जसवीर सिंह ‘हलधर’
देहरादून( उत्तराखंड)
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लिख रहा आज मैं कविता,सपने की एक कहानी,
भारत माता रो-रो कर,आँखों भर लाई पानी।
भारत माता ने पूछा,खोया सुख वैभव सारा,
गलियों में क्यों चिंगारी,सड़कों पर क्यों अंगारा।
धीरज रख मैया मेरी,वह समय शीघ्र आएगा,
सारी दुनिया का फिर से,भारत गुरु कहलाएगा।
विश्वास करो माँ कवि का,वैभव अवश्य आएगा,
मतलब कुनबे का जग को,भारत ही समझाएगा।
मैया मेरा क्या मैं तो,नित देश राग गाता हूँ,
कविता के द्वारा जग में,भाईचारा लाता हूँ।
कविताएं मेरी जग में,नवयुग आह्वान करेंगी,
सागर-सी उठती लहरें,कण-कण में रंग भरेंगी।
मैं स्वयं चिता में जलकर,नव ज्योति जला जाऊंगा,
अपनों की इस धरती पर,जाने फिर कब आऊंगा।
आते हर युग में भँवरे,कलियों पर मंडराने को,
पर मैं न रहूंगा जग में,माँ तेरे गुण गाने को।
तब कुशल क्षेम को मेरी,नभ से राही आएंगे,
कविता मेरी मंचों पर,सज-धज कर वो गाएंगे।
कविता जो भी गाएगा,छंदों का रूप बदल कर,
मैं साथ रहूंगा उनके,ज्यों साथ हमारे दिनकर।
मैंने भी तो गाया है,बीते युग के गायन को,
मुगलों के राजतिलक को,अंग्रेजी वातायन को।
क्यों जैन बुद्ध ने मिलकर,तुझको कमजोर बनाया,
ये सत्य अहिंसा वाला,उपदेश काम कब आया।
गौतम के कर्म देखकर,यह मन मेरा अकुलाता,
इस अंध कूप में बतला,डूबी क्यों भारत माता।
भारत में अलख जगाने,फिर एक पुजारी आया,
गांधी कहकर जनता ने,उसको भी गले लगाया।
इस सत्य अहिंसा का माँ,उसने भी पाठ पढ़ाया,
विघटन तेरा हे मैया,गांधी भी रोक न पाया।
बटबारे में माँ तुझको,कुछ ऐसे घाव मिले थे,
लाशों से धरा पटी थी,पत्थर रो-रो पिघले थे।
सब छोड़ पुरानी बातें,हमने यह देश संवारा,
चोरी से घर घुस बैठा,आतंकवाद का नारा॥