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जब आप पढ़ेंगे नहीं, तब समझेंगे कैसे, कौन बढ़िया ?-सिद्धेश्वर

पटना (बिहार)।

फेसबुकिया कवि लेखकों पर एक वरिष्ठ साहित्यकार ने जबरदस्त आरोप लगाया कि, वे अनर्गल लिख रहे हैं और उन्हें नित्य दिन झेलना पड़ता है। नई प्रतिभाओं के प्रति उन्होंने बहुत कुछ अनर्गल बातें कहीं और उनकी उपेक्षा की। आखिर उन्हें या उन जैसे रचनाकारों को सोशल मीडिया से इतनी परेशानी है तो जुड़े क्यों हैं ? कीचड़ में ही कमल खिलता है। जब आप पढ़ेंगे नहीं, तब समझेंगे कैसे, कौन बढ़िया है, कौन बेकार ? बड़ी पत्रिकाओं की तरह नाम को पढ़कर रचना पढ़िएगा, तो नई संभावनाओं को कैसे स्वीकार कीजिएगा ? कूड़ा-करकट तो बड़े साहित्यकार भी लिख रहे हैं, उसे कैसे झेल लेते हैं हम लोग ?
भारतीय युवा साहित्यकार परिषद के तत्वावधान में कवि-कथाकार सिद्धेश्वर ने आभासी आयोजन ‘तेरे मेरे दिल की बात’ में उपरोक्त बात कही। साहित्यिक संदर्भों से जुड़ी उक्त चर्चा में आपने ‘फेसबुकिया कवि-लेखक और वरिष्ठ साहित्यकार!’ के संदर्भ में कहा कि मोबाइल में सब कुछ कूड़ा-करकट ही नहीं, बेहतर भी लिखा जा रहा है। हमें संयम से काम लेना चाहिए। दुर्भाग्य है कि पुराने लेखक चाहते हैं कि सिर्फ मुझे पढ़ा जाए। आखिर श्रेष्ठता का मापदंड क्या है ? मरने के बाद प्रेमचंद, निराला, नीरज आदि कहते हैं क्या कि मुझे पढ़ो ? अधिकांश लोग उन्हें पढ़ रहे हैं या नहीं ?
बरुण कुमार (राजभाषा निदेशक-रेल मंत्रालय) ने कहा कि, फेसबुक पर घमंड और ठसदिमागी को मैंने नजदीक से देखा है और जवाब भी दिया है। सपना चंद्रा ने कहा कि, आज सोशल मीडिया किसी वरदान से कम नहीं है।
पुष्प रंजन ने कहा कि सोशल मीडिया नए लेखकों के लिए वरदान साबित हो रहा है।नवांकुर के लिए प्रसिद्ध लेखकों की रचनाएं आसानी से उपलब्ध हैं, जिसे पढ़कर वे लेखन कौशल सीख रहे हैं।
अनिता मिश्रा ‘सिद्धि’ ने कहा कि कोई रचनाकार अगर लिखता है तो इसमें हर्ज ही क्या है। साहित्य हो या कोई भी विधा, सतत अभ्यास ही उसे उस विधा में पारंगत बनाता है। अगर वरिष्ठ रचनाकार नवोदितों को सिखाते नहीं तो हतोत्साहित भी न करें।
परिषद की सचिव ऋचा वर्मा ने कहा कि, ख्यातिप्राप्त लेखकों को अपनी पूर्वधारणा से बाहर निकलना ही होगा, क्योंकि सोशल मीडिया ने हर साहित्यप्रेमी को यह अवसर दिया है कि अपनी सृजनात्मक अभिव्यक्ति से मित्रों को परिचित कराए। इस परिवर्तन को आत्ममुग्ध लेखक स्वीकार नहीं कर पा रहे हैं। किसी को उसकी बातें अनर्गल लगती है तो मत पढ़ो।

राज प्रिया रानी सहित मंजू सक्सेना, विजय कुमारी मौर्य, राजेंद्र राज, संतोष मालवीय, प्रियंका श्रीवास्तव शुभ्र, चैतन्य किरण, शैलेंद्र सिंह और नीलम श्रीवास्तव आदि ने भी विचार प्रस्तुत किए।

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