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जहाँ एहसास,वहाँ सावन

ममता तिवारी
जांजगीर-चाम्पा(छत्तीसगढ़)
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झड़ी लगती नहीं तो क्या,कभी होगा नहीं सावन,
खिजाँ हरदम कहाँ थमती,कभी तो आएगा सावन।

छुआ शब्दों न पूछ ऐसा,लगे स्पर्श मुझे सावन,
जहाँ एहसास भीगे मन,भरे पतझड़ वहाँ सावन।

रवानी शब्द की ऐसे,बने अल्हड़ नदी सावन,
तराशे तुम बना हीरा,अगढ़ पत्थर पड़ा सावन।

दरारें मौन की मिट्टी,बहाती प्रीत भरी सावन,
सुनो दिल दरकते कच्चे,बहे दीवार भी सावन।

महज़ किरदार से महकी,फकत यूँ ही नहीं सावन,
समेटे लाख बरसाते अलख,भीतर बसे सावन।

सम्भाली है रखी बातें,छुपा कर और इक सावन,
भिगाया थे बिना पानी,भिगोएंगे उसी सावन।

समझ लो सोच कर आना,इधर आये भरे सावन,
न कहना तुम बताया ना,थमा मेरे शहर सावन।

नई इक नाव कागज की,पुरानी याद का सावन,
उसी कश्ती सवारी कर बहेंगे हम नए सावन।

कभी मोहलत नहीं थी तब,जिएंगे मिल वही सावन,
पढ़ोगे तुम वही सावन,लिखेंगे हम वही सावन॥

परिचय–ममता तिवारी का जन्म १अक्टूबर १९६८ को हुआ है। वर्तमान में आप छत्तीसगढ़ स्थित बी.डी. महन्त उपनगर (जिला जांजगीर-चाम्पा)में निवासरत हैं। हिन्दी भाषा का ज्ञान रखने वाली श्रीमती तिवारी एम.ए. तक शिक्षित होकर समाज में जिलाध्यक्ष हैं। इनकी लेखन विधा-काव्य(कविता ,छंद,ग़ज़ल) है। विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं में आपकी रचनाएं प्रकाशित हैं। पुरस्कार की बात की जाए तो प्रांतीय समाज सम्मेलन में सम्मान,ऑनलाइन स्पर्धाओं में प्रशस्ति-पत्र आदि हासिल किए हैं। ममता तिवारी की लेखनी का उद्देश्य अपने समय का सदुपयोग और लेखन शौक को पूरा करना है।

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