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देवनागरी लिपि का संरक्षण आवश्यक-डॉ. पाल

दिल्ली।

देवनागरी लिपि का संरक्षण करना आवश्यक है। वर्ना हिंदी, भारतीय संस्कृति और संस्कार को नहीं बचाया जा सकेगा।भाषा का विकास लिपि के संरक्षण से होगा।
नागरी लिपि के महामंत्री डॉ. हरि सिंह पाल ने यह बात अपने वक्तव्य में कही। मौका रहा दिल्ली के प्रगति मैदान में आयोजित विश्व पुस्तक मेले के अंतर्गत नागरी लिपि परिषद द्वारा ‘नागरी लिपि व प्रौद्योगिकी’ विषय पर रखी गई संगोष्ठी का। डॉ. पाल ने सभी विद्वानों का स्वागत किया।
विषय पर राजभाषा विभाग के सेवानिवृत्त पूर्व क्षेत्रीय उपनिदेशक तथा ‘वैश्विक हिंदी सम्मेलन’ के संस्थापक डॉ. मोतीलाल गुप्ता ‘आदित्य’ ने कहा कि, यह प्रौद्योगिकी का युग है और काम कलम से ज्यादा कम्प्यूटर से किया जाता है, इसलिए विद्यालय के पाठ्यक्रम के माध्यम से बच्चों को कम्प्यूटर व मोबाइल आदि पर कार्य का प्रशिक्षण अनिवार्य किया जाना चाहिए। जब तक हम ऐसा नहीं करेंगे, हम नागरी लिपि का कितना भी महिमामंडन करें, हिन्दी भाषा और नागरी लिपि को बचाना-बढ़ाना सम्भव नही हैं।
सभी कवियों ने नागरी लिपि के इतिहास, इसकी विशेषताओं और वैश्विक स्तर पर प्रासंगिकता के विषय में बताया।
सेमिनार मंडप के मंच पर नागरी लिपि पर सत्र आयोजित किया गया। इसमें डॉ. प्रेमचंद पतंजली (परिषद् के अध्यक्ष), धरमवीर सिंह, नारायण कुमार व डॉ. शिव शंकर अवस्थी आदि उपस्थित रहे।

अनेक पुस्तक लोकार्पित, काव्य गोष्ठी भी

परिषद द्वारा आयोजित इस आयोजन में कई पुस्तकों का लोकार्पण भी हुआ। नागरी संगम पत्रिका, सौरभ पत्रिका (अमेरिका), काव्य संग्रह ‘चांद पर पहरा’, ‘रंगोली के रंग’ तथा अरुण पासवान की ‘जुहू बीच’ आदि पुस्तकें शामिल हैं। इसके पश्चात काव्य गोष्ठी हुई, जिसमें २५ कवियों ने प्रस्तुति दी। गोष्ठी का संचालन सुप्रसिद्ध कवि बाबा कानपुरी ने किया।

(सौजन्य:वैश्विक हिंदी सम्मेलन, मुंबई)

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