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जाति प्रथा विष, भारतीयों एक हो जाओ

ममता तिवारी ‘ममता’
जांजगीर-चाम्पा(छत्तीसगढ़)
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    वर्ण व्यवस्था से पहले ब्राह्मण थे ही नहीं, तब ब्राह्मणों ने इसे कैसे बनाया ?

अगर बनाया भी तो राज्य, व्यापार, खेती पशुधन सम्पत्ति और कौशल अपने हिस्से न रखकर तीनों वर्ग को बांटकर अपने हिस्से ज्ञानार्जन और तपोवन क्यों चुना ?
लाखों वर्षों से सतयुग से कलयुग (प्रथम चरण ईस्वी १८ वीं सदी तक, साढ़े ३ युग तक) तक ९९ प्रतिशत लोग १ प्रतिशत ब्राह्मणों के हाथों छलाते रहे, कोई विद्रोह- आंदोलन क्यों नहीं किया ?
इसका उत्तर यह है, क्योंकि यह वर्ण व्यवस्था किसी एक वर्ग विशेष के व्यक्ति ने शोषण के लिए नहीं, सर्व समाज ने स्व व्यवस्था स्व पोषण के लिए बनाई थी।
ब्राम्हण ज्ञान-विज्ञान, कौशल प्रदाता थे। वे शांत वन और आश्रम में समाज और जन कल्याणार्थ, योग, प्रयोग, शस्त्र, शास्त्रार्थ, उद्यम और उद्योग, चिकित्सा, खगोल, भूगोल, गणित, शरीर विज्ञान , परा‌-अपरा, लौकिक- इहलौकिक खोज-अनुसंधान करते थे। उनकी सेवा से उपकृत समाज बदले में स्वमेव सम्मान और उनका पोषण करते थे।
ऐसे ही लोहा, सोना, तांबा, वस्त्र, चर्म, कुम्भ, बाल बनाने, वस्त्र धोने, पशुपालन, कृषि, और जल संरक्षण के लिए कुआँ, तालाब खुदाई, मछली आदि जल का कार्य अन्य श्रम इत्यादि कर्म करने वाले के पास उनका कौशल और औजार स्वमेव बालपन से देखते-सीखते पिता से पुत्र को प्राप्त हो जाता था। वो भी वही कार्य करने लगता था। यह कोई जाति नहीं, न ही किसी ने इसे बनाया है। लोहे का काम करने वालों को लोहार‌, मिट्टी का काम करने वालों वालों को कुम्भकार, इसी तरह अन्य काम करने वालों के पेशे के नाम से वर्ग बने और पुकारा जाने लगा।
इन सभी ने मिल कर समाज बनाए। इसके सुशासन-सुरक्षा के लिए अपने मध्य से ताकतवर को मुखिया बनाया और बहुत से मुखियाओं ने मिल राज्य‌ और राजा बनाए। अब इसमें ब्राम्हण कहाँ आया यहाँ पर…?
आधुनिक कलियुग में विश्व में कुछ मत, विचार, संप्रदाय जन्म हुए (ईसाई, मुस्लिम, साम्यवाद आदि), तभी से अपना वर्चस्व स्थापित करने की होड़ प्रारंभ हुई। इनके भारत आगमन के साथ स्थापित होने, भारतीय समाज व्यवस्था छिन्न-भिन्न करने का जो जहर बोया गया और जिसे विदेशियों के जाने के बाद देशी लोगों ने सत्ता के लिए उपयोग किया, उस विष का नाम जाति प्रथा है।
आज समय और परिस्थिति बदल चुकी है। इसलिए, भारतीयों निंद्रा से उठो, एक हो जाओ।

परिचय–ममता तिवारी का जन्म १अक्टूबर १९६८ को हुआ है। वर्तमान में आप छत्तीसगढ़ स्थित बी.डी. महन्त उपनगर (जिला जांजगीर-चाम्पा)में निवासरत हैं। हिन्दी भाषा का ज्ञान रखने वाली श्रीमती तिवारी एम.ए. तक शिक्षित होकर समाज में जिलाध्यक्ष हैं। इनकी लेखन विधा-काव्य(कविता ,छंद,ग़ज़ल) है। विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं में आपकी रचनाएं प्रकाशित हैं। पुरस्कार की बात की जाए तो प्रांतीय समाज सम्मेलन में सम्मान,ऑनलाइन स्पर्धाओं में प्रशस्ति-पत्र आदि हासिल किए हैं। ममता तिवारी की लेखनी का उद्देश्य अपने समय का सदुपयोग और लेखन शौक को पूरा करना है।