राजू महतो ‘राजूराज झारखण्डी’
धनबाद (झारखण्ड)
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आज गगन ने पूछा धरती से,
‘बता तुम्हारा लक्ष्य क्या है ?’
धरती बोली-‘मैं आसमां बन जाऊं,
तारों को समेट मैं खिलखिलाऊँ।’
फिर धरती बोली वृक्षों से,
‘बताओ तुम्हारा लक्ष्य क्या है ?’
वृक्ष बोला-‘मैं पक्षी बन जाता,
आसमान में उड़ता और हर्षाता।’
पुनः वृक्ष ने पूछा पक्षी से,
‘बताओ तुम्हारा लक्ष्य क्या है ?’
पक्षी बोला-‘मैं मानव बन जाता,
मौज-मस्ती में जीकर हर्षाता।’
अब पक्षी ने पूछा मानव से,
‘बताओ तुम्हारा लक्ष्य क्या है ?’
मानव बोला-‘मैं इंद्र हो जाता,
बैठ सिंहासन पर हुक्म चलाता।’
कहता ‘राजू’ क्या हो गया है दुनिया को !
हर कोई दूसरों के पीछे भागता है
अपने लक्ष्य कर्म की चिंता छोड़,
दूसरों के कर्म लक्ष्य पर ललचाता है।
छोड़ तू ललचाना दूसरों पर,
अपने जन्म और कर्म की बात कर
लक्ष्य बना सत्य कर्म और स्वदेश पर,
पा जाओगे मंजिल तुम हँस-हँसकर।
मत देख तू दूसरों की उपलब्धि,
अपने सामर्थ्य को याद कर।
सत्कर्म, धैर्य और लगन से,
जग में अपना और देश का नाम कर॥
परिचय– साहित्यिक नाम `राजूराज झारखण्डी` से पहचाने जाने वाले राजू महतो का निवास झारखण्ड राज्य के जिला धनबाद स्थित गाँव- लोहापिटटी में हैL जन्मतारीख १० मई १९७६ और जन्म स्थान धनबाद हैL भाषा ज्ञान-हिन्दी का रखने वाले श्री महतो ने स्नातक सहित एलीमेंट्री एजुकेशन(डिप्लोमा)की शिक्षा प्राप्त की हैL साहित्य अलंकार की उपाधि भी हासिल हैL आपका कार्यक्षेत्र-नौकरी(विद्यालय में शिक्षक) हैL सामाजिक गतिविधि में आप सामान्य जनकल्याण के कार्य करते हैंL लेखन विधा-कविता एवं लेख हैL इनकी लेखनी का उद्देश्य-सामाजिक बुराइयों को दूर करने के साथ-साथ देशभक्ति भावना को विकसित करना हैL पसंदीदा हिन्दी लेखक-प्रेमचन्द जी हैंL विशेषज्ञता-पढ़ाना एवं कविता लिखना है। देश और हिंदी भाषा के प्रति आपके विचार-“हिंदी हमारे देश का एक अभिन्न अंग है। यह राष्ट्रभाषा के साथ-साथ हमारे देश में सबसे अधिक बोली जाने वाली भाषा है। इसका विकास हमारे देश की एकता और अखंडता के लिए अति आवश्यक है।