शंकरलाल जांगिड़ ‘शंकर दादाजी’
रावतसर(राजस्थान)
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फूल पर मँडराया भँवरा,डालियाँ हिलती रही,
खिलखिलाती कलियों के सँग चाँदनी हँसती रही।
हँस लो जितना हँसना है,कल बीन कर ले जाएँगे,
कलियाँ मुरझा-सी गयी और चाँदनी हँसती रही।
सेज पर मधु यामिनी की दी बिछा इक शख्स ने,
सिसकती कलियाँ रही और चाँदनी हँसती रही।
देखता था मैं झरोखे में खड़ा कलियों को तब,
आँख से आँसू थे बहते,चाँदनी हँसती रही।
सोचता था बागबाँ क्यों बीन कर लाया यहाँ,
हाथ वो मलता रहा और चाँदनी हँसती रही।
रात यौवन पर थी तब और चाँद था इठला रहा,
चाँद के आगोश में आ चाँदनी हँसती रही।
गीत कोयल ने सुनाया,बज उठी स्वर लहरियाँ,
सप्तसुर पर मस्त हो कर चाँदनी हँसती रही।
बज उठी शहनाई,छेड़ा राग भैरव भैरवी,
धुन पे सरगम की मचल कर चाँदनी हँसती रही।
रोशनी मद्धिम हुई और चाँद भी छिपने लगा,
अपना सारा दम लगा कर चाँदनी हँसती रही॥
परिचय-शंकरलाल जांगिड़ का लेखन क्षेत्र में उपनाम-शंकर दादाजी है। आपकी जन्मतिथि-२६ फरवरी १९४३ एवं जन्म स्थान-फतेहपुर शेखावटी (सीकर,राजस्थान) है। वर्तमान में रावतसर (जिला हनुमानगढ़)में बसेरा है,जो स्थाई पता है। आपकी शिक्षा सिद्धांत सरोज,सिद्धांत रत्न,संस्कृत प्रवेशिका(जिसमें १० वीं का पाठ्यक्रम था)है। शंकर दादाजी की २ किताबों में १०-१५ रचनाएँ छपी हैं। इनका कार्यक्षेत्र कलकत्ता में नौकरी थी,अब सेवानिवृत्त हैं। श्री जांगिड़ की लेखन विधा कविता, गीत, ग़ज़ल,छंद,दोहे आदि है। आपकी लेखनी का उद्देश्य-लेखन का शौक है।