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जीवन सरगम

ममता तिवारी ‘ममता’
जांजगीर-चाम्पा(छत्तीसगढ़)
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वृहद गगन सम मन विस्तृत,
कलरव भाव विहंग भरा
आँखों दिखती हरियाली ही,
जब चित्त हो तरंग भरा
उत्सव प्रसून से झरते झर-झर,
सुख उमंग मकरंद सदा
तब घट घाटी से बज उठती,
मधुरध्वनि जलतरंग यदा।

किंतु व्यक्ति है वही अलौना,
सुध देह छोड़ अनंग रहा
पीड़ा पीसकर पी जाए जो,
पीर को जिसने भंग कहा
कोई तपस्वी तेजस्वी-सा,
मानस बहती गंग रही
तन्मय वह खोये न निज को,
सुख साधना अभंग रही।

जो उड़ेल दे मधु की मटकी,
जिसकी बोली छँद लगे
हृदयवान वह दान वीर जो,
धन कारण ना द्वंद करे
ग्रीष्म में झुलसे पादप पे,
हरियाली का रंग भरे
पीर अकेले पी बैरागी,
बाँटे प्रीत मलंग फिरे।

औचक परिवर्तन जीवन का,
जीवन को ले सँग हुआ
ठोकर में जीवन रखता वह,
जीवन से ना तंग हुआ
काल फांस में प्राण फंसा हो,
जड़ता जकड़ा अंग रहा
पीड़ा दबोचता बाहू से,
सच्चा बली मतंग रहा।

जीवन सरगम बना रागनी,
धवल शुभ्र सम्बंध सधा
करो इत्र क्रय मानवता का,
बिखरा चलो सुगंध सखा
चाहत नहिं स्वाति बूंद की,
मन अनुशासन प्रतिबंध रखा।
उस चातक को प्यास न व्यापे,
जल से जिसने युद्ध रचा॥

परिचय–ममता तिवारी का जन्म १अक्टूबर १९६८ को हुआ है। वर्तमान में आप छत्तीसगढ़ स्थित बी.डी. महन्त उपनगर (जिला जांजगीर-चाम्पा)में निवासरत हैं। हिन्दी भाषा का ज्ञान रखने वाली श्रीमती तिवारी एम.ए. तक शिक्षित होकर समाज में जिलाध्यक्ष हैं। इनकी लेखन विधा-काव्य(कविता ,छंद,ग़ज़ल) है। विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं में आपकी रचनाएं प्रकाशित हैं। पुरस्कार की बात की जाए तो प्रांतीय समाज सम्मेलन में सम्मान,ऑनलाइन स्पर्धाओं में प्रशस्ति-पत्र आदि हासिल किए हैं। ममता तिवारी की लेखनी का उद्देश्य अपने समय का सदुपयोग और लेखन शौक को पूरा करना है।

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