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तो क्या हम ‘दो राष्ट्रपिताओं’ के देश में जी रहे हैं ?

अजय बोकिल
भोपाल(मध्यप्रदेश) 

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खुद को राष्ट्रपिता महात्मा गांधी का प्रशंसक बताने वाले भारत के प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी को जब अमेरिका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प ने ‘फादर ऑफ इंडिया’ कहा तो शायद वे उसी ‘न्यू इंडिया’ और उसके ‘पिता’ के बारे में कह रहे थे,जिसकी व्यापक स्वीकृति का रोड-मैप पहले ही तैयार है और जिस पर अमल का नारियल फोड़ा जा चुका है,जिन्हें इसका विरोध करना हो,करते रहें। ट्रम्प के इस बयान की बापू और उनके विचारों में गहरी श्रद्‍धा रखने वालों और तमाम गांधीवादियों ने कड़ी आलोचना की है। बापू के पड़पोते तुषार गांधी ने तो यहां तक कहा कि शायद ट्रम्प खुद संयुक्त राज्य अमेरिका के ‘फादर ऑफ हिज ओन कंट्री’ जॉर्ज वॉशिंगटन की जगह लेना चाहते हैं। तुषार ने मोदी सरकार द्वारा महात्मा गांधी की १५०वीं जयंती पर आयोजित किए जाने वाले कार्यक्रमों को महज प्रतीकात्मक बताया। अर्थात यह सिर्फ दिखावा है,गांधी के प्रति सच्ची श्रद्धा अथवा उनकी सच्चे मन से स्वीकार्यता का परिचायक नहीं है। इधर ट्रम्प द्वारा दिए गए खिताब से गदगद केन्द्रीय मंत्री जितेन्द्र सिंह ने ऐलान कर दिया कि जिसे मोदी के ‘फादर ऑफ इंडिया’ होने पर गर्व नहीं,वह भारतीय नहीं है। ‘फादर ऑफ इंडिया’(अथवा राष्ट्र)पर बचे-खुचे ‘भ्रम’ को आरएसएस के वरिष्ठ नेता इंद्रेश कुमार ने साफ कर दिया कि महात्मा गांधी राष्ट्रपिता थे,तो लेकिन टूटे-फूटे और खंडित भारत के। नरेन्द्र मोदी कश्मीर में धारा ३७० और ३५-ए हटाने के बाद एकीकृत भारत के ‘फादर ऑफ इंडिया’ हैं। इस नई स्थापना के बाद आम भारतीय के मन में यह सवाल उठना स्वाभाविक है कि,क्या भारत के राष्ट्रपिता का ‘चेंज ऑफ गार्ड’ हो चुका है ? क्या नए इंडिया में मोदी ही राष्ट्रपिता कहलाने के सच्चे हकदार हैं ? यानी बापू का सारा किया कराया पानी में। अगर आप इस नए फंडे से असहमत हैं,तो भी आपको यह मान लेना चाहिए कि,अब आप ‘दो राष्ट्रपिताओं के देश’ में जी रहे हैं।

यह नई अवधारणा कई पुरानी मान्यताओं, ‘आस्थाओं और ऐतिहासिक सच्चाईयों को डस्टबिन में डालने की कोशिशों वाली है। इसकी पहली झलक तो मोदी के ६९वें जन्मदिन पर ही मिल गई थी,जब महाराष्ट्र के मुख्‍यमंत्री देवेन्द्र फडणवीस की पत्नी अमृता ने मोदी को बधाई देते हुए उन्हें ‘फादर ऑफ इंडिया’ बताया। उसके ४ दिन बाद ही न्यूयार्क में आयोजित साझा पत्रकार सम्मेलन में ट्रम्प ने मोदी को एक ‘पिता की तरह’ बताते हुए कहा कि मुझे याद है भारत(मोदी के) पहले कैसा था,वहाँ फूट थी,मारामारी थी। उन्होंने सबको एक किया,जैसे एक पिता करता है। हम उनको ‘फ़ादर ऑफ़ इंडिया’ कहेंगे।

ट्रम्प ने जो कहा,वह असल में राष्ट्रवादियों और तमाम मोदी भक्तों के मन की बात थी,जिसे चतुर ट्रम्प ने भांप लिया था। तत्काल इसकी अनुगूंज भारत में सुनाई देने लगी। ट्रम्प द्वारा मोदी को दिए गए खिताब को तमाम भारतीयों की आवाज बताया जाने लगा। इससे खफा महात्मा गांधी के पड़पोते तुषार गांधी ने कटाक्ष करते हुए कहा कि-“अगर किसी को लगता है कि भारत के राष्ट्रपिता को किसी नए से बदले जाने की जरूरत है तो उसका स्वागत है।“ वरिष्ठ कांग्रेस नेता जयराम रमेश ने कहा कि ट्रम्प द्वारा प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी को भारत का पिता कहना राष्ट्रपिता महात्मा गांधी का अपमान है।

अब यहां मुददा यह कि आखिर ‘फादर ऑफ नेशन’ अथवा ‘फादर ऑफ इंडिया’ अधिकृत पदवीयां हैं,खिताब है या‍ फिर किसी किस्म की ताजपोशी है ? वास्तव में ‘फादर ऑफ नेशन’ किसी राष्ट्र का किसी ऐसे व्यक्ति के प्रति कृतज्ञ और असीम आदर भाव से किया गया सम्बोधन है,जिसने अपनी(समन्वय,सहिष्णुता और असहमति के सम्मान के साथ)असाधारण नेतृत्व क्षमता से किसी राष्ट्र की मुक्ति,नवनिर्माण,उसके राजनीतिक,सांस्कृतिक एकीकरण एवं सशक्तिकरण में प्रेरक और निर्णायक भूमिका निभाई हो। दुनिया के कुछ देशों में ‘फादर ऑफ नेशन’ ‘फादर ऑफ फादरलैंड’ या ‘फादर ऑफ होमलैंड’ जैसे सम्बोधन आधिकारिक हैं। जैसे कि शेख मुजीबुर्रहमान बांगला देश के ‘फादर ऑफ नेशन’ हैं या जान ए मैकडोनाल्ड कनाडा के ‘फादर ऑफ कन्फेडरेशन’ हैं। हो ची मिन्ह विएतनाम के ‘फादर ऑफ नेशन’ हैं,लेकिन ज्यादातर देशों में यह जनमानस की असीम श्रद्धा और आदर से उपजा ‘लोक सम्बोधन’ है। इस दृष्टि से गांधी भी भारत के करोड़ों लोगों के लोकमान्य ‘फादर ऑफ नेशन’ हैं,न ‍कि अधिकृत ‘राष्ट्रपिता।’ वैसे गांधीजी को सबसे पहले यह सम्बोधन किसी विदेशी ने नहीं,खुद कांग्रेस में उनके धुर विरोधी रहे नेताजी सुभाष चंद्र बोस ने आजाद हिंद फौज बनाने के बाद १९९४ में सिंगापुर से अपने रेडियो प्रसारण में दिया था,जबकि गांधीजी को ‘महात्मा’ सम्बो‍धन सर्वप्रथम रवींद्रनाथ टैगोर ने दिया था,जिसे भारत की बहुतांश जनता ने ह्रदय से स्वीकार किया। हालांकि, समाज का एक वर्ग तब भी इससे असहमत था। इसके पीछे सिद्धान्त यह है कि,चूंकि जब राष्ट्र सनातन है तो उसका कोई पिता कैसे हो सकता है ? उसका सपूत( स्त्री हो तो क्या कहेंगे ?),सेवक या रक्षक हो सकता है लेकिन(जैविक)पिता(फादर)तो कतई नहीं।

यहां विरोधाभास यह है कि,जब राष्ट्र का पिता हो ही नहीं सकता और इसी बिना पर गांधी भी राष्ट्रपिता नहीं कहला सकते तो मोदी ‘फादर ऑफ इंडिया’ कैसे हो सकते हैं ?,और अगर मोदी फादर ऑफ इंडिया’ कहलाने काबिल हैं तो गांधी ‘फादर ऑफ नेशन’ अपने-आप हुए (कृपया इसे राष्ट्रपिता का वंशवाद न मानें),लेकिन यहां दिक्कत यह है ‍कि,मोदी को ‘फादर’ बताने के लिए गांधी को भी ‘फादर’(पितरों की तरह ही क्यों न हो) मानना मजबूरी है। इस नए ‘फादर ऑफ इंडिया’ की व्याख्या संघ के वरिष्ठ नेता इंद्रेश कुमार ने हाल में दिल्ली में आयोजित ‘श्यामाप्रसाद मुखर्जी नेशनल अवार्ड फार आउटस्टैंडिंग लीडरशिप २०१९’ कार्यक्रम में कर दी है। इसका सीधा अर्थ यह है कि पुराने फादर का अब राजनीतिक,सामाजिक और सांस्कृतिक तर्पण कर दिया जाना चाहिए। यह भी संभव न हो तो ओल्ड फादर को ‘ओल्ड एज होम’ में तो भेज ही ‍दिया जाना चाहिए,क्योंकि आचार-विचार की दृष्टि से भी उनका श्राद्ध हो चुका। उनके मुताबिक हमें मान लेना चाहिए कि जो जीवित है,वही असली पिता है। वही इस सनातन राष्ट्र का आधुनिक त्राता है,नवनिर्माता है। ट्रम्प के साथ बराबरी से ठहाके लगाकर,पाकिस्तान में सर्जिकल स्ट्राइक करके,मुस्लिम देशों से हर मान-सम्मान हासिल करके,कश्मीर में धारा ३७० हटाकर,कथित ‘देशद्रोहियों’ को उनकी औकात बताकर और अब आर्थिक एवं भाषाई एकीकरण की पहल कर मोदी ने ‘राष्ट्रपिता’ का सिंहासन स्वत: हासिल कर ‍लिया है। लाठी,धोती,चश्मे वाले पुराने बापू(अगर मानते हैं तो) को अब इतिहास की डस्टबिन में डाल दिया जाना चाहिए। आप न डालेंगे तो ‘नया इंडिया’ जल्द इसकी व्यवस्था कर देगा। लिहाजा, ‘स्वच्छता अभियान’ का यह नया और विचलित करने वाला वैचारिक कोण है। ‘राष्ट्रपिता’ की इस नूतन व्याख्‍या और पदारोहण में यह भाव भी निहित है कि बापू की १५०वीं जयंती के साथ ‘ओल्ड फादर ऑफ नेशन’ का अध्याय उनके दर्शन और विचार के साथ ही अंतिम तौर पर बंद और ‘न्यू फादर ऑफ इंडिया’ का नया युग शुरू,फिर अंजाम चाहे जो हो,पर सवाल यह है कि क्या गांधी को इस देश और दुनिया में नकारना क्या संभव है ?

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