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दिखावा

शंकरलाल जांगिड़ ‘शंकर दादाजी’
रावतसर(राजस्थान) 
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लोग दिखावे की खातिर ही प्यार जताते हैं सारे।

लगा मुखौटा चहरे पर ये
घर तक भी आ जाते हैं,
केवल झूठा प्यार जता
रिश्ते रोज बनाते हैं।
रहते मौके की तलाश में कब गाफ़िल हों घरवारे,
लोग दिखावे की खातिर ही प्यार जताते हैं सारे।

हमदर्दी का जाल बिछाते
छौंक लगाते बातों का,
देते कितना दर्द सभी को
पता न लगता घातों का।
हम करते विश्वास मगर ये रखते खंज़र दोधारे,
लोग दिखावे की खातिर ही प्यार जताते हैं सारे।

समझ नहीं पाते हैं हम ये
चाल दोगली चलते हैं,
पहन मुखौटा यारी का ये
आस्तीन में पलते हैं।
रहना हमें संभल कर है ये जाने कब खंज़र मारे
लोग दिखावे की खातिर ही प्यार जताते हैं सारे।

इनकी इन वहशी नज़रों में
हर रिश्ता बेमानी है,
अब इनको पहचान न पाना
अपनी ही नादानी है।
सदा रहेंगे यही लूटते बन अपनों को बेचारे,
लोग दिखावे की खातिर ही प्यार जताते हैं सारे॥

परिचय-शंकरलाल जांगिड़ का लेखन क्षेत्र में उपनाम-शंकर दादाजी है। आपकी जन्मतिथि-२६ फरवरी १९४३ एवं जन्म स्थान-फतेहपुर शेखावटी (सीकर,राजस्थान) है। वर्तमान में रावतसर (जिला हनुमानगढ़)में बसेरा है,जो स्थाई पता है। आपकी शिक्षा सिद्धांत सरोज,सिद्धांत रत्न,संस्कृत प्रवेशिका(जिसमें १० वीं का पाठ्यक्रम था)है। शंकर दादाजी की २ किताबों में १०-१५ रचनाएँ छपी हैं। इनका कार्यक्षेत्र कलकत्ता में नौकरी थी,अब सेवानिवृत्त हैं। श्री जांगिड़ की लेखन विधा कविता, गीत, ग़ज़ल,छंद,दोहे आदि है। आपकी लेखनी का उद्देश्य-लेखन का शौक है

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