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चाहता हूँ मैं उड़ना

हीरा सिंह चाहिल ‘बिल्ले’
बिलासपुर (छत्तीसगढ़)
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इस तरह ज़िन्दगी ने मुझको रोका हुआ है।
चाहता हूँ मैं उड़ना, गम परों का दिया है॥

पर्वतों पे पहुंचना, वो शिलाओं पे चढ़ना,
कह रही ज़िन्दगी अब, इक कदम भी न बढ़ना।
आसमां कौन चाहे, पर जमीं तो न छूटे,
ख्वाब में वादियों का भी नजारा किया है॥
इस तरह ज़िन्दगी ने…

खेल की जुस्तजू तो छोड़ दी ज़िन्दगी ने,
मेल की आरजू भी तोड़ दी हर किसी ने।
चाॅंदनी की तमन्ना तो न करता कभी मैं,
मांगता प्यार ही मैं, जो सभी ने लिया है॥
इस तरह ज़िन्दगी ने…

एक सागर कभी था, मुझसे मिलतीं थीं नदियाँ,
बन गया अब्र जबसे, बूंद की भी न खुशियाँ।
एक तिनका बनूं मैं जो हवा से उड़ा है,
और सागर में लहरों को थकाता रहा है॥
इस तरह ज़िन्दगी ने…

परिचय–हीरा सिंह चाहिल का उपनाम ‘बिल्ले’ है। जन्म तारीख-१५ फरवरी १९५५ तथा जन्म स्थान-कोतमा जिला- शहडोल (वर्तमान-अनूपपुर म.प्र.)है। वर्तमान एवं स्थाई पता तिफरा,बिलासपुर (छत्तीसगढ़)है। हिन्दी,अँग्रेजी,पंजाबी और बंगाली भाषा का ज्ञान रखने वाले श्री चाहिल की शिक्षा-हायर सेकंडरी और विद्युत में डिप्लोमा है। आपका कार्यक्षेत्र- छत्तीसगढ़ और म.प्र. है। सामाजिक गतिविधि में व्यावहारिक मेल-जोल को प्रमुखता देने वाले बिल्ले की लेखन विधा-गीत,ग़ज़ल और लेख होने के साथ ही अभ्यासरत हैं। लिखने का उद्देश्य-रुचि है। पसंदीदा हिन्दी लेखक-कवि नीरज हैं। प्रेरणापुंज-धर्मपत्नी श्रीमती शोभा चाहिल हैं। इनकी विशेषज्ञता-खेलकूद (फुटबॉल,वालीबाल,लान टेनिस)में है।