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जन्नत बनाएँ यह पर्यावरण

सरफ़राज़ हुसैन ‘फ़राज़’
मुरादाबाद (उत्तरप्रदेश) 
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रश्के ‘जन्नत बनाएँ यह पर्यावरण।
आओ हम सब ‘सजाएँ यह पर्यावरण।

इस ‘धरा को सजाएँ ‘चलो हर तरफ़।
पेड़-पौधे लगाएँ ‘चलो हर तरफ़।
पानी हरगिज़ बहाए न बेजा कोई,
यह मिशन हम ‘चलाएँ चलो हर तरफ़।

रश्के जन्नत बनाएँ यह ‘पर्यावरण।
आओ हम सब’ सजाएँ यह पर्यावरण।

ज़िन्दगी ‘है ज़रुरी परिन्दों की ‘भी।
लाज़मी है ‘ह़िफ़ाज़त ‘दरिन्दों की भी।
अंग ‘हैं यह भी पर्यावरण का सभी,
है ‘ज़रूरत हमें इन ‘चरिन्दों की भी।

रश्के जन्नत बनाएँ यह ‘पर्यावरण।
आओ हम सब सजाएँ ‘यह पर्यावरण।

गन्दगी जा बजा मत करो मोह़तरम।
डस्टबिन अपने घर में रखो मोहतरम।
इससे बढ़ती हैं बीमारियाँ बाख़ुदा,
गन्दगी ‘से हमेशा ‘बचो मोहतरम।

रश्के जन्नत बनाएँ यह ‘पर्यावरण।
आओ ‘हम सब सजाएँ यह पर्यावरण।

ताल, ‘पोखर सजाते ‘चलें आओ हम।
साफ़ ‘नदियों का जल भी ‘रखें आओ हम।
कौन क्या कर रहा है,इसे ‘छोड़ कर,
जो भी ‘करना है अच्छा करें आओ हम।

रश्के जन्नत बनाएँ यह पर्यावरण।
आओ हम सब सजाएँ यह पर्यावरण।

ज़िन्दगी की ह़िफ़ाज़त इसी से है बस।
सब’की पूरी ‘ज़रूरत इसी से है बस।
हमने देखा है सारे जहाँ में ‘फ़राज़।
क़ल्बे मुज़तर को राहत इसी ‘से है बस।

रश्के ‘जन्नत बनाएँ यह ‘पर्यावरण।
आओ हम सब सजाँ ‘यह पर्यावरण॥

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