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जिंदगी की मोह माया

जसवीर सिंह ‘हलधर’
देहरादून( उत्तराखंड)
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रूप की सोलह कला में चाँद कब से ढल रहा है।
और ऊपर आग का गोला युगों से जल रहा है।

आदमी को भोगनी है सृष्टि की स्वाधीन गतियां,
राह के प्रतिकूल वो क्यों धूल माथे मल रहा है।

मौत से हारी अभी तक जिंदगी की मोह माया,
रोज लालच में हमारा लक्ष्य हर दिन टल रहा है।

क्या लिखूं इतिहास इसका जिंदगी क्षण भर कहानी,
प्राण के शाश्वत गमन में गात पल-पल गल रहा है।

बंधनों से मुक्त होते हैं नियम क्या भू-निलय के,
राशि फल की आड़ में फिर वो हमें क्यों छल रहा है।

है बहुत छोटी मगर यह जिंदगी वरदान मानो,
लोभ का अभिशाप इसकी कोख में भी पल रहा है।

सत्य सुंदर शिव जगत में शांति की लौ को जगाता,
ज्ञान का आलेख ‘हलधर’ नास्तिकों को खल रहा है॥

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