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तीसरी भाषा के रुप में हिंदी अथवा अन्य भारतीय भाषा का विकल्प दिया जाए

हरिसिंह पाल

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शिक्षा नीति २०१९ के प्रारुप पर भाषा को लेकर बवाल………..

हम त्रिभाषा सूत्र के नाम पर हिंदी भाषा-भाषी लोग संस्कृत लेकर इतिश्री कर लेते हैं। अन्य भारतीय भाषाओं की ओर मुँह उठाकर भी नहीं देखते। यह दर्द सिर्फ तमिलनाडु का ही नहीं है,आप कर्नाटक ले लीजिए या मिजोरम,सबमें यही रोष है। बस ये राज्य मुखर नहीं हैं। अब तो ममता मुखर्जी भी यही भाषा बोलने लगी है। बस हम हिंदीतर क्षेत्रों के लोगों में यह तो विश्वास जमाएँ कि उनकी भाषा को भी पूरा-पूरा संरक्षण दिया जाएगा। हिंदीतर राज्यों में त्रिभाषा सूत्र में तीसरी भाषा के रुप में हिंदी अथवा अन्य भारतीय भाषा का विकल्प दिया जाए तो सभी राज्य स्वीकार कर लेगें,औ़र वहां के विद्यार्थी वैकल्पिक भाषा के रूप में हिंदी ही पढ़ना चाहेंगे। सभी भारतीय हिंदी के महत्व को समझते हैं,किंतु हिंदीतर क्षेत्र के लोग हिंदी की अनिवार्यता के विरोधी हैं,हिंदी के नहीं। इस तथ्य को भी हमें स्वीकार करना होगा। आज तमिलनाडु में हिंदी सिखाने के लिए सैकड़ों कोचिंग-विद्यालय चल रहे हैं। दक्षिण भारत हिंदी प्रचार सभा की परीक्षाओं में लाखों विद्यार्थी बैठते हैं।
(सौजन्य:वैश्विक हिंदी सम्मेलन,मुंबई)

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