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जीवंतता का पर्याय है रेणु गुप्ता की लघुकथाएं

पटना (बिहार)।

हिंदी साहित्य में ‘लघुकथा’ को पूरे देश में विधागत प्रतिष्ठा दिलवाने में बिहार की अहम भूमिका रही है l ‘लघुकथा’ के विकास की जब भी चर्चा होती है, हम स्व. सतीशराज पुष्करणा जी को शिद्दत के साथ याद करते हैं। इसमें दो मत नहीं कि, रेणु गुप्ता के पास अच्छे कथा बीज़ हैं, उनकी लेखनी में शब्दों का कसावपन और जीवंतता भी है। यानि शब्दों का कसाव और जीवंतता का पर्याय रेणु गुप्ता की लघुकथाएं हैं।
भारतीय युवा साहित्यकार परिषद के तत्वावधान में आभासी माध्यम से हुए लघुकथा सम्मेलन के प्रथम सत्र में वरिष्ठ लघुकथा लेखिका रेणु गुप्ता की लघुकथाओं पर कवि सिद्धेश्वर ने यह उद्गार व्यक्त किए। उन्होंने कहा कि, सृजनात्मक धरातल पर रेणु गुप्ता की लघुकथाएं पाठकों को पूरी तरह संतुष्ट करने में कामयाब हैं।
सम्मेलन की मुख्य अतिथि रेणु गुप्ता ने कहा कि, आज लघुकथा के पितामह दिवंगत डॉ. सतीश राज पुष्करणा ने राष्ट्रीय स्तर पर लघुकथा विधा को मान्यता प्रदान करने एवं उसे प्रतिष्ठित ऊंचाइयों तक ले जाने में महती योगदान दिया। इस अवसर पर आपने अपनी ८ लघुकथा का वाचन किया। सारी की सारी सार्थक और संवेदना के धरातल पर पूरी तरह कसी रही।
कार्यक्रम की अध्यक्षता करते हुए चर्चित लघुकथा लेखिका सुषमा सिंह ने कहा कि, पहली बार एकसाथ इतनी श्रेष्ठ लघुकथा सुनने का अवसर प्राप्त हुआ। सपना चंद्र की लघु कथा ‘आदमी लगता है’ मार्मिक रही। निर्मल कुमार डे की ‘रिश्ते’, ऋचा वर्मा की विज्ञान पर आधारित नए कलेवर से सजी-धजी ‘हस्ती मिटती नहीं हमारी’ व डॉ. अनुज प्रभात की ‘पानी बोले तो क्या बोले..?’ आदि ने भी हृदय द्रवित किया तो सिद्धेश्वर की लघुकथा ‘आत्म संवाद’ ने एक रचनाकार को आईना दिखाया। प्रस्तुत सारी लघुकथाएं एक से बढ़कर एक रही ।
दूसरे सत्र में देशभर के १२ से अधिक लघुकथाकारों ने अपनी प्रतिनिधि लघुकथा का पाठ कर श्रोताओं का मन मुग्ध कर दिया। इंदु उपाध्याय की ‘चुप्पी’, सुषमा सिन्हा की ‘दुविधा’ व नरेंद्र कौर छाबड़ा की ‘फर्क’ आदि लघुकथाएं
काफी सराही गई।