कुल पृष्ठ दर्शन : 199

You are currently viewing दाँव सभी का एक

दाँव सभी का एक

डॉ.राम कुमार झा ‘निकुंज’
बेंगलुरु (कर्नाटक)

*************************************************

दाँव सभी का एक है, बस सत्ता सुख भोग।
राजनीति के व्यूह में, फँसते बिन सहयोग॥

दाँव सभी का एक है, दे दूसरों को घाव।
नीति न्याय अन्याय में, मिले साथ दुर्भाव॥

दाँव सभी का एक सम, बस धोखा सद्मीत।
लोभ मोह हिंसा घृणा, आत्म- प्रशंसा गीत॥

कार्य सिद्धि बस चाह मन, दाँव सभी का एक।
निरत मार्ग खल बल कपट, चाहत पद अभिषेक॥

राजनीति के मंच पर, फैला भ्रष्टाचार।
मेल-जोल बस स्वार्थ बस, लोकतंत्र लाचार॥

ज्ञान शील गुण कर्म यश, जीवन का आधार।
नीति न्याय पौरुष कहाँ, केवल मिथ्याचार॥

दाँव सभी का एक जब, फिर क्यों है अलगाव।
वोट बैंक की चाह में, खो वजूद जन भाव॥

दाँव सभी का एक ही, चापलूस पद स्वार्थ।
मानवता का मोल कहँ, पौरुषेय परमार्थ॥

भारत उन्नति चहुंँमुखी, किसको चिन्ता आज।
दाँव सभी का एक है, तोड़ें धर्म समाज॥

धर्म जाति भाषा जमीं, दाँव सभी का एक।
फैलाते दहशत घृणा, चाहत शीर्ष अनेक॥

दाँव सभी का एक ही, वोट बैंक की नीति।
शान्ति प्रेम नेकी कहाँ, लोकतंत्र अनुभूति॥

दाँव सभी का एक लखि, कवि निकुंज हिय सोच।
लखि नेता नेतागिरी, खोया ख़ुद संकोच॥

चाहत नित सत्ता सुखद , राजनीति तकरार।
छल प्रपंच तिकरम विविध, बद़जुबान गद्दार॥

गज़ब चरित सत्ता ललक, राजनीति का खेल।
लूट रहे धन-जन सकल, कारा ठेलम-ठेल॥

भ्रष्टाचारी सब मिले, जाँच चक्र भयभीत।
परम विरोधी हैं सभी, फूट पड़े कहँ जीत॥

सब द्वीपों में श्रेष्ठतर, भारत द्वीप महान।
ज्ञान दान शिक्षा प्रगति, न्याय धर्म ईमान॥

तन्मय सत्पथ कर्मणा, बढ़ो लक्ष्य बस एक।
राजनीति राहें जटिल, संघर्षक अभिषेक॥

परिचय-डॉ.राम कुमार झा का साहित्यिक उपनाम ‘निकुंज’ है। १४ जुलाई १९६६ को दरभंगा में जन्मे डॉ. झा का वर्तमान निवास बेंगलुरु (कर्नाटक)में,जबकि स्थाई पता-दिल्ली स्थित एन.सी.आर.(गाज़ियाबाद)है। हिन्दी,संस्कृत,अंग्रेजी,मैथिली,बंगला, नेपाली,असमिया,भोजपुरी एवं डोगरी आदि भाषाओं का ज्ञान रखने वाले श्री झा का संबंध शहर लोनी(गाजि़याबाद उत्तर प्रदेश)से है। शिक्षा एम.ए.(हिन्दी, संस्कृत,इतिहास),बी.एड.,एल.एल.बी., पीएच-डी. और जे.आर.एफ. है। आपका कार्यक्षेत्र-वरिष्ठ अध्यापक (मल्लेश्वरम्,बेंगलूरु) का है। सामाजिक गतिविधि के अंतर्गत आप हिंंदी भाषा के प्रसार-प्रचार में ५० से अधिक राष्ट्रीय-अंतर्राष्ट्रीय साहित्यिक सामाजिक सांस्कृतिक संस्थाओं से जुड़कर सक्रिय हैं। लेखन विधा-मुक्तक,छन्दबद्ध काव्य,कथा,गीत,लेख ,ग़ज़ल और समालोचना है। प्रकाशन में डॉ.झा के खाते में काव्य संग्रह,दोहा मुक्तावली,कराहती संवेदनाएँ(शीघ्र ही)प्रस्तावित हैं,तो संस्कृत में महाभारते अंतर्राष्ट्रीय-सम्बन्धः कूटनीतिश्च(समालोचनात्मक ग्रन्थ) एवं सूक्ति-नवनीतम् भी आने वाली है। विभिन्न अखबारों में भी आपकी रचनाएँ प्रकाशित हैं। विशेष उपलब्धि-साहित्यिक संस्था का व्यवस्थापक सदस्य,मानद कवि से अलंकृत और एक संस्था का पूर्व महासचिव होना है। इनकी लेखनी का उद्देश्य-हिन्दी साहित्य का विशेषकर अहिन्दी भाषा भाषियों में लेखन माध्यम से प्रचार-प्रसार सह सेवा करना है। पसंदीदा हिन्दी लेखक-महाप्राण सूर्यकान्त त्रिपाठी ‘निराला’ है। प्रेरणा पुंज- वैयाकरण झा(सह कवि स्व.पं. शिवशंकर झा)और डॉ.भगवतीचरण मिश्र है। आपकी विशेषज्ञता दोहा लेखन,मुक्तक काव्य और समालोचन सह रंगकर्मी की है। देश और हिन्दी भाषा के प्रति आपके विचार(दोहा)-
स्वभाषा सम्मान बढ़े,देश-भक्ति अभिमान।
जिसने दी है जिंदगी,बढ़ा शान दूँ जान॥ 
ऋण चुका मैं धन्य बनूँ,जो दी भाषा ज्ञान।
हिन्दी मेरी रूह है,जो भारत पहचान॥