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धर्मयुद्ध

क्षितिज जैन
जयपुर(राजस्थान)
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जब रणभूमि में आ आमने-सामने

शक्तियाँ धर्म अधर्म की टकरातीं हैं,

योद्धाओं के सिंहनाद से यह धरा

भयभीत होकर बार-बार थर्रातीं है।

तब भी यदि कोई योद्धा किसी के

बुलावे का मानो इंतज़ार करता है,

देखे धर्म को लड़ते अधर्म से मात्र

अपने ऊपर ही वह प्रहार करता है।

हराने को अधर्म के साम्राज्य को सदा

स्वयम ही पौरुष करना पड़ता है,

प्रकाश करने को व्याप्त जगत में इस

हाथों में शोलों को धरना पड़ता है।

यह कर्तव्य सनातन है प्रत्येक का

आज इसका हृदय में भान करो रे!

सिंह बैठा है जो भीतर तुम्हारे ही

आज उसका तुम आह्वान करो रे!

जो है सही,उचित और सत्य का पक्ष

निर्भय होकर अब उसका सम्मान करो,

जो थे अनुचित अधर्मी और अन्यायी

उन्हें यथायोग्य तुम दंड प्रदान करो।

धर्म जीता तो धर्मवीर के बल पर

अधर्म भी उसी से तो हारा है,

वीर वही जो समक्ष अनय के आकर

धर्म पक्ष में ही सदैव हुंकारा है।

जो प्रतीक्षा करता है धर्मयुद्ध में भी

वह कुछ भी नहीं बदल पाता है,

जो किए बिना परवाह कूद पड़े उसमें

वही परिवर्तन का स्वर बन जाता है।

(इक दृष्टि यहाँ भी:अनय-अधर्म)

परिचय-क्षितिज जैन का निवास जयपुर(राजस्थान)में है। जन्म तारीख १५ फरवरी २००३ एवं जन्म स्थान- जयपुर है। स्थायी पता भी यही है। भाषा ज्ञान-हिन्दी का रखते हैं। राजस्थान वासी श्री जैन फिलहाल कक्षा ग्यारहवीं में अध्ययनरत हैं कार्यक्षेत्र-विद्यार्थी का है। सामाजिक गतिविधि के अंतर्गत धार्मिक आयोजनों में सक्रियता से भाग लेने के साथ ही कार्यक्रमों का आयोजन तथा विद्यालय की ओर से अनेक गतिविधियों में भाग लेते हैं। लेखन विधा-कविता,लेख और उपन्यास है। प्रकाशन के अंतर्गत ‘जीवन पथ’ एवं ‘क्षितिजारूण’ २ पुस्तकें प्रकाशित हैं। दैनिक अखबारों में कविताओं का प्रकाशन हो चुका है तो ‘कौटिल्य’ उपन्यास भी प्रकाशित है। ब्लॉग पर भी लिखते हैं। विशेष उपलब्धि- आकाशवाणी(माउंट आबू) एवं एक साप्ताहिक पत्रिका में भेंट वार्ता प्रसारित होना है। क्षितिज जैन की लेखनी का उद्देश्य-भारतीय संस्कृति का पुनरूत्थान,भारत की कीर्ति एवं गौरव को पुनर्स्थापित करना तथा जैन धर्म की सेवा करना है। पसंदीदा हिन्दी लेखक-नरेंद्र कोहली,रामधारी सिंह ‘दिनकर’ हैं। इनके लिए प्रेरणा पुंज- गांधीजी,स्वामी विवेकानंद,लोकमान्य तिलक एवं हुकुमचंद भारिल्ल हैं। इनकी विशेषज्ञता-हिन्दी-संस्कृत भाषा का और इतिहास व जैन दर्शन का ज्ञान है। देश और हिन्दी भाषा के प्रति आपका विचार-हम सौभाग्यशाली हैं जो हमने भारत की पावन भूमि में जन्म लिया है। देश की सेवा करना सभी का कर्त्तव्य है। हिंदीभाषा भारत की शिराओं में रक्त के समान बहती है। भारत के प्राण हिन्दी में बसते हैं,हमें इसका प्रचार-प्रसार करना चाहिए।

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