राजबाला शर्मा ‘दीप’
अजमेर(राजस्थान)
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शिक्षक दिवस विशेष…
अनगढ़ पत्थर को तराश,
जो हीरा-सम चमकाता है
ज्ञान-मार्ग जो दिखलाता,
वह गुरुवर कहलाता है।
जीवन में सफलता के जो,
नये आयाम सिखाता है
बाधाएं कभी पथ में आएं,
समाधान सही बताता है।
जड़-चेतन में भेद बताता,
वह गुरुवर कहलाता है॥
कुंभकार जैसे माटी से,
नव नव घट गढ़ता है
गीली मिट्टी सम शिष्यों को,
सही पात्र में ढालता है।
सत-असत का पाठ पढ़ाता,
वह गुरुवर कहलाता है॥
चहुँ विकास का निर्माता है,
देश का भाग्य-विधाता है
सद्गुणों का ज्ञानी गुरु,
हमें ज्योतिर्मय बनाता है।
राष्ट्रप्रेम का भाव जगाता,
वह गुरुवर कहलाता है॥
लोहे को वह स्वर्ण बनाता,
सदाचार का पाठ पढ़ाता
उन्नति की राह बताता,
प्रकाश जीवन में फैलाता।
सच्चाई की सीख सिखाता,
वह गुरुवर कहलाता है॥
प्रेम, समर्पण, विश्वास का,
हमको सन्मार्ग दिखलाए
जीवन में भर रंग अनेक,
ज्योति-पुंज सा हमें बनाए।
ईश्वर एक है जो समझाता,
वह गुरुवर कहलाता है॥
परिचय– राजबाला शर्मा का साहित्यिक उपनाम-दीप है। १४ सितम्बर १९५२ को भरतपुर (राज.)में जन्मीं राजबाला शर्मा का वर्तमान बसेरा अजमेर (राजस्थान)में है। स्थाई रुप से अजमेर निवासी दीप को भाषा ज्ञान-हिंदी एवं बृज का है। कार्यक्षेत्र-गृहिणी का है। इनकी लेखन विधा-कविता,कहानी, गज़ल है। माँ और इंतजार-साझा पुस्तक आपके खाते में है। लेखनी का उद्देश्य-जन जागरण तथा आत्मसंतुष्टि है। पसंदीदा हिन्दी लेखक-शरदचंद्र, प्रेमचंद्र और नागार्जुन हैं। आपके लिए प्रेरणा पुंज-विवेकानंद जी हैं। सबके लिए संदेश-‘सत्यमेव जयते’ का है।