डॉ. प्रताप मोहन ‘भारतीय’
सोलन(हिमाचल प्रदेश)
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इस दुनिया में आपका अपना कौन है ?, यह सवाल अजीब लग रहा होगा। सभी लोग कहेंगे कि, मेरे माँ-बाप हैं, भाई-बहिन है, मेरी पत्नी है, मेरे बच्चे हैं, अपना परिवार है, रिश्तेदार हैं, सभी मेरे अपने हैं। यदि आप ऐसा सोचते हैं तो आपकी यह सोच सौ प्रतिशत गलत है। इस दुनिया में आपका अपना अगर कोई है, तो वो आपका शरीर है, पर उसको आप अपना मानते ही कहाँ हैं ! आपकी पहचान आपके शरीर से है। इसके अलावा आपकी कोई पहचान नहीं है। अर्थात हमारी पहचान हमारा शरीर है। शरीर का हम बिल्कुल भी ध्यान नहीं रखते हैं। सारा दिन हम पैसा कमाने की होड़ में शरीर का ध्यान रखना भूल जाते हैं। न हम समय पर खाना खाते हैं, न समय से पूरी नींद करते हैं। बस हमारा एक ही लक्ष्य होता है धन अर्जन करना और अपने-अपने भविष्य को उज्जवल बनाने का प्रयास करना। उज्जवल भविष्य बनाने के चक्कर में अपना वर्तमान उजाड़ देते हैं। दिन- रात काम कर, बिना खाने- पीने का ध्यान रख, हम अपने शरीर को बीमार कर लेते हैं।जब हम सेवा-निवृत होते हैं तो हमारे पास पैसे तो होते हैं, पर हम उनका उपयोग करने की स्थिति में नहीं होते हैं।जिंदगीभर कमाई हुई पूंजी अब हमारे स्वास्थ्य रक्षा पर खर्च होती है। हमारा जीवन दवाइयों पर निर्भर हो जाता है। अच्छा भविष्य बनाने के चक्कर में अपना वर्तमान तो बर्बाद कर दिया और भविष्य भी खो देते हैं। शरीर से ही हमारी पहचान और शरीर ही हमारा अस्तित्व है, इसलिए सबसे ज्यादा शरीर का ध्यान रखें। पहले अपने शरीर का, बाद में परिवार और समाज का ध्यान रखें। खाना समय पर खाएं, पर्याप्त नींद लें, व्यायाम-खेल कूद करें। अपनी दिनचर्या की अच्छी समय-सारिणी बना लें। उसी के अनुसार चलकर अपने आपको स्वस्थ रखें।
शरीर है तो हम हैं, इसलिए शरीर को सर्वोपरि समझें और सदैव उसका ध्यान रखें। यदि आप तंदरूस्त नहीं होंगे तो परिवार, समाज और देश का ध्यान कैसे रख पाएंगे ! इस बात को कभी भूलें नहीं और हमेशा शरीर का पूरा ध्यान रखें।
परिचय-डॉ. प्रताप मोहन का लेखन जगत में ‘भारतीय’ नाम है। १५ जून १९६२ को कटनी (म.प्र.)में अवतरित हुए डॉ. मोहन का वर्तमान में जिला सोलन स्थित चक्का रोड, बद्दी(हि.प्र.)में बसेरा है। आपका स्थाई पता स्थाई पता हिमाचल प्रदेश ही है। सिंधी,हिंदी एवं अंग्रेजी भाषा का ज्ञान रखने वाले डॉ. मोहन ने बीएससी सहित आर.एम.पी.,एन. डी.,बी.ई.एम.एस.,एम.ए.,एल.एल.बी.,सी. एच.आर.,सी.ए.एफ.ई. तथा एम.पी.ए. की शिक्षा भी प्राप्त की है। कार्य क्षेत्र में दवा व्यवसायी ‘भारतीय’ सामाजिक गतिविधि में सिंधी भाषा-आयुर्वेद चिकित्सा पद्धति का प्रचार करने सहित थैलेसीमिया बीमारी के प्रति समाज में जागृति फैलाते हैं। इनकी लेखन विधा-क्षणिका,व्यंग्य लेख एवं ग़ज़ल है। कई राष्ट्रीय पत्र-पत्रिकाओं में रचनाओं का प्रकाशन जारी है। ‘उजाले की ओर’ व्यंग्य संग्रह)प्रकाशित है। आपको राजस्थान द्वारा ‘काव्य कलपज्ञ’,उ.प्र. द्वारा ‘हिन्दी भूषण श्री’ की उपाधि एवं हि.प्र. से ‘सुमेधा श्री २०१९’ सम्मान दिया गया है। विशेष उपलब्धि-राष्ट्रीय अध्यक्ष(सिंधुडी संस्था)होना है। इनकी लेखनी का उद्देश्य-साहित्य का सृजन करना है। इनके लिए पसंदीदा हिन्दी लेखक-मुंशी प्रेमचंद एवं प्रेरणापुंज-प्रो. सत्यनारायण अग्रवाल हैं। देश और हिंदी भाषा के प्रति आपके विचार-“हिंदी को राष्ट्रीय ही नहीं, बल्कि अंतरराष्ट्रीय स्तर पर सम्मान मिले,हमें ऐसा प्रयास करना चाहिए। नई पीढ़ी को हम हिंदी भाषा का ज्ञान दें, ताकि हिंदी भाषा का समुचित विकास हो सके।”