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‘देश रत्न’ डॉ. राजेंद्र प्रसाद

संजय सिंह ‘चन्दन’
धनबाद (झारखंड )
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जयंती (३ दिसम्बर) विशेष….

भारत के महापुरुष, जिनका व्यक्तित्व महान,
सादी जीवन शैली, अति साधारण इंसान
ग्रामीण जीवन-परिवेश, सादा ही खान-पान
बहुमुखी प्रतिभाशाली, जीरादेई था जन्म स्थान।

दादा-दादी, चाचा-चाची, माता-पिता की दुलारी वे संतान,
सरस्वती उनके हृदय बसी थी, पाए उच्च वो ज्ञान
प्रेसीडेन्सी कॉलेज प्रवेश परीक्षा में पाया प्रथम स्थान,
पढ़ाई भागलपुर से विधि परा-स्नातक कर, पाया स्वर्ण पदक सम्मान।

कानून की पढ़ाई से पाया ‘डॉक्टर’ उपाधि से मान,
१३ वर्ष की आयु में बाल विवाह परिपाटी बंधन में बंधे नादान
पढ़ाई में अटूट आस्था से जुट कर मस्ती का भी रखते संज्ञान,
भारतीय संस्कृति युक्त पहने सारे परिधान, फारसी, उर्दू, हिन्दी, संस्कृत, भोजपुरी, बांग्ला, अँग्रेजी में किया बखान।

लेखनी-वक्तव्यों से फूंकने लगे आज़ादी के संघर्ष में प्राण,
आंदोलनों से हुई अग्रणी नेतृत्वकर्ता की पहचान
उनकी विद्वता और ईमानदारी से चापलूस रहे परेशान,
कानून और वकालत ने उनका मार्ग किया आसान।

धूमकेतु जैसे छा गए स्वदेश में उनके नामो-निशाँ,
आँखें अँग्रेज टट्टुओं की होने लगी तरकशां
फिरंगी भेड़ियों की कानून से ही लेते रहे इंतहा,
आज़ादी के नशे में ‘खैनी’ से मुहब्बत रखते बेइंतहा।

न शोहरत, न दौलत, न नुमाइश कोई, दीवाना आज़ादी का रहा तन्हा,
जुल्मो-सितम के प्रतिकार में सुलगाते रहे शमाँ,
जनजागृति की खातिर आजादी के रंग चढ़े परवाँ,
यूँ ही नहीं मिली आजादी, बनाने पड़े हर तरफ कारवां।

नेतृत्व में आपके कूद पड़े नर-नारी, बच्चे, बूढ़े, युवा,
शहीदों ने अपने बलिदान से खेला आज़ादी का जुआँ
तब जाकर यह देश मेरा कई मशक्कत से आज़ाद हुआ,
१५ अगस्त १९४७ को तिरंगे के परचम ने लाल किला छुआ।

तभी शांत हुआ वर्षों का धधकता हुआ धुआँ,
नए कानून, नए विधान, नए संविधान की लोगों ने की दुआ
तब संविधान निर्माण में अध्यक्षता काम राजेंद्र बाबू ने निभाया पूरा,
विद्वान कानूनविद, संविधान निर्माता डॉ. आम्बेडकर ने सपना साकार किया अधूरा।

तब सबसे बड़े लोकतंत्र का संविधान हुआ पूरा,
भारत गणराज्य के प्रथम ‘राष्ट्रपति’ का डॉ. राजेंद्रप्रसाद को अवसर मिला सुनहरा
सोमनाथ मन्दिर जीर्णोधार के शिलान्यास का माथे पर उनके सेहरा,
अद्भुत, अप्रतिम, अद्वितीय प्रतिभा, लोकप्रिय प्रशासनिक क्षमता का बोध कराया गहरा।

संसद, प्रधानमंत्री, मंत्रियों को उनकी हद में रहने को करते दूरदृष्टि से पहरा,
सादा जीवन-उच्च विचार, बुद्धि, विवेक, विलक्षण, प्रतिभावान, व्यक्तित्व बहुत था गहरा।
शांत चित, निर्भीकता से काटते-छांटते रहे वो हर संकट का कुहरा,
जिनके प्रयासों के कारण भारत गणराज्य का स्वप्न दिखा सुनहरा॥

परिचय-सिंदरी (धनबाद, झारखंड) में १४ दिसम्बर १९६४ को जन्मे संजय सिंह का वर्तमान बसेरा सबलपुर (धनबाद) और स्थाई बक्सर (बिहार) में है। लेखन में ‘चन्दन’ नाम से पहचान रखने वाले संजय सिंह को भोजपुरी, संस्कृत, हिन्दी, खोरठा, बांग्ला, बनारसी सहित अंग्रेजी भाषा का भी ज्ञान है। इनकी शिक्षा-बीएससी, एमबीए (पावर प्रबंधन), डिप्लोमा (इलेक्ट्रिकल) व नेशनल अप्रेंटिसशिप (इंस्ट्रूमेंटेशन डिसिप्लिन) है। अवकाश प्राप्त (महाप्रबंधक) होकर आप सामाजिक कार्यकर्ता, रक्तदाता हैं तो साहित्यिक गतिविधि में भी सक्रियता से राष्ट्रीय संस्थापक-सामाजिक साहित्यिक जागरुकता मंच मुंबई (पंजी.), संस्थापक-संरक्षक-तानराज संगीत विद्यापीठ (नोएडा) एवं राष्ट्रीय प्रवक्ता के.सी.एन. क्लब (मुंबई) सहित अन्य संस्थाओं से बतौर पदाधिकारी जुड़ें हैं, साथ ही पत्रकारिता का वर्षों का अनुभव है। आपकी लेखन विधा-गीत, कविता, कहानी, लघु कथा व लेख है। बहुत-सी रचनाएँ पत्र-पत्रिका में प्रकाशित हैं, साथ ही रचनाएँ ४ साझा संग्रह में हैं। ‘स्वर संग्राम’ (५१ कविताएँ) पुस्तक भी प्रकाशित है। प्राप्त सम्मान-पुरस्कार में आपको
महात्मा बुद्ध सम्मान-२०२३, शब्द श्री सम्मान-२०२३, पर्यावरण रक्षक सम्मान-२०२३, श्रेष्ठ कवि सम्मान-२० २३ सहित अन्य सम्मान हैं तो विशेष उपलब्धि-राष्ट्रीय कवि सम्मेलन में कई बार उपस्थिति, देश के नामचीन स्मृति शेष कवियों (मुंशी प्रेमचंद, जयशंकर प्रसाद, भारतेंदु हरिश्चंद्र आदि) के जन्म स्थान जाकर उनकी पांडुलिपि अंश प्राप्त करना है। श्री सिंह की लेखनी का उद्देश्य-हिन्दी भाषा का उत्थान, राष्ट्रीय विचारों को जगाना, हिन्दी भाषा, राष्ट्र भाषा के साथ वास्तविक राजभाषा का दर्जा पाए, गरीबों की वेदना, संवेदना और अन्याय व भ्रष्टाचार पर प्रहार है। मुंशी प्रेमचंद, अटल बिहारी वाजपेयी, जयशंकर प्रसाद, भारतेंदु हरिश्चंद्र, महादेवी वर्मा, रामधारी सिंह दिनकर, किशन चंदर और पं. दीनदयाल उपाध्याय को पसंदीदा हिन्दी लेखक मानने वाले संजय सिंह ‘चंदन’ के लिए प्रेरणापुंज- पूज्य पिता जी, नेताजी सुभाष चन्द्र बोस, महात्मा गॉंधी, भगत सिंह, लोकनायक जय प्रकाश, बाला साहेब ठाकरे और डॉ. हेडगेवार हैं। आपकी विशेषज्ञता-साहित्य (काव्य), मंच संचालन और वक्ता की है। जीवन लक्ष्य-ईमानदारी, राष्ट्र भक्ति, अन्याय पर हर स्तर से प्रहार है। देश और हिंदी भाषा के प्रति विचार-“अपने ही देश में पराई है हिन्दी, अंग्रेजी से अंतिम लड़ाई है हिन्दी, अंग्रेजी ने तलवे दबाई है हिन्दी, मेरे ही दिल की अंगड़ाई है हिन्दी।”