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छँटेगी रात काली…

वकील कुशवाहा आकाश महेशपुरी
कुशीनगर(उत्तर प्रदेश)

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छटेगी रात काली और फिर होगा सवेरा भी,
हँसो लेकिन ज़माना एक दिन आयेगा मेरा भी।

भले ग़म ने तुझे चारों तरफ से घेर रक्खा है,
जरा सूरज निकलने दो छँटेगा ये अँधेरा भी।

नहीं रावण सिकंदर कंस का घर-बार बच पाया,
कहीं तुमको न ले डूबे सुनो अभिमान तेरा भी।

मेरी हिम्मत के आगे एक पल भी टिक नहीं सकता,
मुसीबत का कोई पिंजरा,किसी दुश्मन का घेरा भी।

बहुत बेशर्म बन्दा है निवाला छीन लेता है,
उसी की ज़द में है अब तो ग़रीबों का बसेरा भी।

न जाने क्या ज़हन में चल रहा था कल तलक उसके,
मिटाया भी बहुत उसने मेरा चेहरा,उकेरा भी।

यहाँ अपराधियों के हौंसले इतनी बुलंदी पर,
नहीं अपराध ही करते,बना लेते हैं डेरा भी।

निराशा छोड़ दो आकाश खुल के सीख लो जीना,
ख़िज़ां को झेलकर पौधों ने खुश्बू को बिखेरा भीll

परिचय-वकील कुशवाहा का साहित्यिक उपनाम आकाश महेशपुरी है। इनकी जन्म तारीख २० अप्रैल १९८० एवं जन्म स्थान ग्राम महेशपुर,कुशीनगर(उत्तर प्रदेश)है। वर्तमान में भी कुशीनगर में ही हैं,और स्थाई पता यही है। स्नातक तक शिक्षित श्री कुशवाहा क़ा कार्यक्षेत्र-शिक्षण(शिक्षक)है। आप सामाजिक गतिविधि में कवि सम्मेलन के माध्यम से सामाजिक बुराईयों पर प्रहार करते हैं। आपकी लेखन विधा-काव्य सहित सभी विधाएं है। किताब-‘सब रोटी का खेल’ आ चुकी है। साथ ही विभिन्न पत्र- पत्रिकाओं में रचनाओं का प्रकाशन हो चुका है। आपको गीतिका श्री (सुलतानपुर),साहित्य रत्न(कुशीनगर) शिल्प शिरोमणी सम्मान(गाजीपुर)प्राप्त हुआ है। विशेष उपलब्धि-आकाशवाणी से काव्यपाठ करना है। आकाश महेशपुरी की लेखनी का उद्देश्य-रुचि है।

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