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जीवन-मुस्कान दें दिव्यांगों को

ललित गर्ग

दिल्ली
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अन्तर्राष्ट्रीय विकलांग दिवस (३दिसम्बर) विशेष…

हर वर्ष ३ दिसम्बर का दिन अंतरराष्ट्रीय स्तर पर विकलांग (दिव्यांग) व्यक्तियों को समर्पित है। विकलांग भी किसी से कम नहीं, उन्हें आत्मनिर्भर बनने के लिए थोड़े से सहयोग एवं समतामूलक दृष्टिकोण अपनाने की जरूरत है। इसका मुख्य उद्देश्य विश्वभर में विकलांगता और विकलांग लोगों के साथ सामाजिक, पारिवारिक, आर्थिक, और सांस्कृतिक भागीदारी को बढ़ावा देना है और उनके अधिकारों, समर्थन, और समाज में उनके साथ सौहार्द्र बनाए रखना है। इसे वर्ष १९७६ में संयुक्त राष्ट्र आम सभा द्वारा ‘विकलांगजनों के अंतरराष्ट्रीय वर्ष’ के रूप में मनाया गया और १९८१ से दिवस मनाने की विधिवत शुरूआत हुई। विकलांगों के प्रति सामाजिक सोच को बदलने और उनके जीवन के तौर-तरीकों को और बेहतर बनाने एवं उनके कल्याण की योजनाओं को लागू करने के लिए इस दिवस की महत्वपूर्ण भूमिका है।
आज पूरी दुनिया में १ अरब लोग विकलांगता के शिकार हैं, जिनमें से ८० प्रतिशत विकासशील देशों में हैं। अधिकांश देशों में हर १० में से १ व्यक्ति शारीरिक या मानसिक रूप से विकलांग हैं। इनमें कुछ संवेदनाविहीन व्यक्ति भी हैं। विकलांगता एक ऐसा शब्द है, जो किसी को भी शारीरिक, मानसिक और उसके बौद्धिक विकास में अवरोध पैदा करता है। ऐसे व्यक्तियों को समाज में अलग ही नजर से देखा जाता है। यह शर्म की बात है कि, हम जब भी समाज के विषय में विचार करते हैं, तो सामान्य नागरिकों के बारे में ही सोचते हैं। उनकी ही जिंदगी को हमारी जिंदगी का हिस्सा मानते हैं। आखिर ऐसा क्यों होता है ? ऐसा किस संविधान में लिखा है कि, ये दुनिया केवल पूर्ण मनुष्यों के लिए ही बनी है ? बाकी वे लोग जो एक साधारण इंसान की तरह व्यवहार नहीं कर सकते, उन्हें अलग क्यों रखा जाता है ? दिव्यांगों में सबसे बड़ी बात यही होती है कि, ये स्वयं को कभी लाचार नहीं मानते। वे यही चाहते हैं कि, उन्हें अक्षम न माना जाए, उनसे सामान्य तरह से व्यवहार किया जाए, पर क्या यह संभव है ?
पिछले कुछ वर्षों में अंत. समुदाय के प्रयासों से इनके अधिकारों की रक्षा करने और दुनियाभर में एक बाधा-मुक्त, समतामूलक समाज की स्थापना करने में कुछ प्रगति हासिल हुई है, लेकिन इन लोगों को हाशिए पर धकेलने वाली पर्यावरणीय, सामाजिक, पारिवारिक और कानूनी बाधाएं फिर भी मौजूद हैं, इसलिए रोजगार, शिक्षा और चिकित्सा देखभाल में इन लोगों के अधिकार अभी भी अलग-अलग स्तर के प्रतिबंधों के अधीन हैं, पर विकलांग दिवस की बदौलत न केवल सरकारें, बल्कि आम जनता में भी इनके प्रति जागरूकता एवं सौहार्द का माहौल बना है। समाज में उनके आत्मसम्मान, प्रतिभा विकास, शिक्षा, सेहत और अधिकारों को सुधारने और उनकी सहायता के लिए एकसाथ होने की जरूरत है।
यह दिवस इनके अलग-अलग मुद्दों पर ध्यान केन्द्रित करता है और जीवन के हर क्षेत्र में इनको शामिल करने एवं उन्हें प्रतिभा प्रस्तुत करने का अवसर दिया जाता है। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने विकलांगों को विकलांग नहीं कहकर दिव्यांग कहने का प्रचलन शुरू कर न केवल उनके आत्म-विश्वास को जगाया, बल्कि एक नई सोच को जन्म दिया है। हमें इस बिरादरी को जीवन की मुस्कुराहट देनी है, न कि हेय समझना है। विकलांगता एक ऐसी परिस्थिति है, जिससे हम चाह कर भी पीछा नहीं छुड़ा सकते। एक आम आदमी छोटी-छोटी बातों पर झुंझला उठता है, तो जरा सोचिए उन बदकिस्मत लोगों का, जिनका खुद का शरीर साथ छोड़ देता है, फिर भी जीना कैसे है, कोई इनसे सीखे। कई लोग ऐसे हैं, जिन्होंने इसे अपनी कमजोरी नहीं, बल्कि ताकत बनाया है। ऐसे लोगों ने विकलांगता को वरदान साबित किया है।
प्रश्न यह भी है कि, इनको बेसहारा और अछूत क्यों समझा जाता है ? उनकी भी २ आँख, २ कान, २ हाथ और २ पैर हैं, अगर इनमें से कोई अंग काम नहीं करता तो इसमें इनकी क्या गलती ? यह तो नसीब का खेल है। इंसान तो फिर भी कहलाएंगे ना। इनके साथ जानवरों जैसा बर्ताव कहां तक उचित है ? किसी के पास पैसे की कमी है, किसी के पास खुशियों की, किसी के पास काम की तो अगर वैसे ही इनके शारीरिक, मानसिक, ऐन्द्रिक या बौद्धिक विकास में किसी तरह की कमी है तो क्या हुआ है ? कमी तो सबमें कुछ-न-कुछ है ही, तो अलग नजर से क्यों देखा जाए ? परिपूर्ण यानी सामान्य मनुष्य समाज की यह विडम्बना है कि, वे अपंग एवं विकलांग लोगों को हेय दृष्टि से देखते हैं, लेकिन विकलांग लोगों से हम मुँह नहीं चुरा सकते, क्योंकि आज भी कहीं-न-कहीं हम जैसे इन्हें हीन भावना का शिकार बना रहे हैं। उनकी कमजोरी का मजाक उड़ा कर उन्हें और कमजोर बना रहे हैं। उन्हें दया से देखने के बजाय उनकी मदद करें, आखिर उन्हें भी जीने का पूरा हक है। यह तभी मुमकिन है, जब आम आदमी इन्हें आम बनने दें। जीवन में परिस्थितियाँ भिन्न-भिन्न होती हैं और आदमी को भिन्न-भिन्न परिस्थितियों के प्रति सकारात्मक दृष्टिकोण अपनाना चाहिए।

मनुष्य के मजबूत इरादे दृष्टि दोष, मूक तथा बधिरता को भी परास्त कर देते हैं। अनगिनत लोगों की प्रेरणास्रोत, नारी जाति का गौरव मिस हेलेन केलर शरीर से अपंग थी, पर मन से समर्थ महिला थीं। उनकी दृढ़ इच्छाशक्ति ने दृष्टिबाधिता, मूक तथा बधिरता को पराजित कर नई प्रेरणा शक्ति को जन्म दिया। सुलिवान उनकी शिक्षिका ही नहीं, वरन् जीवन संगिनी जैसी थीं। उनकी सहायता से ही हेलेन केलर ने टालस्टाय, कार्लमार्क्स, नीत्शे, रविन्द्रनाथ टैगोर, महात्मा गाँधी और अरस्तू जैसे विचारकों के साहित्य को पढ़ा। हेलेन केलर ने ब्रेल लिपि में कई पुस्तकों का अनुवाद किया और मौलिक ग्रंथ भी लिखे। उनके द्वारा लिखित आत्मकथा ‘मेरी जीवन कहानी’ संसार की ५० भाषाओं में प्रकाशित हो चुकी हैं। सचमुच विकलांग एवं अंध होकर भी हेलेन केलर १९वीं शताब्दी की सबसे दिलचस्प महिला हैं। वे पूरे विश्व में ६ बार घूमीं और विकलांग व्यक्तियों के प्रति सहानुभूतिपूर्ण वातावरण का निर्माण किया। उन्होंने करोड़ों की धन राशि एकत्र करके विकलांगों के लिए अनेक संस्थानों का निर्माण करवाया। हेलेन केलर की तरह ही ऐसे अनेक विकलांग व्यक्ति हुए हैं, जिन्होंने विकलांगता को अपने जीवन निर्माण एवं विकास की बाधा नहीं बनने दिया। स्टीफन होकिंग का नाम भी दुनिया में एक जाना-पहचाना नाम है। उन्हें जानने का केवल एक ही कारण है कि, वे विकलांग होते हुए भी आइंस्टाइन की तरह अपने व्यक्तित्व और वैज्ञानिक शोध के कारण हमेशा चर्चा में रहे।