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जीवन में उत्साह जगाती है ‘पग-पग शिखर तक’

आरती सिंह ‘प्रियदर्शिनी’
गोरखपुर(उत्तरप्रदेश)
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झाबुआ (मध्य प्रदेश)निवासी प्रदीप अरोरा की संदेशात्मक एवं विचारात्मक कृति ‘पग-पग शिखर तक’ का प्रकाशन हो चुका है। प्रखर गूँज प्रकाशन द्वारा प्रकाशित यह पुस्तक कविताओं का सुंदर संग्रह है। प्रदीप अरोरा के कथनानुसार यह पुस्तक निराशा के दौर से गुजर रहे पाठकों के बंजर मन में उत्साह का बीजारोपण करने में सफल रहेगी। इस पुस्तक की पहली रचना ‘उत्साह की अपील’ तथा दूसरी ‘जीवन की रफ्तार’ उनकी इस उक्ति को सार्थक करती है। इस कविता में वह जीवन से मन को स्थिर रखकर नैतिकता,मर्यादा एवं सुचिता के साथ अग्रसर होने की राह दिखाते हैं।


‘यह जीवन है’ कविता में वह कहते हैं-
“मुझे विश्वास है,
जब मेरे शब्द तुम तक पहुंच रहे होंगे
तुम्हारे जीवन के अध्याय,
कर्म के पन्नों पर
सुनहरे भावों से संवर रहे होंगे।”
कुछ ऐसे ही वक्तव्य ‘जीवन दर्शन’, ‘परिवर्तन’ आदि कविताओं में भी व्यक्त होते हैं।
स्त्री जीवन की जटिल रंगों को अपनी लेखनी में समेटते हुए वह कहते हैं कि ‘नारी कैनवास का रंग नहीं है,क्योंकि-
उसकी पाजेब में अब केवल पायल की झनक नहीं है।
उसके कदमों से धमक से उठता है अब कालचक्र भी
‘माटी की सौंधी सुगंध’,’भूखे बच्चे और मृगछौने’,’दुविधा’,’रामू रिक्शावाला’,
‘पुनिया का बेटा हूँ’,आदि कविताएं समाज की विसंगतियों एवं मानव मन की विकृतियों की ओर इशारा करती है।
‘सज गए सपने
हुए भी साकार,
शहर आकर अटक गए
दो जून रोटी की खातिर कंक्रीट वन में भटक गए
सुहावना यह परिदृश्य भी है,
लेकिन माटी की न गंध है।’
जीवन की आपाधापी में खुशियों के पीछे भागता मनुष्य अपने पीछे जिन अनमोल धरोहर को छोड़ आता है, उसकी अहमियत उसे बहुत बाद में पता चलती है,और तब तक बहुत देर हो चुकी है।
“लगाव बना रहा इन्हीं ईंटों से,
तब भी ना बन पाया क्या घर
हाँ! जिंदगी यायावर जरूर हो गई।
एक अलग-सी कहानी कहती है ‘व्याकरण जीवन की कविता’
‘सदा खुशियों से परिपूर्ण है मेरी जिंदगी
मैंने की है खुद अपनी ही बंदगी,
अपने जीवन के व्याकरण मैं खुद बनाता हूँ।’
एक कवि के जीवन में शब्दों का क्या महत्व है,यह श्री अरोरा की संदेशात्मक कविता ‘शब्द भी ताल देंगे’ में परिलक्षित होती है।
“कदापि ना सोचना कि मौन अभिव्यक्त भंगिमा से हम हारे हैं
इस पड़ाव पर शब्द साधना बिना हम नहीं,
अब शब्द ही मेरे जीवन सरिता के धारे हैं”
जीवन को सकारात्मक नजरिए से देखते हुए ५२ कविताओं के माध्यम से श्री अरोरा पाठकों के मन में नव विचारों के अंकुर प्रस्फुटित करने में सफल रहे हैं। वह अपने ईश्वर,माता-पिता के साथ ही अपने गुरु ओम प्रकाश शुक्ल के आभारी हैं(जिन्होंने शब्द ब्रह्म की आराधना का मार्ग उन्हें दिखलाया)। कुल मिला कर यह सुंदर रचनाओं का संग्रह है।

परिचय-आरती सिंह का साहित्यिक उपनाम-प्रियदर्शिनी हैl १५ फरवरी १९८१ को मुजफ्फरपुर में जन्मीं हैंl वर्तमान में गोरखपुर(उ.प्र.) में निवास है,तथा स्थाई पता भी यही हैl  आपको हिन्दी भाषा का ज्ञान हैl इनकी पूर्ण शिक्षा-स्नातकोत्तर(हिंदी) एवं रचनात्मक लेखन में डिप्लोमा हैl कार्यक्षेत्र-गृहिणी का हैl आरती सिंह की लेखन विधा-कहानी एवं निबंध हैl विविध प्रादेशिक-राष्ट्रीय पत्र-पत्रिकाओं में इनकी कलम को स्थान मिला हैl प्रियदर्शिनी को `आनलाईन कविजयी सम्मेलन` में पुरस्कार प्राप्त हुआ है तो कहानी प्रतियोगिता में कहानी `सुनहरे पल` तथा `अपनी सौतन` के लिए सांत्वना पुरस्कार सहित `फैन आफ द मंथ`,`कथा गौरव` तथा `काव्य रश्मि` का सम्मान भी पाया है। आप ब्लॉग पर भी अपनी भावना प्रदर्शित करती हैंl इनकी लेखनी का उद्देश्य-आत्मिक संतुष्टि एवं अपनी रचनाओं के माध्यम से महिलाओं का हौंसला बढ़ाना हैl आपके लिए पसंदीदा हिन्दी लेखक-प्रेमचंद एवं महादेवी वर्मा हैंl  

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