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तुम्हारी यादों का लिहाफ!

कवि योगेन्द्र पांडेय
देवरिया (उत्तरप्रदेश)
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तुम्हारी यादों का लिहाफ ओढ़कर,
गुजर रही है ये सर्दी
सुबह की धूप में,
हम दोनों साथ होते
बगीचे में।
तुम कलियों की तरह मुस्कुराती,
मैं तुम्हें घंटों तक निहारता
अनिमेष।
तुम दूब पे बिखरे हुए,
ओस की बूंद की तरह होती
जिसपे मैं नंगे पाँव टहलता,
तुम्हारी छुअन से पुलकित होता
मेरा रोम-रोम।
तुम सुबह की चाय होती,
जिसे होंठों से लगाकर
खिल उठता,
मेरा मन!
तुम शाम की सिहरन होती,
और मैं
तुम्हारी यादों को ओढ़कर,
गुजार लेता…
दिसम्बर का महीना॥

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