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जो मर्म को छू जाए, वही शिष्टाचार

डॉ.राम कुमार झा ‘निकुंज’
बेंगलुरु (कर्नाटक)

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जो मनुज मर्म को छू जाए, वह शिष्टाचार कहलाता है
रखे सहानुभूति संवेदन, बस वही मनुज जग भाता है
बचपन सीदित जो देख सड़क, ख़ुदगर्ज़ बना तज जाता है,
बस वही मनुज हमदर्द जगत, दृष्टांत शोध बन जाता है।

यह चित्रकथा अवदशा व्यथा, लावारिस बचपन दिखाती है
दुर्दिन दशा आज़ाद वतन, बस करुणार्द्र अश्क़ बहाती है
सार्वभौम राष्ट्र रोए बचपन, सिर पत्थर अवसीदन ढोता है,
गुमनाम प्रशासन चिरनिद्रा, लोकतंत्र चरित दर्शाता है।

अन्तर्मन भावों से प्रकटित, संवेद हृदय दर्शाता है
जो आर्तनाद अवसाद जख़्म जो मर्म दर्द छू जाता है
स्वाधीन वतन समता जन- मन, उल्लास उदय कर जाता है,
अफ़सोस मात्र विद्वेष सितम आक्रोश हृदय उपजाता है।

है संविधान आजाद वतन, मूलाधिकार दे जाता है
पहचान मनुज बस जाति-धर्म, कर्त्तव्य विमुख पथ जाता है
निर्मूल दीन लावारिस पथ, बस आग चित्त सुलगाता है,
फिर महाज्वाल कंगाल काल विकराल क्रान्ति दहलाता है।

मज़बूर श्रमिक जठराग्नि पीड़, प्रतिपल आँत सहलाता है
पर देख प्रशासन अनदेखा बेदर्द हृदय मुस्काता है
जो आत्म वेदना अन्तर्मन, विश्वास कहीं खो जाता है,
सम्वेदना कहाँ संवेद विरत जो मर्म कहाँ छू पाता है।

जो दे उदास मुख हँसिया सुख, जो दर्द सुकूं दे जाता है
जो बाँट खुशी सहयोग निरत, वह आर्त मर्म छू जाता है
लखि इतर क्लेश निज क्लेश, मन समुदार मनुज कहलाता है,
परमार्थ निकेतन जीवन जो, संतोष मनुज दे जाता है।

उत्थान सकल लखि प्रमुदित मन, उल्लास लोल मुस्काता है
बाँटें खुशियाँ मुस्कान अधर, गमगीन राष्ट्र खिल जाता है
सेवार्थ राष्ट्र कविमान हृदय दीनार्त मर्म बस जाता है,
उत्थान राष्ट्र हर दशा दिशा सार्वभौम राष्ट्र उद्गाता है।

हों सहज सरल व्यवहार, कुशल संकल्प अटल पथ जाता है
स्वाधीन वतन दुर्दिन विरत, समता अधिकार दिलाता है।
हम सन्तान धरा हैं एक मनुज, सद्भाव सत्य बन जाता है,
बस मददगार नारायण बन छू मर्म प्रीति मदमाता है॥

परिचय-डॉ.राम कुमार झा का साहित्यिक उपनाम ‘निकुंज’ है। १४ जुलाई १९६६ को दरभंगा में जन्मे डॉ. झा का वर्तमान निवास बेंगलुरु (कर्नाटक)में,जबकि स्थाई पता-दिल्ली स्थित एन.सी.आर.(गाज़ियाबाद)है। हिन्दी,संस्कृत,अंग्रेजी,मैथिली,बंगला, नेपाली,असमिया,भोजपुरी एवं डोगरी आदि भाषाओं का ज्ञान रखने वाले श्री झा का संबंध शहर लोनी(गाजि़याबाद उत्तर प्रदेश)से है। शिक्षा एम.ए.(हिन्दी, संस्कृत,इतिहास),बी.एड.,एल.एल.बी., पीएच-डी. और जे.आर.एफ. है। आपका कार्यक्षेत्र-वरिष्ठ अध्यापक (मल्लेश्वरम्,बेंगलूरु) का है। सामाजिक गतिविधि के अंतर्गत आप हिंंदी भाषा के प्रसार-प्रचार में ५० से अधिक राष्ट्रीय-अंतर्राष्ट्रीय साहित्यिक सामाजिक सांस्कृतिक संस्थाओं से जुड़कर सक्रिय हैं। लेखन विधा-मुक्तक,छन्दबद्ध काव्य,कथा,गीत,लेख ,ग़ज़ल और समालोचना है। प्रकाशन में डॉ.झा के खाते में काव्य संग्रह,दोहा मुक्तावली,कराहती संवेदनाएँ(शीघ्र ही)प्रस्तावित हैं,तो संस्कृत में महाभारते अंतर्राष्ट्रीय-सम्बन्धः कूटनीतिश्च(समालोचनात्मक ग्रन्थ) एवं सूक्ति-नवनीतम् भी आने वाली है। विभिन्न अखबारों में भी आपकी रचनाएँ प्रकाशित हैं। विशेष उपलब्धि-साहित्यिक संस्था का व्यवस्थापक सदस्य,मानद कवि से अलंकृत और एक संस्था का पूर्व महासचिव होना है। इनकी लेखनी का उद्देश्य-हिन्दी साहित्य का विशेषकर अहिन्दी भाषा भाषियों में लेखन माध्यम से प्रचार-प्रसार सह सेवा करना है। पसंदीदा हिन्दी लेखक-महाप्राण सूर्यकान्त त्रिपाठी ‘निराला’ है। प्रेरणा पुंज- वैयाकरण झा(सह कवि स्व.पं. शिवशंकर झा)और डॉ.भगवतीचरण मिश्र है। आपकी विशेषज्ञता दोहा लेखन,मुक्तक काव्य और समालोचन सह रंगकर्मी की है। देश और हिन्दी भाषा के प्रति आपके विचार(दोहा)-
स्वभाषा सम्मान बढ़े,देश-भक्ति अभिमान।
जिसने दी है जिंदगी,बढ़ा शान दूँ जान॥ 
ऋण चुका मैं धन्य बनूँ,जो दी भाषा ज्ञान।
हिन्दी मेरी रूह है,जो भारत पहचान॥