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जब तुम न होगे

रेखा बोरा
लखनऊ (उत्तर प्रदेश)
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क़तरा-क़तरा
पिघलेंगी रातें तब…
ख़ामोश निगाहें
ढूँढा करेंगी…
रातों के
काले सायों में
तुमको…।
चाँद का मायूस
चेहरा देखकर,
सितारों की आँखें
भी नम होंगी,
और मैं फिर से…
बिखरे लफ़्जों को
समेटकर…
पिघलती रात की
स्याही से
फिर से,
इक नज़्म लिखूँगी
नाम तेरे…।
हाँ!
यही बात होगी…
जब तुम न होगे,
हर लम्हा…
सदियों-सा
लम्बा होगा…॥

परिचय-रेखा बोरा का जन्म २ जनवरी १९६० को लखनऊ में हुआ है। आप वर्तमान में स्थाई रुप से जानकीपुरम (लखनऊ) में ही निवासरत हैं। उत्तर-प्रदेश की रेखा बोरा को हिन्दी,अंग्रेजी, गढ़वाली,पंजाबी,अवधी और बिहारी भाषा का ज्ञान है। आपकी पूर्ण शिक्षा-एम.ए.,एल.एल. बी. और पी.जी.डी.सी.ए. है। कार्यक्षेत्र-नौकरी (लखनऊ विश्वविद्यालय) है। सामाजिक गतिविधि कॆ निमित्त आप रक्तदाता,परिवार कल्याण एवं परिवार नियोजन के क्षेत्र में तथा मुनाल सांस्कृतिक संस्था के साथ भी कार्यरत हैं। इनकी लेखन विधा-गीत,ग़ज़ल,हाइकू,लेख, लघुकथा,कहानी,संस्मरण और यात्रा विवरण आदि है। करीब १० साझा संकलन प्रकाशित हैं,तो कुछ प्रकाशन की दिशा में हैं। रेखा बोरा की रचनाएं कईं पत्र-पत्रिका में प्रकाशित होती हैं। प्राप्त सम्मान-पुरस्कार में आपने प्रजातंत्र का स्तम्भ गौरव सम्मान,डॉ.सतीश स्मृति सम्मान,हरिवंशराय बच्चन स्मृति सम्मान, साहित्य रत्न सम्मान,जी.डी.फाउण्डेशन रत्न सम्मान,साहित्य साधक सम्मान,शब्द साधक सम्मान,साहित्य साम्राज्ञी सम्मान, विश्वविद्यालय द्वारा सम्मान और आरेख प्रतियोगिता सहित अन्य में भी पुरस्कार प्राप्त किए हैं। आपकी लेखनी का उद्देश्य-मन में उमड़ते हुए भावों को काग़ज में उकेरना और दूसरों तक अपनी बात पहुंचाना है। पसंदीदा हिन्दी लेखक-महादेवी वर्मा,सुमित्रानंदन पन्त, सर्वेश्वर दयाल सक्सेना,गौरा पंत शिवानी, मृणाल जोशी,मन्नू भंडारी,गुलज़ार और नीरज जी को मानने वाली रेखा जी कॆ लिए प्रेरणापुंज-पहाड़,झरने,वादियां,आकाश,पंछी, ठंडी बयारे,बारिश,नदी-समुद्र हैं। विशेषज्ञता-अतुकांत कविता की है। देश और हिंदी भाषा के प्रति विचार-“हिंदी भाषा को किसी बंधन में न बांधकर स्वछन्द छोड़ दिया जाए।”

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