार्थना करने-“त्वदीय मस्तु गोविन्दम….” नन्हें कान्हा ने झट से आँखें खोली और पहुंच गए खीर के पास। इस बार पुनः जब गर्गाचार्य जी की आँखें खुली तो देखा खीर फिर से चट हो गई है। वे आग-बबूला हो गए,लेकिन इस बार कान्हा ने उन्हें चुप कर दिया। कहने लगा-“बार-बार मुझे भोग लगाने को आवाज देते हो,और गुस्सा भी होते हो।” ऋषि बोले,-“अरे बालक मैं तो चारभुजा जी भगवान को याद करता हूँ।” कान्हा बोला-“अच्छा तो देखो मेरा वही रूप।” कान्हा ने ज्यों ही अपना विराट रूप दिखाया, गर्गाचार्य जी की आँखें फटी की फटी रह गई। आँखों से आँसू बह निकले।
अपने कान्हा को इस रूप में देखकर मन में सोचने लगे-“कितना अच्छा हो यदि कान्हा मेरी गोद में आकर बैठ जाए…।” बस सोचने की देरी थी,कान्हा उनकी गोद में था। माता यशोदा उठीं तो दृश्य देखकर चकित रह गई। गर्गाचार्य जी की आँखों से टप-टप आँसू टपक रहे हैं और वे नन्हें-भोले कान्हा को अपने हाथों से खीर खिला रहे हैं।
जानते हैं आप कान्हा ने क्या प्रेरणा दी ? कान्हा ने समझाया कि, जाति से कोई बड़ा-छोटा नहीं होता। सब एक समान हैं। हम सब यदि एकसाथ,मिल-जुलकर प्रेम से रहें तो हमारा देश कितना मजबूत हो जाएगा ? तो याद रखेंगे ना कान्हा का यह सन्देश भी ? वनवासी, गिरिवासी,नीची जाति का,ऊंची जाति का,पिछड़ा या अगड़ा,अमीर या गरीब सब समान हैं। एक भारतमाता की सन्तान। आज यही प्रेरणा प्राप्त करें हम नन्हें प्रेरणापुंज श्रीकृष्ण से।

परिचय-डॉ. विकास दवे का निवास इंदौर (मध्यप्रदेश)में है। ३० मई १९६९ को निनोर जिला चित्तौड़गढ़ (राजस्थान) में जन्मे श्री दवे का स्थाई पता भी इंदौर ही है। आपकी पूर्ण शिक्षा-एम.फिल एवं पी-एच.डी. है। कार्यक्षेत्र-सम्पादक(बाल मासिक पत्रिका) का है। करीब २५ वर्ष से बाल पत्रकारिता के क्षेत्र में कार्यरत हैं। सामाजिक गतिविधि में डॉ.दवे को स्वच्छता अभियान में प्रधानमंत्री द्वारा अनुमोदित एवं गोवा की राज्यपाल डॉ. मृदुला सिन्हा द्वारा ब्रांड एम्बेसेडर मनोनीत किया गया है। आप केन्द्र सरकार के इस्पात मंत्रालय की हिंदी सलाहकार समिति में सदस्य हैं। इनकी लेखन विधा-आलेख तथा बाल कहानियां है। प्रकाशन के तहत सामाजिक समरसता के मंत्रदृष्टा:डॉ.आम्बेडकर,भारत परम वैभव की ओर, शीर्ष पर भारत,दादाजी खुद बन गए कहानी (बाल कहानी संग्रह),दुनिया सपनों की (बाल कहानी संग्रह), बाल पत्रकारिता और सम्पादकीय लेख:एक विवेचन (लघु शोध प्रबंध),समकालीन हिन्दी बाल पत्रकारिता-एक अनुशीलन (दीर्घ शोध प्रबंध), राष्ट्रीय स्वातंत्र्य समर-१८५७ से १९४७ तक(संस्कृति मंत्रालय म.प्र.शासन के लिए),दीर्घ नाटक ‘देश के लिए जीना सीखें’,(म.प्र.हिन्दी साहित्य अकादमी के लिए) और हिन्दी पाठ्य पुस्तकों में ४ रचनाएं सम्मिलित होना आपके खाते में है। १००० से अधिक रचनाओं का प्रकाशन बाल पत्रिका सहित विविध दैनिक-मासिक पत्र-पत्रिकाओं में है,जबकि ५० से अधिक शोध आलेखों का प्रकाशन भी हुआ है।डॉ.दवे को प्राप्त सम्मान में बाल साहित्य प्रेरक सम्मान २००५,स्व. भगवती प्रसाद गुप्ता सम्मान २००७, अ.भा. साहित्य परिषद नई दिल्ली द्वारा सम्मान २०१०,राष्ट्रीय पत्रकारिता कल्याण न्यास,दिल्ली सम्मान २०११,स्व. प्रकाश महाजन स्मृति सम्मान २०१२ सहित बाल साहित्य जीवन गौरव सम्मान २०१८ प्रमुख हैं। आपकी विशेष उपलब्धि म.प्र. शासन के पाठ्यक्रम में नैतिक शिक्षा समाहित करने हेतु गठित सलाहकार समिति में सदस्य,म.प्र. शासन के पाठ्यक्रम में गीता दर्शन को सम्मिलित करने हेतु गठित सलाहकार समिति में सदस्य,म.प्र. साहित्य अकादमी के पाठक मंच हेतु साहित्य चयन समिति में सदस्य। होना है। आपको ७ वर्ष तक मासिक पत्रिका के सम्पादन का अनुभव है। अन्य में सम्पादकीय सहयोग दिया है। आपके द्वारा अन्य संपादित कृतियों में- ‘कतरा कतरा रोशनी’(काव्य संग्रह), ‘वीर गर्जना’(काव्य संग्रह), ‘जीवन मूल्य आधारित बाल साहित्य लेखन’,‘स्वदेशी चेतना’ और ‘गाथा नर्मदा मैया की’ आदि हैं। विकास जी की लेखनी का उद्देश्य-राष्ट्र की नई पौध को राष्ट्रीय चेतना एवं सांस्कृतिक गौरव बोध से ओतप्रोत करना है। विशेषज्ञता में देशभर की प्रतिष्ठित व्याख्यानमालाओं एवं राष्ट्रीय-अन्तर्राष्ट्रीय संगोष्ठियों में १५०० से अधिक व्याख्यान देना है। साथ ही विगत २० वर्ष से आकाशवाणी से बालकथाओं एंव वार्ताओं के अनेक प्रसारण हो चुके हैं। आपकी रुचि बाल साहित्य लेखन एवं बाल साहित्य पर शोध कार्य सम्पन्न कराने में है |

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