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खुद को जलना है

दिप्तेश तिवारी दिप
रेवा (मध्यप्रदेश)

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सारी उम्र बाती का लड़ना रहा उजियारे से,
सायद डरती थी वो पागल उस अंधियारे से।

मैंने कहा-तू तो सूरज का अभिमानी टीका है,
अग्नि कुंड का अंगार दिखाने वाली सीता है।

रणांगन में दीप ज्वलित केशव की गीता है,
सूर्य नही तो चिंगारी बन जो खुद में जीता है।

अपना सर्वस्व ऊर्जा तब्दील किया और लड़ने लगी उजियार से,
जैसे कोई सूरज फीका पडा हुआ हो तारे से।

तमतमा कर कहा-मुझे बुझा दे,इस अंधियारे की औकात नहीं,
मैं थक कर अपनों से बुझ जाऊं तो फिर कोई बात नहीं।

मैं अग्निवंशी जन्मा हूँ अंधियारे से मुझको ही लड़ना है,
लेकिन उससे लड़ने की खातिर मुझको खुद ही जलना है॥

परिचय- दिप्तेश तिवारी का साहित्यिक उपनाम `दिप` हैl आपकी जन्म तिथि १७ जून २००० हैl वर्तमान में आपका निवास जिला रेवा (म.प्र.)स्थित गोलंबर छत्रपति नगर में है। आप अभी अध्ययनरत हैंl लेखन में आपको कविता तथा गीत लिखने का शौक है। ब्लॉग भी लिखने में सक्रिय श्री तिवारी की विशेष उपलब्धि कम समय में ही ऑनलाइन कवि सम्मेलन में सम्मान-पत्र मिलना है।

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