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जन-जन का हित हो

प्रो.डॉ. शरद नारायण खरे
मंडला(मध्यप्रदेश)
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रामराज…

‘रामराज’ का अर्थ है सुराज व सुशासन। तुलसीदास जी ने ‘रामचरितमानस’ में रामराज पर पर्याप्त प्रकाश डाला है। मर्यादा पुरुषोत्तम श्री राम के सिंहासन पर आसीन होते ही सर्वत्र हर्ष व्याप्त हो गया, सारे भय-शोक दूर हो गए एवं दैहिक, दैविक और भौतिक तापों से मुक्ति मिल गई। कोई भी अल्पमृत्यु, रोग-पीड़ा से ग्रस्त नहीं था, सभी स्वस्थ, बुद्धिमान, साक्षर, गुणज्ञ, ज्ञानी तथा कृतज्ञ थे।
‘राम राज बैठे त्रैलोका। हरषित भए गए सब सोका॥
बयरु न कर काहू सन कोई। राम प्रताप विषमता खोई॥

दैहिक दैविक भौतिक तापा। राम राज नहिं काहुहि ब्यापा॥अल्पमृत्यु नहिं कवनिउ पीरा। सब सुंदर सब बिरुज सरीरा॥

नहिं दरिद्र कोउ दुखी न दीना।
नहिं कोउ अबुध न लच्छन हीना॥
सब गुनग्य पंडित सब ग्यानी।
सब कृतग्य नहिं कपट सयानी॥
राम राज नभगेस सुनु सचराचर जग माहिं।
काल कर्म सुभाव गुन कृत दुख काहुहि नाहिं॥’

वाल्मीकि रामायण में भरत जी रामराज के विलक्षण प्रभाव का उल्लेख करते हुए कहते हैं, “राघव! आपके राज्य पर अभिषिक्त हुए एक मास से अधिक समय हो गया। तब से सभी लोग निरोग दिखाई देते हैं। बूढ़े प्राणियों के पास भी मृत्यु नहीं फटकती है। स्त्रियाँ बिना कष्ट के प्रसव करती हैं। सभी मनुष्यों के शरीर हृष्ट-पुष्ट दिखाई देते हैं। राजन! पुरवासियों में बड़ा हर्ष छा रहा है। मेघ अमृत के समान जल गिराते हुए समय पर वर्षा करते हैं। हवा ऐसी चलती है कि, इसका स्पर्श शीतल एवं सुखद जान पड़ता है। राजन नगर तथा जनपद के लोग इस पुरी में कहते हैं कि हमारे लिए चिरकाल तक ऐसे ही प्रभावशाली राजा रहें।”
भारत में राम राज की स्थापना राम से पूर्व भी की गई थी। कहते हैं कि, प्रलय के बाद हर सतयुग में राम होते हैं और ‘राम राज’ की स्थापना की जाती है। यह अट्ठाईसवां कलियुग चल रहा है। विष्णु ही प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष रूप से धरती का भाग्य बनाते और बिगाड़ते हैं।
‌‌‌‌‌रा‌‌मराज की ६ प्रमुख विशेषताएँ हैं। इस काल में सभी सुखी है, सभी कर्तव्यपरायण हैं, सभी दीर्घायु है, सभी में दाम्पत्य प्रेम है, प्रकृति उदार है और सभी में नैतिक उत्कर्ष देखा जा सकता है। रामराज्य की बड़ी विशेषता यह है कि, यहाँ सभी प्रसन्न, सुखी, संतुष्ट, हृष्ट-पुष्ट हैं। सुख या संतुष्टि तन-मन दोनों की होती है।

भारत में रामराज का आधार लोक-कल्याणकारिता थी।जन-जन का हित साधना व लोक-मंगल को फलीभूत करना ही इसका उद्देश्य था।रामराज सबके अमन-चैन की कामना करता था। यह एक आदर्श शासन का दृष्टांत है, जो राजतंत्र में लोकहित को फलीभूत करता है, तथा ‘सर्वे भवन्तु सुखिन:’ के पावन ध्येय को सिद्ध करता है।

परिचय–प्रो.(डॉ.)शरद नारायण खरे का वर्तमान बसेरा मंडला(मप्र) में है,जबकि स्थायी निवास ज़िला-अशोक नगर में हैL आपका जन्म १९६१ में २५ सितम्बर को ग्राम प्राणपुर(चन्देरी,ज़िला-अशोक नगर, मप्र)में हुआ हैL एम.ए.(इतिहास,प्रावीण्यताधारी), एल-एल.बी सहित पी-एच.डी.(इतिहास)तक शिक्षित डॉ. खरे शासकीय सेवा (प्राध्यापक व विभागाध्यक्ष)में हैंL करीब चार दशकों में देश के पांच सौ से अधिक प्रकाशनों व विशेषांकों में दस हज़ार से अधिक रचनाएं प्रकाशित हुई हैंL गद्य-पद्य में कुल १७ कृतियां आपके खाते में हैंL साहित्यिक गतिविधि देखें तो आपकी रचनाओं का रेडियो(३८ बार), भोपाल दूरदर्शन (६ बार)सहित कई टी.वी. चैनल से प्रसारण हुआ है। ९ कृतियों व ८ पत्रिकाओं(विशेषांकों)का सम्पादन कर चुके डॉ. खरे सुपरिचित मंचीय हास्य-व्यंग्य  कवि तथा संयोजक,संचालक के साथ ही शोध निदेशक,विषय विशेषज्ञ और कई महाविद्यालयों में अध्ययन मंडल के सदस्य रहे हैं। आप एम.ए. की पुस्तकों के लेखक के साथ ही १२५ से अधिक कृतियों में प्राक्कथन -भूमिका का लेखन तथा २५० से अधिक कृतियों की समीक्षा का लेखन कर चुके हैंL  राष्ट्रीय शोध संगोष्ठियों में १५० से अधिक शोध पत्रों की प्रस्तुति एवं सम्मेलनों-समारोहों में ३०० से ज्यादा व्याख्यान आदि भी आपके नाम है। सम्मान-अलंकरण-प्रशस्ति पत्र के निमित्त लगभग सभी राज्यों में ६०० से अधिक सारस्वत सम्मान-अवार्ड-अभिनंदन आपकी उपलब्धि है,जिसमें प्रमुख म.प्र. साहित्य अकादमी का अखिल भारतीय माखनलाल चतुर्वेदी पुरस्कार(निबंध-५१० ००)है।